Polyandry In Tibet: बहुपत्नी या बहुपति की प्रथाएं कई समाजों में रही हैं लेकिन ज्यादातर जगहों पर समय के साथ ये परंपराएं खत्म होती जा रही हैं. महाराष्ट्र के सोलापुर में दो जुड़वा बहनों की एक ही युवक से शादी का मामला सामने आने के बाद फिर इस विषय पर चर्चा शुरू हुई है. हालांकि लड़के पर केस भी दर्ज हो गया है क्योंकि हिंदू मैरिज एक्ट में एक पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी नहीं की जा सकती है. आज हम आपको एक ऐसे देश की बारे में बताएंगे जहां यह प्रथा रही है. हालांकि अब काफी कम हो गई है. 


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तिब्बत में एक महिला के कई पति होने की परंपरा कुछ हिस्सों में रही है. यहां अधिकतर लोग खेती से जुड़े हैं. ज्यादतर परिवार जमीन के छोटे से टुकड़े पर निर्भर हैं. शायद यही कारण है कि इस देश में बहुपति की परंपरा देखने को मिलती है. कई भाइयों वाले परिवार में जमीन का बंटवारा न हो इसलिए एक ही स्त्री से भाइयों की शादी करा दी जाती है. इसके अलावा एक पति अलग कमाने-खाने के लिए बाहर जाए तो घर की देखभाल उतनी दूसरा पति करे यह तर्क भी बहुपति प्रथा का एक कारण माना जाता है.


गैरकानूनी घोषित होने के बाद भी जारी है प्रथा
तिब्बत में हुए कई समाजशास्त्रीय अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि फैमिली लॉ के आने के बाद से बहुपतित्व गैरकानूनी हो चुका है, ग्रामीण इलाकों में अब भी ये प्रथा छोटे स्तर पर जारी है. अमेरिकी सोशल एंथ्रोपोलॉजिस्ट मेवलिन गोल्डस्टेन के लेख वेन ब्रदर्स शेयर ए वाइफ से इस प्रथा के बारे में काफी जानकारी मिलती है. गोल्डस्टेन ने कई वर्ष तिब्बत में बिताएं हैं. वह लिखते हैं कि बहुपतित्व प्रथा के पक्ष में सबसे बड़ा तर्क जमीन को लेकर भाइयों में झगड़ा है. इन लोगों का मानना है कि बहुपति की प्रथा जमीन को लेकर झगड़ों पर रोक लगा सकती है.


कैसे होती है शादी
घर के बड़े बुजुर्ग शादी तय करते हैं. शादी की रस्में बड़े भाई के साथ होती है बाकी भाई गवाह के तौर पर शामिल होते हैं. लेकिन घर में वधू आने के बाद लड़की सबकी पत्नी कहलाती है.


महिला जब किसी एक भाई के साथ होती है तो कमरे के बाहर एक टोपी रख दी जाती है, जिसका अर्थ होता है कि जब तक कोई अंदर है, बाहर से कोई भीतर नहीं जाएगा. इस शादी से जन्मी संतानं कों सभी पति अपनी संतान मानते हैं.


तिब्बत के अलावा भी दुनिया के कई देशों में बहुपतित्व प्रथा रही है. केन्या के मस्साई समुदाय में बहुपतित्व को गलत नहीं माना जाता है. भारत के भी हिमाचल और दक्षिण के कई ट्राइब्स में ये प्रथा रही है. हालांकि अब ये चलन में नहीं है.


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