Holi 2024: भारतीय संस्कृति का प्रमुख त्यौहार होली का पर्व विष्णु भक्त प्रहलाद के जीवित आग से बचने की याद में मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार, 24 मार्च को सुबह 9 बजे से लेकर 54 मिनट पर भद्रा काल की शुरूआत होने जा रही है, जिसका समापन रात्रि 11 बजकर 53 मिनट पर होगा. भिवानी के हनुमान ढाणी, हनुमान गेट समेत क्षेत्र में होलिका पूजन करने पहुंची महिलाओं ने कहा कि आज किसानों के खेतों में तैयार हुए नए अनाज, फल-फूल और ढाल बिडकुल से होलिका पूजन किया है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

उन्होंने कहा कि परिवार में बच्चों की सुख समृद्धि की कामना की गई है, आज भद्रा होने कारण सुबह से पूजन शुरू किया गया है. हिरण्य कश्यम जो कि प्रहलाद के पिता थे, वे अपने आप को भगवान मानने लगे, जबकि प्रहलाद भगवान विष्णु का भगत थे. इससे नाराज होकर हिरण्य कश्यप ने अपनी बहन होलिाका को जिसे अग्नि से ना जलने का वरदान था, उसके गोद में बैठाकर आग के हवाले कर दिया.


ये भी पढ़ेंः Delhi Holi 2024: रंगों के पर्व पर दिल्ली के बाजार हुए गुलजार, Modi पिचकारियां के संग केसरिया रंग की बड़ी डिमांड


उन्होंने कहा कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु के भगत प्रहलाद आग से जीवित बच गए, जबकि होलिका वरदान प्राप्त होने के बाद भी आग में जल गई. भक्ति के इसी स्वरूप की याद में होलिका का पर्व मनाया जाता है. होलिका से अगले दिन जल व पुष्पों को एक-दूसरों पर गिराकर खुशी मनाई जाती थी, जो आज गुलाल व रंगों को लगाकर मनाई जाती है.


भस्म की होली में डूबे श्रद्धालु


उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय में स्थित विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर में देश-विदेश सहित स्थानीय लोगों ने बड़े धूमधाम से हर हर महादेव के जयकारों के साथ भस्म की होली खेली. इस अवसर पर गंगोत्री विधायक सुरेश चौहान भी मौजूद रहे. आज सुबह प्रातः 4 बजे से ही लोग भस्म की होली खेलने के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर में एकत्रित होने शुरू हुए.


ये भी पढ़ेंः Holi 2024: देशभर में बिखरा होली का रंग, तैयारियां जोरों पर, बांके बिहारी के दर्शन को उमड़ी भीड़


पहले काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा अर्चना का कार्यक्रम चला. उसके बाद भोलेनाथ के शिवलिंग पर भस्म का लेप किया गया. आरती हुई और फिर विश्वनाथ मंदिर प्रांगण में देश-विदेश सहित स्थानीय लोगों ने जमकर एक दूसरे पर भस्म लगाकर गले मिलकर भस्म की होली खेली और जमकर गीतों पर नृत्य भी किया. कहते हैं कि महाकाल उज्जैन की तर्ज पर पिछले 10 से 15 सालों से उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर में भस्म की होली बड़े धूमधाम से खेली जाती है.


इतना ही नहीं, काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत अजय पुरी ने Zee मीडिया से खास बातचीत में बताया कि साल भर हवन यज्ञ द्वारा बिभूत एकत्रित की जाती है और उसको फिर भस्म के रूप में तैयार करके होली खेलने के लिए इस भस्म का प्रयोग किया जाता है. भस्म की होली खेलने से हमारे रोग और कष्ट दूर होते है. वहीं दिल्ली से आए श्रद्धालुओं का कहना है कि इस प्रकार की भस्म की होली हमने पहली बार खेली है हमे काफी मजा आया.


(इनपुटः नवीन शर्मा, हेमकांत नौटियाल)