छत्तीसगढ़ के कोरिया जिला में एक पहाड़ी है, जिसका नाम है हवाईडोंगरी. इसे ये नाम अंग्रेजी शासन के दौरान क्रैश हुए ब्रिटिश एयरक्रॉफ्ट के कारण मिला. आइये जानते हैं हवाई डोगरी की पूरी कहानी.
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सरवर अली/कोरिया: छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में इतिहास की एक ऐसी कहानी है, जिसे आज तक किसी दस्तावेज में स्थान नहीं मिला, लेकिन यहां के लोगों के दिमाग में आज भी वो घटना जीवंत हैं. अब से 78 साल पहले साल 1944 में अंग्रेजी शासन के दौरान भरतपुर इलाके की पंचायत कुंवारपुर के पास जंगलों में स्थित पहाड़ी एक एयरक्रॉफ्ट क्रैश हुआ. हादसे में दो ब्रिटिश सैन्य अफसरों की मौत हो गई, जिस कारण गांव वाले उसे हवाईडोंगरी कहने लगे. गांव वालों ने आज भी उस घटना के सबूतों को संजो कर रखा है, जिसे वो किसी दस्तावेज में स्थान दिलाना चाहते हैं.
घटना के 54 साल बाद खुला राज
15 जुलाई सन 1944 जनकपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर कुंवारपुर के घनघोर जंगल में एक ब्रिटिश एयरक्रॉफ्ट दुर्घटनाग्रस्त होकर गिरा गया. उसके बाद जंगल में आग लग गई थी. दुर्घटना में ब्रिटिश सेना के दो अफसर एच टटचेल और आर ब्लेयर की मौत हो गई थी. इस घटना का राज कई सालों तक गांव में ही दफन रहा. घटना के 54 साल बाद सन 1998 को इसकी जानकारी ब्रिटिश हाई कमीशन को लगी, जिसके 14 सितंबर 1999 को ब्रिटिश हाई कमीशन के ग्रुप कैप्टन ई बिज और मृतक सैन्य अफसरों के परिजन घटना स्थल पर पहुंचे.
ब्रिटिश हाई कमीशन और मृतक सैन्य अफसरों के परिजनों ने ग्रामीणों से मिलकर घटना के बारे में जानकारी ली. गांव वालों ने उन्हें घटना स्थल का निरीक्षण कराया, जहां आज भी एयरक्रॉफ्ट के कुछ छोटे-बड़े पार्ट नजर आते हैं. एयरक्रॉप्ट के बड़े पार्टस् को गांव के बुजुर्ग लाल बहादुर सिंह के घर सुरक्षित रखा गया है, लेकिन उनके पास इस घटना और इन सामग्रियों के बारे में कोई दस्तावेज नहीं हैं.
घटना की याद में बनाया गया एक कमरा
साल 2001 में भरतपुर में एक बार फिर 1944 एयरक्रॉफ्ट दुर्घटनाग्रस्त में मारे गए ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों के परिजन गांव पहुंचे. उन्होंने मृतकों की याद में कुंवारपुर प्राइमरी स्कूल में एक अतिरिक्त कमरा निर्माण कराया. बाद में 22 मई 2001 को ब्रिटिश हाई कमीशन के ग्रुप कैप्टन आरई बिज की मौजूदगी में इस भवन का लोकार्पण कराया गया और बच्चों को पाठ्य सामग्री भी दी गई.
जर्जर हो रहा इतिहास
22 मई 2001 बाद भरतपुर में न तो कोई ब्रिटिश अधिकारी आया न ही मृत सैन्य अधिकारियों के परिजन यहां पहुंच. स्थानीय व जिला प्रशासन की उदासीनता व समुचित रखरखाव नहीं होने के कारण ब्रिटिश सैन्य अफसरों की याद में बना अतिरिक्त कमरा जर्जर हो चुका है. ग्रामीण चाहते हैं कि जिस घटना का जीवंत स्वरूप आज भी उनके सामने है और जिसकी कहानियां उनके बुजुर्ग बताते आए है. उसे प्रशासन संरक्षित करे. उनके गांव से जुड़े से घटना दस्तावेजों के आभाव में कही इतिहास के पन्नों से गायब न हो जाए.
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