DNA ANALYSIS: नाजुक मोड़ पर पहुंचा Farmers Protest, एक्शन मोड में आई सरकार
Farmers Protest: शान से चलने वाला झूठ एक ना एक दिन लड़खड़ाकर गिरता जरूर है. जब झूठ की हार होती है तो सत्य का मार्ग बुलंद हो जाता है और हमें ये बताते हुए गर्व हो रहा है कि Zee News अकेला ऐसा चैनल है जो सत्य के मार्ग पर चलता रहा और हमने निडर होकर किसान आंदोलन का सच पूरे देश को बताया.
नई दिल्ली: 26 जनवरी को दिल्ली में भड़की हिंसा के नतीजे दिखने शुरू हो गए हैं और सरकार अब एक्शन में है. उत्तर प्रदेश सरकार ने गाजियाबाद और दूसरी जगहों पर चल रहे प्रदर्शनों को खत्म करवाने के लिए सख्त निर्देश दिए हैं और इसकी जिम्मेदारी जिला अधिकारियों को सौंपी गई है. दिल्ली पुलिस की भी इस पर एक अहम बैठक हुई है.
नाजुक मोड़ पर पहुंचा किसान आंदोलन
ऐसा लग रहा है कि 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद सरकार के सब्र का बांध टूट चुका है. आप कह सकते हैं कि पिछले 62 दिनों से चल रहा किसानों का ये आंदोलन (Farmers Protest) अब नाज़ुक मोड़ पर है और ये कभी भी खत्म हो सकता है.
इसके लिए सरकार की तरफ से गाजीपुर में चल रहे प्रदर्शन पर एक नोटिस भी चिपकाया गया है. जिसमें साफ लिखा है कि जो किसान सड़कों को खाली नहीं करेंगे, उन पर कार्रवाई की जाएगी. इसके अलावा हरियाणा सरकार ने भी नेशनल हाईवे नंबर- 48 को खाली करने के लिए कहा है. सिंघु बॉर्डर पर भी भारी पुलिस बल की तैनाती की गई है.
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जिम्मेदारी लेने से भाग रहे राकेश टिकैत
हालांकि अपनी जिम्मेदारी से भाग जाने वाले किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने एक ऐसा बयान दिया है, जिससे गाजीपुर बॉर्डर पर टकराव की स्थिति बन सकती है. राकेश टिकैत ने ऐलान किया है कि वो पुलिस की तरफ से गोली चलने पर भी सड़क को खाली नहीं करेंगे. राकेश टिकैत ने कहा कि गोली चलाओ, सड़क खाली नहीं करेंगे.
एक और बड़ा अपडेट ये है कि अब लोगों ने भी इस आंदोलन के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है और ये लोग किसानों से सड़कें खाली करने की मांग कर रहे हैं. इससे पता चलता है कि अब लोगों का भी इस आंदोलन से भरोसा उठ चुका है और वो किसी भी कीमत पर दिल्ली की सीमाओं को खाली करवाना चाहते हैं. आज आपको इन लोगों के विचार भी सुनने चाहिए. क्योंकि ये वो लोग हैं, जिनके मौलिक अधिकारों की आवाज किसी ने नहीं उठाई.
अब हम सत्य के उस मार्ग के बारे में आपको बताना चाहते हैं, जिस पर शान से चलने वाला झूठ एक ना एक दिन लड़खड़ाकर गिरता जरूर है. जब झूठ की हार होती है तो सत्य का मार्ग बुलंद हो जाता है और हमें ये बताते हुए गर्व हो रहा है कि Zee News अकेला ऐसा चैनल है जो सत्य के मार्ग पर चलता रहा और हमने निडर होकर किसान आंदोलन का सच पूरे देश को बताया.
हमने फरमाइशी पत्रकारिता नहीं की. हमने दिन को रात और रात को दिन नहीं कहा. हमने पहले ही बता दिया था कि किसान आंदोलन हाईजैक हो चुका है और इसमें देश विरोधी विचारों की मिलावट हो गई है.
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आपको याद होगा जब देश का मीडिया किसान आंदोलन का महिमामंडन कर रहा था, उस समय Zee News ने देश को बताया था कि इस आंदोलन को खालिस्तान का समर्थन है. हम कई सबूतों के साथ देश के सामने आए और सच की डोर नहीं छोड़ी. हालांकि इसके लिए हमें निशाना भी बनाया गया. आंदोलन में Zee News के खिलाफ एक सरहद बना दी गई और हमें कवरेज करने से भी रोका गया ताकि हम सच को आप तक नहीं पहुंचा सकें.
हमें गोदी मीडिया भी कहा गया. हमें ट्विटर पर ट्रोल करने की भी कोशिशें हुईं. हमारे खिलाफ ऐसे लोगों का एक गुट दीवार बनकर खड़ा हो गया, जो नकली और झूठे सिद्धांतों से जुड़ा था. इसलिए आज सबसे पहले आपको किसान आंदोलन के सच के बारे में जानना चाहिए.
