Jammu Kashmir News: जम्मू-कश्मीर की समृद्ध धार्मिक विरासत को बचाने के लिए सरकार ने कश्मीर के लगभग सभी बड़े मंदिरों के जीर्णोद्धार की योजना बनाई है. पहले चरण में 17 मंदिरों और धार्मिक स्थलों के जीर्णोद्धार का काम शुरू किया जाएगा, जिस पर 17 करोड़ रुपये खर्च होंगे. इन धार्मिक स्थलों में कुछ ऐसे है जो तीर्थ नहीं, बल्कि तीर्थराज कहलाते हैं जिनसे कश्मीरी पंडितों की जड़े जुड़ी हुई हैं. जम्मू कश्मीर सरकार का आर्कियोलॉजी विभाग अपनी देखरेख में इन मंदिरों और तीर्थ स्थलों का जीर्णोद्धार संबंधित जिला प्रशासन से करवाएगा. इन परियोजनाओं के लिए प्रशासनिक स्वीकृति प्रदान की गई है.


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J-K सरकार ने गहरी आस्था वाले कुल 71 धर्मस्थलों की सूची तैयार की है, जिनका जीर्णोद्धार होना है. बताया जा रहा है कि इसमें लगभग 420 करोड़ रुपये का खर्च होगा जिसे केंद्र सरकार वहन करेगी.


किन-किन मंदिरों का होना है जीर्णोद्धार?


पहले चरण में जिन मंदिरों व धर्म स्थलों का जीर्णोद्धार कराया जाना है, उनमें- पहलगाम का प्राचीन ममलेश्वर मंदिर और गौरी शंकर मंदिर, अनंतनाग जिले में अकिंगम में ऐतिहासिक शिव भगवती मंदिर, सालिया में पापरन नाग मंदिर, खीरम में माता रागन्या भगवती मंदिर, अनंतनाग के लोगरीपोरा अश्मुकाम में खीर भवानी मंदिर, सालिया में करकुट नाग मंदिर.  पुलवामा के गुफकराल त्राल, द्रंगबल पंपोर में श्री सिद्धेश्वर मंदिर हैं, जो वार्षिक अमरनाथ यात्रा के लिए महत्वपूर्ण है. इनके इलावा कई और छोटे छोटे मंदिर जिनका जीर्णोद्धार होना है.


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लारकीपोरा में स्थित 'तीर्थराज' लोकभवन के मंदिर कश्मीर में अशांति के दौरान पूरी तरह से नष्ट हो चुके थे. यहां के लिए 3.21 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. यह स्थान कश्मीरी पंडितों के लिए बेहद महत्व रखता है. ऑल जेके माइग्रेंट (कश्मीर यूनिट) पंडित एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय कौल ने कहा, 'इसका बहुत बड़ा इतिहास है. यह तीर्थों में तीर्थ है. तीर्थराज लोकभवन जहां खुद शेषनाग का रूप है, यहां पर सिद्ध लक्ष्मी है. यहां महाकाल भैरव है.'


कौल ने कहा, 'हम केंद्र सरकार और राज्य सरकार के शुक्रगुजार हैं जिन्होंने जितने भी हमारे तीर्थ हैं, मंदिर हैं, उनको नवीनीकृत करने का कदम उठाया. यह हमारी धरोहर है और जब हमारी धरोहर है, तब हम हैं.


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'शायद वापस आएंगे कश्‍मीरी पंडित'


संजय कौल ने कहा कि माता रानी की कृपा से यहां फिर कश्मीरी पंडित आएंगे. उन्होंने कहा, 'पंडित ही नहीं बल्कि कश्मीर के स्थानीय मुस्लिम भी चाहते हैं की पंडित लोगों की वापसी हो. नई पीढ़ी का कहना है कि हम ने अब तक सुना ही था कि इन मंदिरों में मेले लगते थे, हम देखना भी चाहते है.


हमीम अहमद ने कहा कि 'ऐसा होना चाहिए क्योंकि यहां हम इनको सहयोग देते हैं, हमें मजा भी आता है. यह लोग भी अपना त्यौहार मनाते हैं. हम देखना चाहते हैं पहले क्या होता था और आज क्या होता है, इससे भाईचारा भी बढ़ाता है.