Pongal 2023: दक्षिण भारत का नया साल पोंगल पर्व के रूप में आता है, जो कि 15 जनवरी से 18 जनवरी तक मनाया जाएगा. इस दिन किसान त्योहार में धान की फसल को एकत्र करने के बाद पोंगल त्योहार के रूप में अपनी खुशी प्रकट करते हैं.
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Pongal 2023: 14 जनवरी से हमारे देश में त्योहारी सीजन शुरू हो जाएगा. दिल्ली, पंजाब समेत उत्तर भारत में मकर संक्रांति और लोहड़ी, गुजरात समेत पश्चिम-उत्तर भारत में उतरायण, असम समेत पूर्वी भारत में बिहू मनाया और दक्षिण भारत में पोंगल (Pongal) का त्योहार मनाया जाएगा.
बता दें कि पोंगल दक्षिणी क्षेत्र, विशेष रूप से तमिलनाडु में एक बहुत बड़ा त्योहार है. तमिलनाडु में इस पर्व को 4 दिनों तक मनाया जाता है. इसका पहला दिन भोगी पोंगल, दूसरा दिन सूर्य पोंगल, तीसरा दिन मट्टू पोंगल और चौथा दिन कन्या पोंगल कहलाता है. दिनों के हिसाब से अलग-अलग तरीके से पूजा की जाती है. पोंगल फलस के मौसम का उत्सव है. इस समय लोग एक खुशहाल और स्वस्थ जीवन में उनके योगदान के लिए धरती मां, प्रकृति और खेत, जानवरों का जश्न मनाने के लिए एक साथ आते हैं. इस बार पोंगल 15 जनवरी से 18 जमवरी तक मनाया जाएगा.
पोंगल का महत्व
इस त्योहार का दक्षिण भारत के लोगों में बहुत ही महत्व है. यह गन्ना, हल्दी और चावल जैसी फसलों की कटाई का मौसम है. इस त्योहार में धान की फसल को एकत्र करने के बाद पोंगल त्योहार के रूप में अपनी खुशी प्रकट की जाती हैं. साथ ही लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आने वाली फसलें भी अच्छी हों. पोंगल पर समृद्धि लाने के लिए वर्षा, सूर्य देव, इंद्रदेव और मवेशियों को पूजा जाता है. लोगों का यह भी मानना है कि पोंगल विवाह, सगाई और अन्य धार्मिक गतिविधियों जैसे शुभ समारोह करने का समय भी होता है.
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बता दें कि इस पर्व के पहले दिन इंद्रदेव की पूजा की जाती है. क्योंकि इंद्र देव वर्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं. इसलिए खेती के लिए अच्छी बारिश की कामना की जाती है. इस दिन लोग खराब चीजों के घर से निकालकर जला देते हैं. इसके बाद दूसरे दिन सूर्य भगवान की पूजा की जाती है. इस दिन विशेष तरह की खीर बनाकर और उसे भगवान सूर्य को अर्पित किया जाता है. वहीं तीसरे दिन पशुओं जैसे गाय, बैल की पूजा की जाती है। उन्हें नहला धुला कर तैयार किया जाता है। बैलों के सींगों को कलर किया जाता है. त्योहार को आखिरी और चौथे दिन घर को फूलों से सजाया जाता है. इस मौके पर घर की महिलाएं अपने आंगन में रंगोली बनाती हैं. ये इस पर्व का आखिरी दिन होता है लोग एक दूसरे को मिठाई बांटकर इस त्योहार की शुभकामनाएं देते हैं.
ऐसे मनाते हैं पोंगल
दक्षिण भारत में पोंगल को नए साल के रूप में मनाया जाता है. माना जाता है कि इसका इतिहास 1000 साल से भी पुराना है. इस त्योहार को चार दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पहले दिन भेगी पोंगल, दूसरे दिन सूर्य पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कन्या पोंगल के रूप में मनाते हैं. इसी से नए साल की शुरुआत होना भी मानते हैं.
बता दें कि किसान अपने खेतों से नए अनाज ( चावल, गन्ना, तिल) को काटकर अपने घर ले आते हैं. इस त्योहार में मिट्टी के बर्तन में चावल, गुड़ और दूध डालकर धूप में रख दिया जाता है. मिट्टी के बर्तन को सजाने के लिए आटे से पकवान बनाए जाते हैं, जिन्हें अलग-अलग तरह का आकर दिया जाता है, जैसे तलवार, चिड़िया हंसिया आदि. इसके बाद इन सभी पकवानों को एक माला में पिरोया जाता है और उसे उस मिट्टी के बर्तन में पहनाया जाता है. 2-3 बजे के बीच धूप इतनी तेज हो जाती है की उस मिट्टी के बर्तन में रखे उस खीर में उबाल जाती है और चारों तरफ से पोंगल-पोंगल-पोंगल के स्वर सुनाई देने शुरू हो जाते हैं. कुछ इस अंदाज में मनाया जाता है पोंगल का त्योहार.
पोंगल का इतिहास
पोंगल तमिलनाडु का एक प्राचीन त्योहार है. हरियाली और समृद्धि को समर्पित पोंगल त्योहार पर भगवान सूर्य देव जी की पूजा की जाती है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि भगवान शिव ने अपने बैल नंदी को हर दिन तेल मालिश करने और महीने में एक बार स्नान और भोजन करने के लिए पृथ्वी पर भेजा था. इसके बाद नंदी ने पृथ्वी पर पहुंचने की घोषणा की कि वह प्रतिदिन भोजन करेगा और महीने में एक बार तेल से स्नान करेगा. इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने नंदी को हमेशा के लिए पृथ्वी पर रहने और मनुष्यों को उनके क्षेत्र में मदद करने का श्राप दिया. इसीलिए लोग फसल कटने के बाद फसलों और मवेशियों के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. इस त्योहार की विशेष बात यह है कि इसमें बनने और खाने वाले पकवान का नाम भी पोंगल है. यह उबले हुए मीठे चावल का मिश्रण होता है.