AIR Quality In Delhi: दिल्ली एनसीआर की हवा में घुला सफेद जहर आंखों से लेकर फेफड़ों में घुस रहा है लेकिन इस मौसम में पैदा होने वाले बच्चे या गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी प्रदूषण की मार पड़ रही है. एम्स में हुई स्टडी के नतीजे हैरान करने वाले हैं. दिल्ली के ज्यादा प्रदूषित इलाकों में रह रही मांओं से जन्म लेने वालों के बच्चों के फेफड़े सिकुड़ने का खतरा रहता है. जानिए कैसे जन्म से पहले प्रदूषण बच्चों को घेर रहा है और दिल्ली के किस इलाके में रहने पर आपकी जान को ज्यादा खतरा है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

जन्म लेने वाले बच्चों के लिए खतरनाक
दरअसल, दिल्ली की हवा अस्पतालों का बोझ बढ़ा रही है. कोई इन्हेलर का इस्तेमाल सीखने को मजबूर है तो कोई मास्क लगाकर घूम रहा है. ये दोनों चीजें इन दिनों दिल्ली की मजबूरी बन चुके हैं. लेकिन इससे बड़ी परेशानी है बच्चों की सेहत. एम्स की स्टडी के मुताबिक एयर पॉल्यूशन सबसे ज्यादा छोटे बच्चों और जन्म लेने वाले बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है. एम्स में दिल्ली के प्रदूषण पर जो स्टडी की गई उसके नतीजे डराने वाले हैं.


Air Quality 400 या उससे ज्यादा
एम्स की एमरजेंसी में आने वाले 1 लाख 32 हज़ार बच्चों की स्क्रीनिंग की गई. स्टडी के लिए 19120 ऐसे बच्चों को रजिस्टर किया गया था जिनकी उम्र 15 साल से कम थी, जो 2 हफ्ते से ज्यादा से सांस फूलने और खांसी से परेशान थे. ये सभी बच्चे एक महीने से ज्यादा समय से दिल्ली में रह रहे थे. दिल्ली में आज Air Quality हर जगह लगभग 400 या उससे ज्यादा है. रोहिणी में Air Quality 432 तो आनंद विहार में 452 है. अब आप देखिए कि एम्स की स्टडी में क्या पाया गया और अंदाजा लगाइए कि आज दिल्ली एनसीआर में रहने वालों की उम्र कितनी कम हो रही होगी.


एम्स के मुताबिक बेहद प्रदूषित दिनों यानी AQI 300 से उपर होने वाले दिनों में 29 प्रतिशत बच्चे बाकी दिनों के मुकाबले अस्पताल पहुंचे. जबकि 200 AQI वाले प्रदूषित दिनो में 21 प्रतिशत बच्चे बाकी दिनों के मुकाबले ज्यादा एम्स के एमरजेंसी डिपार्टमेंट तक पहुंचे.


स्टडी के रिज़ल्ट्स के मुताबिक  
98% बच्चों को खांसी थी  
84% की सांस फूल रही थी 
83% बच्चों को जुकाम और एलर्जी की समस्याएं थी 
62% को सांस लेने में खरखराहट की आवाज थी   
इन सभी बच्चों में ये लक्षण 4 दिनों से ज्यादा बने हुए थे
85% बच्चों को एमरजेंसी में दिन भर के लिए रखकर इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई


14% बच्चों को एडमिशन की जरुरत पड़ी
और 1% ऐसे भी थे जिन्हें साथ में दूसरे डिपार्टमेंट से भी इलाज लेना पड़ा – यानी उन्हें सांस के साथ साथ दूसरी  
7 बच्चों की हालत इतनी गंभीर थी कि उनकी मौत हो गई। हालांकि कुल बच्चों का ये केवल 0.2%था  


खराब हवा में रहने का बुरा असर
ये स्टडी दिल्ली के एम्स और बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल कलावती सरन अस्पताल में की गई थी. स्टडी में देखा गया कि एक दिन खराब हवा में रहने का बुरा असर एक या दो दिन नहीं, कम से कम 7 दिनों तक बना रहता है. एम्स के डॉक्टरों ने सावधान किया है कि बच्चों पर प्रदूषण का असर बाकियों के मुकाबले ज्यादा पड़ता है. 
जिसकी वजहें हैं कि  
- बच्चों के फेफड़े विकसित हो रहे होते हैं. फेफड़ों की ग्रोथ मां के गर्भ में पांचवे हफ्ते से शुरु हो जाती है लेकिन 20 से 25 साल की उम्र तक ये ग्रोथ जारी रहती है.
- बच्चों की सांस की गति वयस्कों के मुकाबले ज्यादा तेज़ होती है.
- बच्चों की आउटडोर एक्टिविटी बड़ों के मुकाबले ज्यादा होती है.


