Aruna Shanbaug Rape Case 1973: कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक युवा लेडी डॉक्टर के साथ जघन्य बलात्कार और हत्या ने अस्पतालों में महिला कर्मचारियों के लिए काम के हालात और नाकाफी सुरक्षा इंतजामों को फिर से सुर्खियों में ला दिया है. हड़ताल और आंदोलन कर रहे डॉक्टर और नर्स दोनों ने अस्पतालों में खुद को असुरक्षित बताया है. 


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कोलकाता कांड से ताजी हुई 50 साल से ज्यादा पुरानी दहशत


कोलकाता के इस दर्दनाक कांड ने उस नर्स की यादें भी ताजा कर दी हैं जिस पर 50 साल पहले काम के दौरान बेरहमी से हमला किया गया था. उसके साथ दरिंदगी की गई और मरने के लिए छोड़ दिया गया था. हालांकि, उस वीभत्स केस ने बाद में देश की दिशा बदल दी थी. आइए, जानते हैं कि वह केस क्या है और उस खतरनाक आपराधिक वारदात को कब अंजाम दिया गया था. साथ ही उस मामले ने कैसे पूरे देश को झकझोर दिया था?


केईएम अस्पताल के बेसमेंट में अपने ड्यूटी रूम में बनीं शिकार


यह 1973 की बात है जब केईएम अस्पताल, परेल, मुंबई की 25 वर्षीय नर्स अरुणा शानबाग अस्पताल के बेसमेंट में अपने ड्यूटी रूम में गई थीं. यहीं पर सोहनलाल भरता वाल्मिकी नाम के एक सफाई कर्मचारी ने उसे घेर लिया और उसके साथ बलात्कार किया. उस राक्षस की क्रूरता यहीं खत्म नहीं हुई. उसने कुत्ते की जंजीर से अरुणा का गला घोंट दिया और तड़प-तड़प कर मरने के लिए वहीं छोड़ दिया.


टूटी हुई थी रीढ़ की हड्डी, 24 घंटे तक बेहोशी की हालत


जब अस्पताल के कर्मचारियों ने अरुणा को ढूंढकर निकाला तो उसकी रीढ़ की हड्डी टूटी हुई थी. इसके बाद वह 24 घंटे तक बेहोशी की हालत में थी. अस्पताल की नर्सें अरुणा शानबाग की तब तक देखभाल करता रही थीं जब तक कि सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले ने उसे राहत देने के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं दे दी. इस केस से देश की कानूनी और नैतिक चर्चा हमेशा के लिए बदल गई.


साथी नर्सों ने दशकों तक प्यार से की अरुणा की देखभाल


अरुणा शानबाग की मौत तक साथी नर्सों ने काफी प्यार से उनकी देखभाल की. उनकी केयर करने वाली कई नर्सों ने तो उनके बलात्कार के कई साल बाद अस्पताल को ज्वाइन किया था. केईएम अस्पताल की कई नर्सों ने कई साल तक डर से बेसमेंट में जाने से भी परहेज किया था. वे डर रही थीं कि उनके साथ भी ऐसा ही हो जाएगा. इसके बाद अस्पताल प्रशासन ने बेहतर सुरक्षा उपायों के साथ चेंजिंग और ड्यूटी रूम को ऊपर की मंजिल पर शिफ्ट कर दिया था.


अरुणा शानबाग केस में न्याय पाने की लेटलतीफ प्रक्रिया ही सजा


जब अरुणा शानबाग पर हमला हुआ तो वहां सीसीटीवी कैमरे की कोई कल्पना नहीं थी. हालांकि अपराधी पकड़ा गया था, लेकिन शानबाग की देखभाल करने वाली नर्सों ने कहा, "न्याय पाने की लेटलतीफ प्रक्रिया ही सज़ा थी. हम उसकी देखभाल करते थे और अक्सर सोचते थे कि क्या हम अगले शिकार हो सकते हैं या हम कितने सुरक्षित हैं. हमारे परिवारों ने हमें काम छोड़ने के लिए कहा, लेकिन अरुणा की हालत ने बेहतर सुविधाएं पाने के हमारे संकल्प को और मजबूत कर दिया था.''


पिंकी विरानी की किताब 'बिटर चॉकलेट' में विस्तार से जिक्र


25 वर्षीया नर्स अरुणा शानबाग पर हमला और बलात्कार के बाद इंसाफ के लिए लंबा इंतजार और इच्छामृत्यु पर बहस को बदल देने वाले कोर्ट के फैसले को उसकी याचिकाकर्ता पिंकी विरानी की किताब 'बिटर चॉकलेट' में विस्तार से बताया गया है. इसके मुताबिक, अरुणा शानबाग का मामला भी कमोबेश कोलकाता हॉरर केस जैसा ही था जहां उसने सफाईकर्मी के प्रस्तावों को ठुकरा दिया था. 


अरुणा शानबाग ने ठुकरा दिया था दरिंदे के प्रेम का प्रस्ताव


ड्यूटी पर मौजूद नर्सों ने तब बताया था कि वाल्मिकी अक्सर शानबाग को प्रपोज करता था, लेकिन उसने अस्वीकार कर दिया था.  माना जाता है कि इसी बात से वह हैवान नाराज था और वह उसकी हर गतिविधियों पर लगातार नजर रख रहा था. उस समय, वाल्मिकी ने मासिक धर्म के दौरान शानबाग के साथ बलात्कार और अप्राकृतिक यौनाचार किया था. शुरू में उसे सात साल जेल की सजा काटने के बाद छोड़ दिया गया था, लेकिन फिर बाद में उसे फिर पकड़ा गया था.


वर्क प्लेस पर हमेशा लोगों के सामने रहती हैं नर्स और डॉक्टर 


50 से अधिक वर्षों के बाद, आरजी कर अस्पताल में बलात्कार के मामले ने एक बार फिर इस मुद्दे को जिंदा कर दिया है कि नर्सों और महिला डॉक्टरों के लिए कार्यस्थल कितने सुरक्षित हैं? यह एक ऐसा काम है जो उन्हें 24 घंटे तमाम तरह के लोगों के साथ और आमने-सामने लाता ही है. केईएम अस्पताल की एक नर्स ने कहा, "इसका मतलब वह घृणित क्षण कभी भी हो सकता है जब चीजें पूरी तरह गलत हो सकती हैं."


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क्या अरुणा शानबाग केस के बाद सच में कोई चीज बदली है?


केईएम अस्पताल की एक नर्स ने बताया कि आरजी कर अस्पताल केस ने नर्स और लेडी डॉक्टर समुदाय में एक बार फिर वही डर पैदा कर दिया है. उन्होंने कहा, “काम पर महिलाएं, चाहे नर्सें हों या डॉक्टर, कड़ी मेहनत करती हैं क्योंकि यह एक महान पेशा है. लेकिन जब हमने आरजी कर में पीड़िता की स्थिति के बारे में सुना, तो मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या अरुणा शानबाग मामले के बाद हकीकत में कोई चीज बदली है. ”


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आरजी कर अस्पताल की वारदात से दहशत में नर्स और डॉक्टर्स 


कोलकाता के आरजी कर अस्पताल की दहशत ने नर्सों के लिए काम पर सुरक्षा पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. देश भर में इस खतरनाक अपराध के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं और कोलकाता मामले की सीबीआई जांच हो रही है. कई लोग इस मौके पर अरुणा शानबाग और कई लोग निर्भया गैंगरेप केस के दर्दनाक समय को याद कर रहे हैं. क्योंकि यह मुश्किल सवाल का कोई जवाब नहीं दे सकता कि काम पर महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं?


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