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भारत के लोकतंत्र पर हमला
जब सेकुलरिज्म की चाशनी में लिपटे लोग एक खास धर्म का झंडा किसी राष्ट्रीय धरोहर पर फहराते हैं तो कैसे लोकतंत्र का मूल विचार अपनी जड़ों को खोने लगता है. इसे समझने के लिए आपको आंदोलन में शामिल उन लोगों की बातें भी सुननी चाहिए जो कल तक हमारा विरोध कर रहे थे. लेकिन आज इन लोगों को लग रहा है कि अगर Zee News की बात इन्होंने पहले ही मान ली होती तो 26 जनवरी को पूरा देश इस आंदोलन की वजह से शर्मसार नहीं होता.
26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान लागू हुआ और हमारा देश एक गणतंत्र बना, तब शायद ही किसी ने ये सोचा होगा कि एक दिन इसी तारीख को लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई जाएंगी. संवैधानिक मूल्यों को कुचल दिया जाएगा और मुट्ठीभर लोग भारत के गणतंत्र पर पैर रखकर उसे रौंदने की कोशिश करेंगे.
लेकिन ये हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि जिस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था, उसी दिन संविधान का मुट्ठीभर लोगों ने गला घोंटने की कोशिश की और नफरत का वायरस इतनी तेजी से फैला कि इसने दिल्ली को बंधक बना दिया. हमें लगता है कि ऐसा करने वाले लोग किसान हो ही नहीं सकते, इसीलिए जरूरी है कि आप इन लोगों के बारे में जानें और खुद तय करें कि क्या ये लोग किसान हो सकते हैं.
15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जिस लाल किला से देश के प्रधानमंत्री भारत के नागरिकों को संबोधित करते हैं. उस पर कुछ मुट्ठीभर लोगों ने हमला कर दिया. उग्र भीड़ में शामिल एक प्रदर्शनकारी ने लाल किला पर झंडा फहराकर देश के लोकतंत्र को चुनौती दी और भारत के 135 करोड़ लोगों के गौरव को भी ललकारा.
हम मानते हैं कि ये भारत का Capitol Hill Moment था. जैसे अमेरिका में कुछ लोगों की भीड़ ने वहां के लोकतंत्र को धक्का देकर गिराने की कोशिश की थी, ठीक वैसे ही देश की राजधानी दिल्ली में किसान आंदोलन के नाम पर लोकतंत्र को निशाना बनाया गया.
26 जनवरी के दिन एक प्रदर्शनकारी पुलिस के जवानों पर हमला करते हुए दिखा. जिस पुलिस ने इन लोगों को गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाजत दी थी, उसी पुलिस पर इन लोगों ने तलवार से हमला कर दिया और ये बता दिया कि इन्हें ट्रैक्टर परेड निकालने की मंजूरी देना सबसे बड़ी गलती थी.
किसानों ने पुलिसवालों पर ट्रैक्टर चढ़ाकर उनकी जान लेने की कोशिश की. सोचिए क्या इस दिन के लिए हमारे देश ने आजादी के लिए संघर्ष किया था? और क्या भगत सिंह ऐसे भारत के लिए सिर्फ 23 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ गए थे? अब आप खुद तय करिए कि क्यों ना इन लोगों को देश का दुश्मन कहा जाए. खुद को किसान बताने वाले इन लोगों ने पुलिस के जवानों को बेरहमी से पीटा.
दुनिया में पहला ट्रैक्टर वर्ष 1894 में अमेरिका में बनाया गया था और इसका उद्देश्य खेती को आसान बनाना था. लेकिन अब लगता है कि ट्रैक्टर से नफरत की खेती भी होने लगी है, जिसमें आपके पैसों से खरीदी गई एक सरकारी बस को ट्रैक्टर से गिराने की कोशिश की गई. इसके अलावा किसान पुलिस के जवानों पर पत्थर फेंकते हुए नजर आए.
ट्रैक्टर परेड में एक ऐसा दृश्य भी देखने को मिला, जिसने भारत के गणतंत्र को शर्मसार कर दिया. इसमें घायल पुलिसवाले सड़क पर मदद का इंतजार करते दिखे, पुलिस के जवानों का ये हाल उन लोगों ने किया जो खुद को किसान कहते हैं.
दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की ट्रैक्टर परेड के लिए तीन रूट तय किए थे और इस पर किसान नेताओं ने सहमति भी दी थी. लेकिन जब ये परेड शुरू हुई तो ये लोग दिल्ली के दूसरे इलाकों में घुस गए और पुलिस की तरफ से लगाए गए बैरिकेड भी नीचे गिरा दिए. सबसे अहम इन लोगों ने पब्लिक प्रॉपर्टी को भी काफी नुकसान पहुंचाया.
कहते हैं कि कानून का पालन करने वाले लोगों को ही सरकार के बनाए किसी कानून का विरोध करने का अधिकार होता है. लेकिन इन लोगों ने एक नया उदाहरण पेश किया और ये साबित कर दिया कि इन्हें देश की व्यवस्था और संविधान में कोई विश्वास नहीं है. हम फिर कहना चाहते हैं कि हिंसा करने वाले ये लोग किसान हो ही नहीं सकते.
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