एम्स के एयर पॉल्यूशन स्टडी के लीड रिसर्चर डॉ सुनील काबरा का खाना है कि रिसर्च में ये पाया गया कि बच्चों के फेफड़ों को एयर पॉल्यूशन की वजह से पैदा होने से पहले ही नुकसान हो सकता है. उनकी सांस लेने की क्षमता हमेशा के लिए प्रभावित हो सकती है. फेफड़ों की परत में सूजन आ सकती है – यहां तक कि ब्रेन के पूरी तरह विकसित होने में मुश्किलें आ सकती हैं.


उत्तरी दिल्ली वाले AIR POLLUTION की वजह से अस्पताल पहुंच सकते हैं
दिल्ली के आनंद विहार, मंदिर मार्ग, आर के पुरम और पंजाबी बाग से लगातार प्रदूषण का डाटा इकट्ठा किया गया. और 24 घंटे के प्रदूषण का औसत लिया गया. उत्तर पश्चिमी दिल्ली सबसे प्रदूषित रही जबकि दक्षिण पश्चिम दिल्ली सबसे कम प्रदूषित रही. दिल्ली के अरबिंदो मार्ग पर सबसे कम प्रदूषण रिकॉर्ड हुआ. आनंद विहार पर सबसे ज्यादा प्रदूषण रिकॉर्ड किया गया.
इस दौरान वजीरपुर और जहांगीरपुरी से सबसे ज्यादा मरीज एमरजेंसी तक पहुंचे 
जबकि नजफगढ़ और अरबिंदो मार्ग से सबसे कम मरीज एम्स पहुंचे.
स्टडी के दौरान मार्च 2018 से फरवरी 2019 के बीच दिल्ली के 22 एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन के डाटा की मैपिंग भी की गई.
मार्च से जून में दिल्ली एयर क्वालिटी के हिसाब से हरे और पीले रंग में नजर आई.


दिल्ली का नक्शा हरे रंग में बदला
जुलाई से सितंबर के बीच दिल्ली का नक्शा हरे रंग में बदला – इस दौरान बारिश की वजह से दिल्ली की हवा साफ रही. लेकिन सर्दियों में पूरी दिल्ली लाल यानि बेहद प्रदूषित हालात में मिली. अस्पतालों में बढ़ रही भीड बता रही है कि दिल्ली की हवा में इस वक्त एक एक सांस लेना भारी है.


एयर क्वालिटी एमरजेंसी हालात
अमेरिका की एयर क्वालिटी इंडेक्स की परिभाषा के मुताबिक 300 से उपर एयर क्वालिटी एमरजेंसी हालात कहलाएगी क्योंकि ये हर उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है और सभी को घर में रहने की सलाह दी जाती है. 300 से उपर के AQI में पीएम 2.5 का स्तर बेहद ज्यादा होता है ये इतने महीन कण होते हैं जो सांस के जरिए शरीर में जमा होते रहते हैं और फेफड़ों से लेकर खून और ब्रेन हर जगह पहुंच जाते हैं.


क्या करें-क्या ना करें
आदर्श स्थिति में इस वक्त दिल्ली वालों को घर के खिड़की दरवाजे बंद करके अंदर ही रहना चाहिए.
गुनगुना पानी पीते रहना चाहिए ये शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद करता है.
सुबह और शाम के समय बाहर नहीं निकलना चाहिए.
दोपहर में धूप निकलने पर धूल के कण कम होने लगते हैं
हवा चलने और धूप निकलने पर एक्सरसाइज़ की जा सकती है.
4 दिन से ज्यादा खांसी जुकाम होने पर डॉक्टर से दवा जरुर लें.