AI Doctor: नर्सों की कमी को पूरी करेगा ये AI टूल, देगा हर पल की अपडेट, बचेगी लाखों मरीजों की जान
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AI Doctor: नर्सों की कमी को पूरी करेगा ये AI टूल, देगा हर पल की अपडेट, बचेगी लाखों मरीजों की जान

AI Doctor: आईआईटी के इंजीनियर ने एक ऐसा AI टूल बनाया है, जोकि नर्सों की कमी को पूरा करेगी. ये टूल एक सेंसर की तरह काम करेगा, जो अस्पताल के हर बेड पर लगाया जाएगा.

AI Doctor: नर्सों की कमी को पूरी करेगा ये AI टूल, देगा हर पल की अपडेट, बचेगी लाखों मरीजों की जान

AI Doctor: आईआईटी के इंजीनियर ने बनाया ऐसा स्टार्ट अप, जो नर्सों की कमी पूरी करेगा. IIT इंजीनियर ने एक AI टूल बनाया है, जो कि नर्सों की तरह काम करेगा. इससे कई मरीजों की जान बचाई जा सकेगी.  

नई तकनीक से होगा इलाज
बता दें कि आज के समय में मरीज अस्पताल के बेड पर लेटा है और ब्लड प्रेशर उपर नीचे हो रहा है, लेकिन उसे चेक करने के लिए हर वक्त नर्स या डॉक्टर वहां मौजूद नहीं है. मॉनिटर पर आ रहे ईसीजी से पता चल रहा है कि मरीज के दिल की धड़कनें काबू में नहीं हैं, लेकिन नर्स के लिए हर वक्त मरीज का ईसीजी चेक करना और उसकी निगरानी में लगे रहना संभव नहीं है. सरकारी अस्पताल हो या प्राइवेट अस्पताल हर जगह पैरामैडिकल स्टाफ यानी कि नर्स, वॉर्ड ब्वाय, लैब टेक्नीशियन की भारी कमी है. वहीं अब मरीज के वाइटल पैरामीटर्स जैसे कि उसका पल पल का ब्लड प्रेशर, ऑक्सीजन का स्तर, टेंपरेचर, ईसीजी, हार्ट रेट जैसे सब कामों को एक मशीन के भरोसे छोड़ा जा सकता है. ये सब काम एक नई AI technique के जरिए किया जा सकता है.

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बेड में लगेगा सेंसर
इसके लिए अस्पताल के बेड में एक सेंसर लगाना होगा. ये सेंसर मरीज के तमाम टेस्ट करता रहेगा और उसका डाटा मरीज के पास रखे मॉनिटर में डिस्पले होता रहेगा. ये डाटा लगातार नर्सिंग स्टेशन पर मौजूद नर्स के सिस्टम में भी अपडेट होता रहेगा. इतना ही नहीं किसी मरीज के लेवल अगर असामान्य हो रहे हैं, जैसे उसका ब्लड प्रेशर जरूरत से ज्यादा उपर नीचे हो या फिर उसके इसीजी से हार्ट अटैक का खतरा सामने आ रहा हो तो ऐसे मरीज के डाटा के साथ वॉर्निंग अलर्ट भी आने लगेगा.

ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट और और सांस की गति बेड के नीचे लगे सेंसर से पता चल सकती है, जबकि ऑक्सीजन, ईसीजी और टेम्परपेचर के लिए मरीज को तीन डिवाइस लगाए जाते हैं, लेकिन ये सभी वायरलेस डिवाइस हैं. अस्पताल में भर्ती मरीज को अगर चलना फिरना हो तो उसे बार-बार तारें हटवाने के लिए किसी को बुलाना नहीं पड़ता.

IIT गोरखपुर के गौरव परचानी ने बनाया AI टूल
इस सिस्टम को आईआईटी गोरखपुर से पढ़े गौरव परचानी ने बनाया है. इंदौर के रहने वाले गौरव ने 2013 में आईआईटी से इंजीनियरिंग की, जिसके बाद गौरव रेसिंग कारों की स्पीड और उससे जुड़ी मशीनों पर काम कर रहे थे, लेकिन वो कुछ ऐसा करना चाहते थे जिसका फायदा ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिले. गौरव के मुताबिक हेल्थ टेक्नोलॉजी की मशीनों और रेसिंग कार की टेक्नोलॉजी में ज्यादा फर्क नहीं है, जिसके बाद कई सुधारों को करते करते इस Dozee (डोज़ी) मशीन की टेक्नोलॉजी ने जन्म लिया.

नर्सों की कमी को करेगा पूरी
एक अनुमान के मुताबिक देश में प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के पास कुल 20 लाख बेड्स हैं. इनमें से आईसीयू बेड्स की संख्या 1 लाख 25 हजार के लगभग है. केवल इन बेड्स पर मौजूद मरीजों के लिए एक मरीज पर एक नर्स की व्यवस्था संभव है, जबकि बाकी 18 लाख से ज्यादा बेड्स में कहीं 5 तो कहीं-कहीं 20 मरीजों पर एक नर्स होती है.

ऐसे में बहुत बार इन अस्पतालों में कई मरीज इसीलिए आईसीयू तक पहुंच जाते हैं, क्योंकि उनकी बिगड़ती हालत पर अस्पताल में होने के बावजूद ध्यान नहीं दिया जा सका. वहीं अब AI तकनीक के इस्तेमाल से कई मरीजों की हालत बिगड़ने से पहले उनके पैरामीटर्स पर ध्यान दिया जा सकता है और समय रहते इलाज किया जा सकता है. 

हाल ही में लॉन्च हुई ये टेक्नोलॉजी देश के कुछ सरकारी और कुछ प्राइवेट अस्पतालों तक पहुंच चुकी है. इस वक्त देश के 300 से ज्यादा अस्पतालों में तकरीबन 8 हजार बेड्स पर ये सिस्टम लगाया जा चुका है.

इन अस्पतालों में शुरू हुई AI टेक्निक
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कालेज, चंडीगढ़ में पीजीआई समेत कई प्राइवेट अस्पतालों ने अपने अस्पतालों में बेड्स में सेंसर वाली ये व्यवस्था चालू की है. चेन्नई के अपोलो अस्पताल और लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के डाटा के मुताबिक इस टेक्निक की मदद से वो 80 प्रतिशत मरीजों को समय रहते बचा पाए हैं, क्योंकि मशीन ने उन मरीजों की हालत बिगड़ने से 8 घंटे पहले ही शरीर में हो रहे बदलावों का संकेत पैरामीटर्स की रीडिंग की मदद से दे दिया.

एक बार बेड में सेंसर लगाने से वो 5 साल तक काम कर सकता है. इस तकनीक को 15 से ज्यादा सर्टिफिकेट और 8 पेटेंट हासिल हैं. यह पूरी तरह मेड इन इंडिया तकनीक है. हालांकि ये सिस्टम फिलहाल खर्चीला है, लेकिन सिस्टम बनाने वालों का दावा है कि इस टेक्निक की मदद से हर साल नर्सों के काम के 10 हजार घंटे बचाए जा सकते हैं. नर्स और डॉक्टरों के समय के साथ-साथ कई मरीजों की जान भी बचाई जा सकती है.