Game Changer Review: रामचरण, कियारा आडवाणी, अंजलि,एसजे सूर्या, सुनील, जयराम और श्रीकान्त आदि से सजी ‘गेम चेंजर’ सिनेमाघरों में आ चुकी है. 6 साल बाद रामचरण की कोई सोलो मूवी लेकर आए हैं. तो चलिए बताते हैं कैसी है ये फिल्म. पढ़िए गेम चेंजर फिल्म का रिव्यू.
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निर्देशक: शंकर
स्टारकास्ट: रामचरण, कियारा आडवाणी, अंजलि,एसजे सूर्या, सुनील, जयराम और श्रीकान्त आदि
कहाँ देख सकते हैं: थिएटर्स में
स्टार रेटिंग: 3
6 साल बाद रामचरण की कोई सोलो मूवी आई है और दूसरी ख़ास बात है कि तमिल फ़िल्मों में कई सुपर सुपर हिट बनाने वाले शंकर ने पहली बार कोई मूवी तेलगू में बनाई है. ऐसे में उनके फ़ैन्स को बेसब्री से इस मूवी का इंतजार था और नाम भी था ‘गेम चेंजर’ सो लोगों की उम्मीदें और भी ज़्यादा बढ़ गयीं थीं. ऐसे में KGF, पुष्पा 2 या बाहुबली होने की उम्मीद करने वालों को निराशा ही हाथ लगेगी लेकिन ये भी तय है कि फ़िल्म का सस्पेंस और लगातार कहानी में होने वाले उतार चढ़ाव आपको बोर भी नहीं होने देंगे.
कहानी
कहानी है राम चंद्रन (राम चरण) की जो एक IAS ऑफिसर है, ज़िला कलेक्टर के पद पर रहते हुए वो राज्य के वित्त मंत्री सत्यमूर्ति (एसजे सूर्या) से ही पंगा ले लेता है. सत्यमूर्ति प्रदेश के मुख्यमंत्री का बेटा है और तमाम तरह के ग़ैर क़ानूनी कार्यों में लिप्त है. अचानक ऐसे हालात बनते है कि जब सत्यमूर्ति अपने सीएम पिता की हत्या की साज़िश रच रहा होता है और उसका पिता अपना वारिस कलेक्टर राम नंदन को घोषित कर देता है और उनकी जगह राज्य का नया सीएम भी.
रामचरण के डबल रोल की भी मिस्ट्री
लेकिन फ़िल्म हर दस मिनट पर आपको चौंकाती है, कहानी मोड़ लेती है और राम नंदन को नई तैनाती मिलती है प्रदेश के मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप मैं, जिसके सामने चुनौती है कि सत्यजीत कहीं मुख्यमंत्री ना बन जाये. फ़िल्म में रामचरण के डबल रोल की भी मिस्ट्री है, जो इंटरवल के बाद शुरू होती है. ऐसे में ये शायद पहली बार हो कि किसी हीरो ने मुख्य चुनाव आयुक्त का रोल निभाया हो. तभी फ़िल्म का क्लाइमेक्स भी ईवीएम मशीनों के स्ट्रॉंग रूम में ख़त्म होता है.
कियारा पर भारी पड़ीं अंजलि?
मूवी में ऐसा कुछ भी नहीं है जो साउथ के प्रयोगधर्मी सिनेमा की बड़ी मूवीज़ में इसे शामिल कर सके लेकिन कहानी में इतने पेच डाले गये हैं कि कोई भी इसे एकदम ख़ारिज ना कर सके. फ़ार्मूले भी सारे डालने की कोशिश की गई है. फ़िल्म का हीरो रामचरण और फ़िल्म का विलेन एसजे जयसूर्या दोनों की ही परफॉरमेंस पीक पर हैं, जो फ़िल्म की जान है. कियारा आडवाणी को भले ही ढंग से इस्तेमाल ना किया गया हो लेकिन मूवी की दूसरी हीरोईन अंजलि के हिस्से में एक्टिंग के कई अच्छे शेड्स आये हैं.
'गेम चेंजर' का रिव्यू
हिन्दी दर्शकों के नाते मूवी में सबसे बड़ी कमी दिखती है, बाहुबली से सबक़ ना लेना. हिन्दी में डब किये गये गीतों के हिन्दी बोल सुनने मैं अजीब से लगते हैं, सो 2 घंटे 45 मिनट की मूवी में गीतों का लंबा हिस्सा उन्हें निराश करता है. काफ़ी हद तक पुरानी मूवीज़ जैसा ही राजनीतिक वातावरण इस मूवी में भी है, अलग है तो चुनाव आयुक्त का रोल और ईवीएम स्ट्रॉंग रूम में क्लाइमेक्स फिल्माना.
देखें या नहीं
मूवी के लिए की गई रिसर्च भी सींस में दिखती है कि कैसे चावलों में हेरा फेरी होती है, किसी अधिकारी को सीएम बनने से रोकने के लिए क्या पैतरा आज़माया जा सकता है, चुनाव आयुक्त कौन कौन सी ट्रिक किसी नेता को परेशान करने के लिए आज़मा सकता है. हालाँकि ये सब तभी हो सकता है जब मीडिया या सीसीटीवी कैमरों को पर्दे से ग़ायब ही कर दिया जाये और वही इस मूवी में किया गया है. सो कुल मिलाकर कम दिमाग़ लगाए फ़िल्म देखने वालों के लिए ये मूवी पैसा वसूल एंटरटेनिंग मूवी है, दिमाग़ लगाओगे तो पछताना तय है. आख़िर में वोट ना देने वालों के लिए एक क्रांतिकारी उपाय सुझाया गया है और एक दिलचस्प चुनावी वायदा भी कि सरकार आपके आगे घर के ऐसे चक्कर लगाएगी जैसे अमेज़न, स्विगी और जमेटो वाले घूमते हैं.