Nitish Kumar: बीजेपी की ओर से ऐसी चर्चा है कि नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी को आलाकमान ने मंजूरी दे दी है. ऐसे में चुनाव से पहले ही गठबंधन को बड़ा झटका लग सकता है. नीतीश के प्रयासों की बदौलत कांग्रेस के विचारधारा के खिलाफ राजनीति करने वाले दल एक साथ एक टेबल पर आए थे और गठबंधन ने एक आकार लिया था.
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INDIA BLOC: राजनीति में साथ और साजिश अक्सर समानांतर चलते हैं. इसका अंदाजा INDI अलायंस के लिए अलग-अलग विचारधारा की पार्टी को एक टेबल पर लाने वाले नीतीश कुमार के राजनीतिक दांव को देखकर साफ लगाया जा सकता है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिलकर धूल चटाने के लिए जिस जोश से गठबंधन तैयार हुआ था, वो शीट शेयरिंग के मुद्दे और परिवारवाद की बीमारी से ग्रस्त दलों के जोड़तोड़ की भेंट चढ़ता दिख रहा है. बुधवार को पश्चिम बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने एकला चलो की बात कहकर INDI अलायंस को ठेंगा दिखा दिया था.
इसके ठीक बाद पंजाब के सीएम भगवंत मान ने भी राज्य की सभी 13 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर गठबंधन में शामिल दलों के समक्ष अपनी मंशा साफ कर दी. इससे पहले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी कुल 80 लोकसभा सीटों में से 65 पर चुनाव लड़ने की बात कह चुके हैं. इस बीच बिहार से एक बड़ी खबर सामने आई है कि सीएम नीतीश कुमार भी INDI अलायंस को टाटा-टाटा, बाय-बाय कर देंगे.
बीजेपी की ओर से ऐसी चर्चा है कि नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी को आलाकमान ने मंजूरी दे दी है.
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गुरुवार शाम को बीजेपी बिहार अध्यक्ष सम्राट चौधरी, पार्टी नेता रेनू देवी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह के आवास पर पहुंचे. बैठक के बाद सम्राट चौधरी ने कहा कि बैठक में लोकसभा चुनाव की तैयारियों और बिहार में कैसे लड़ेंगे, इस पर चर्चा हुई है.
दरअसल बिहार सरकार की सहयोगी पार्टी राजद की ओर से जदयू के विधायकों को तोड़ने की भनक लगने के बाद नीतीश विधानसभा भंग की सिफारिश कर सकते हैं. राजद की ये कोशिश लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी को सीएम बनाने के लिए की जा रही है, लेकिन नीतीश लालू के किए कराए पर पानी फेरने के लिए पूरी तरह तैयार दिख रहे हैं और शायद इसीलिए उन्होंने INDI अलायंस का संयोजक न बनने का फैसला कर लिया था.
अगर बीजेपी का दावा वाकई 100 फ़ीसदी सच साबित होता है तो चुनाव से पहले ही गठबंधन को बड़ा झटका लग सकता है. इसके मायने आप ऐसे समझ सकते हैं कि नीतीश के प्रयासों की बदौलत कांग्रेस के विचारधारा के खिलाफ राजनीति करने वाले दल एक साथ एक टेबल पर आए थे और गठबंधन ने एक आकार लिया था.
इधर कांग्रेस को कमजोर कर दिल्ली और पंजाब में सरकार बना चुकी आम आदमी पार्टी गठबंधन का हिस्सा रहेगी या नहीं, ये बहुत जल्द साफ हो जाएगा. शीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच बात भी हुई है. अब दिल्ली में लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर क्या नतीजे निकलते हैं, ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन जिस तरह से पंजाब में भगवंत मान ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला सुनाया है, उसे देखकर दिल्ली की स्थिति का कुछ-कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है.
कांग्रेस का साथ नहीं आया दिल्ली सरकार के काम
दरअसल आम आदमी पार्टी केंद्र सरकार के बिल को संसद में खारिज कराना चाहती थी. इस मुद्दे पर उसे कांग्रेस का साथ भी मिला, लेकिन ये साथ काम नहीं आया और दिल्ली सर्विस बिल लोकसभा और राज्यसभा में पास हो गया. विधेयक पेश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कटाक्ष किया था कि विपक्षी दलों को इस बात का डर था कि यदि उन्होंने इस बिल पर अरविंद केजरीवाल की बात नहीं मानी तो वे गठबंधन छोड़कर चले जाएंगे.