मुंबई: बांद्रा (Bandra) में इकट्ठा हुई भीड़ को लेकर सबसे पहले ये कहा जाने लगा कि में वे ट्रेन शुरू होने की अफवाह सुनकर पहुंचे लेकिन सूत्रों के मुताबिक, मुंबई पुलिस को अब तक किसी भी शख्स से ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिससे ये साबित हो सके कि इन लोगों के बीच ट्रेन शुरू होने की कोई अफवाह असल में थी भी या नहीं.


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पुलिस सूत्रों ने बताया कि कुछ लोगों से अब तक हुई पूछताछ में उनके पास ट्रेन शुरू होने की अफवाह को लेकर कोई एसएमएस या वॉट्सएप मैसेज भी नहीं पाया गया.


ये बात तो लगभग सभी मीडिया ने भी बताई कि उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए ट्रेनें सीएसटी, दादर और एलटीटी से छूटती हैं न कि बांद्रा से. गुजरात और राजस्थान के लिए छूटने वाली कुछ ट्रेनें भी बांद्रा टर्मिनस से शुरू होती है जो कि बांद्रा स्टेशन से तकरीबन 1 से 2 किलोमीटर के फासले पर है. इन लोगों में से किसी के पास भी न कोई सामान नजर आया न ही महिला, बच्चों समेत कोई परिवार.


इतना ही नहीं ट्रेन की अगर वाकई कोई अफवाह होती तो मुंबई के कई अलग-अलग इलाकों से लोग बांद्रा पहुंचे होते लेकिन शहर में तकरीबन हर 2 किलोमीटर पर लगे चेक पोस्ट के चलते किसी और इलाके के लोगों का बांद्रा स्टेशन पहुंचने की गुंजाइश भी न के बराबर दिखाई देती है.


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घटनास्थल पर मौजूद पूर्व नगरसेवक और मौजूदा विधायक ने भी इस बात की पुष्टि की है कि इकट्ठा हुए लोगों में सिर्फ बांद्रा स्टेशन के आस पास के इलाकों की झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोग ही शामिल थे. ऐसे में नया सवाल सामने आया कि अगर ट्रेन की कोई अफवाह ही नहीं थी तो ये लोग एक साथ, एक ठिकाने पर, एक वक्त कैसे इकट्ठा हुए?


इसी जवाब के तलाश में हम बांद्रा स्टेशन से सटे उस शास्त्री नगर पहुंचे जहां कि झुग्गी झोपड़ियों में रहनेवाले लोग ही भीड़ का हिस्सा बने थे. यहां कुछ लोगों से मुलाकात हुई और उन्होंने दावा किया कि वे अपनी परेशानियों के लिए मंगलवार की भीड़ में शामिल थे. 


कुछ मजदूरों से हुई बातचीत में नया खुलासा हुआ. इन मजदूरों ने ऐसी बात बताई जो अब तक न किसी मीडिया को पता थी और शायद न ही पुलिस को. हो सकता है पुलिस को पता भी हो लेकिन इसमें उनकी नाकामयाबी उजागर न हो इसलिए उन्होंने ये बात सामने आने नहीं दी. आप खुद पढ़िए, इस मजदूर ने क्या कहा - 


"मैं बंगाल का रहने वाला हूं. मुंबई में मजदूरी कर पैसे कमाने आया था. कल की भीड़ में मैंने हिस्सा लिया था. सब लोगों ने एक दिन पहले ही डिसाइड किया था कि सब को कल 4 बजे मीटिंग के लिए आना है. बस्ती में रहने वालों ने ही आपस में ही एक दूसरों को यह मैसेज दिया था. हमारा कोई नेता या लीडर नहीं है, सब ने आपस में ही डिसाइड किया था. न कोई ट्रेन जाने की अफवाह थी न ही कुछ साजिश. हम जानते थे कि हम जब एक साथ इकट्ठा होंगे तो कोई न कोई बड़े लोग, आप जैसे मीडिया या पुलिस वाले लोग आएंगे जिनके सामने हम हमारी समस्या या बात रख सकते हैं. किसी को खाने की समस्या है तो किसी को गांव जाना है. यहां बहुत छोटे-छोटे मकान हैं, उसमें हम 10-10, 15 -15 लोग एक साथ रहते हैं. हमारी खुराक जितना भी खाना नहीं मिलता. एक आदमी को बस एक पैकेट मिलता है, दूसरा पैकेट भी नहीं मिलता. खाना भी बहुत ही सादा खाना होता है जिसमें सिर्फ वेज होता है, उबले हुए आलू होते हैं, कोई मसालेदार खाना नहीं होता. इसीलिए हम सब परेशान होकर अपनी बात सबके सामने लाने के लिए इकट्ठा हुए थे."


लगभग ऐसी ही बात एक और मजदूर ने बताई, इसी इलाके में रहनेवाले दो और लोगों ने भी यही कहानी सुनाई.


इस मजदूर की मांग बहुत सारे लोगों को बचकानी लगे लेकिन ये बात भी समझना जरूरी है कि "जिसका घाव उसी का दर्द". जरूरी नहीं कि हर बड़ी घटना के पीछे की वजह भी बड़ी हो, कई बार छोटी सी वजह भी बड़ी घटना को अंजाम दे सकती है.


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इनकी बात सुनकर तो यही लगा कि इस घटना के पीछे न कोई अफवाह थी और शायद न ही कोई राजनैतिक साजिश। 


इस मजदूर की बात अगर सच है तो जब योजना बनाई जा रही थी तब तो शायद ट्रेन शुरू होने की कोई खबर भी नहीं दिखाई गई थी. जवाब तो अब पुलिस को ही देना चाहिए कि एक दिन पहले से ही जब इलाके के लोग योजना बना रहे थे तो इसकी भनक एजेंसियों को क्यों नहीं लगी. हालांकि गृहमंत्री अनिल देशमुख ने अपने एक एक बयान में खुफिया एजेंसियों की भूमिका और उनके फेलियर की भी जांच किए जाने का आश्वासन दिया है. 


पुलिस ने अब तक कुल 3 एफआईआर दर्ज की है. पहली एफआईआर 800-1000 अज्ञात लोगों के खिलाफ भीड़ में शामिल होने और लॉकडाउन के नियम तोड़ने के लिए दर्ज की गई है. इस मामले में पुलिस ने अब तक 9 लोगों को दंगा करने के जुर्म में गिरफ्तार किया है.


दूसरी एफआईआर एक टीवी रिपोर्टर के खिलाफ कथित तौर पर गलत खबर चलाने को लेकर दर्ज की गई है जबकि तीसरी एफआईआर विनय दुबे नाम के शख्स के खिलाफ सोशल मीडिया के जरिए भड़काऊ वीडियो फैलाने के लिए दर्ज की गई है.


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