Gratuity Rules: ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम एक नियमित कर्मचारी और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के बीच अंतर नहीं करता है. कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को 75 वर्षीय रिटायर्ड ग्रुप 'डी' कर्मचारी के बकाया का भुगतान उस अवधि के संबंध में करने का निर्देश दिया जब उसने दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम किय.


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टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक बसवेगौड़ा द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए,जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा कि वरिष्ठ डाकघर अधीक्षक बनाम गुरसेवक सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ग्रामीण डाक सेवकों के पक्ष में फैसला सुनाया था, हालांकि वे पार्ट-टाइम कर्मचारी थे.


1971 को सरकारी स्कूल को किया ज्वाइन
बसवेगौड़ा 18 नवंबर, 1971 को ग्रुप-डी कर्मचारी के रूप में गवर्नमेंट हाई स्कूल, जी मल्लिगेरे, मांड्या तालुक को ज्वाइन किया था. उन्हें 1 जनवरी, 1990 को सेवा में नियमित किया गया. 31 मई, 2013 को लगभग 42 वर्षों की सेवा के बाद रिटायरमेंट पर, उन्हें 1 जनवरी, 1990 से उनकी सेवा के लिए ग्रेच्युटी के रूप में 1,92,700 रुपये का भुगतान तय किया गया.


यह कहते हुए कि उन्हें 19 साल तक ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया गया, बसवेगौड़ा ने ग्रेच्युटी अधिनियम के तहत नियंत्रण प्राधिकरण में याचिका दायर की. प्राधिकरण ने उन्हें भुगतान की जाने वाली ग्रेच्युटी बकाया राशि 2,40,449 रुपये निर्धारित की. इसके बाद भी जब उन्हें बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया, तो उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.


सरकार ग्रेच्युटी का भुगतान करने से इनकार नहीं कर सकती
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस ने कहा,  यदि ऐसा कर्मचारी अधिनियम के तहत ग्रेच्युटी के भुगतान का हकदार है जैसा कि उपरोक्त निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किया गया है, तो सरकार याचिकाकर्ता को बकाया ग्रेच्युटी का भुगतान करने से इनकार नहीं कर सकती है.‘


क्या है ग्रेच्युटी को लेकर नियम?
ग्रेच्युटी किसी संस्था द्वारा उसके कर्मचारियों को दिया जाता है. लेकिन, इसके लिए संस्था में कम से कम 5 साल तक नौकरी करना जरूरी है. नौकरी छोड़ने या रिटायर होने के बाद संस्था द्वारा ग्रेच्युटी की रकम दी जाती है. कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए 'ग्रेच्युटी पेमेंट एक्ट' का निर्माण साल 1972 में किया गया था. ग्रेच्युटी पेमेंट एक्ट 1972 के नियमों के अनुसार यह अधिकतम 20 लाख रुपये तक हो सकती है.