नारायणपुर का ऐतिहासिक मावली मेला शुरू, 800 साल पुराना है इसका इतिहास
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नारायणपुर का ऐतिहासिक मावली मेला शुरू, 800 साल पुराना है इसका इतिहास

मावली मेले के शुभारंभ के दौरान रस्म अदायगी में देवी-देवता और आंगादेव के साथ-साथ क्षेत्र के सभी पुजारी भी बड़ी संख्या में माता मावली के परघाव रस्म अदायगी में शामिल हुए.

नारायणपुर का ऐतिहासिक मावली मेला शुरू, 800 साल पुराना है इसका इतिहास

नारायणपुरः नक्सल प्रभावित जिले नारायणपुर अपनी भारी वन संपदा और नैसर्गिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है. अपनी संस्कृति को जिंदा रखने के लिए यहां हर साल ऐतिहासिक मावली मेला भी आयोजित होता है. 800 साल पुरानी यह प्रथा इस साल भी माता मावली मंदिर की ढाई परिक्रमा करने के साथ शुरू हुई. यह मेला 27 फरवरी तक चलेगा. 
 
मेले के शुभारंभ के दौरान रस्म अदायगी में देवी-देवता और आंगादेव के साथ-साथ क्षेत्र के सभी पुजारी भी बड़ी संख्या में माता मावली के परघाव रस्म अदायगी में शामिल हुए और माता मावली का आशीर्वाद लिया. परघाव की रस्म में माता मावली के मंदिर से जुलूस निकालकर बुधवारी बाजार में देवी-देवताओं के मिलन के बाद आड़मावली माता मंदिर के ढाई परिक्रमा की रस्म पूरी की गई. जुलूस के दौरान देवी देवताओ और आंगा देवो का जगह जगह पर मिलन और  नाचने गाने का सिलसिला चलता रहा.

क्यों है मावली मेला का महत्व 
नारायणपुर का मावली मेला अपनी संस्कृतियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यह मावली मेला 800 वर्ष पुरानी मावली परघाव की रस्म के चलते अपनी एक अलग ही पहचान रखता है. इस मेले में यहां की संस्कृति को देखने के लिए देश विदेश के साथ महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ के कई जिलो के लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं. यह बस्तर के आदिवासियों का सबसे बड़ा मेला है. इस मेले में बस्तर संभाग के सभी क्षेत्रों के आदिवासी समाज के लोग जुटते है. इस मेले में आदिवासियों की संस्कृति देखने को मिलती है. यहीं कारण है कि इस मेले को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है. यह मेला क्षेत्र का सबसे बड़ा लोक उत्सव है.

नक्सली दहशत के चलते रौनक खो रहा है मावली मेला
मावली मेला महाशिवरात्रि के पहले बुधवार को आयोजित किया जाता है. इस मेले में देव समिति और जिला प्रशासन अपनी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं. वहीं मेले के स्वरूप में आये बदलाव और अबूझमाड़ के लोगों का मेले में शामिल न होना, मेले की रौनक को कम कर रहा है. हालांकि पारम्परिक रीति रिवाज के चलते इस मेले की पहचान आज भी बरकरार है. नगर पालिका के द्वारा मेले में रौनक को बरकरार रखने के लिए व्यवस्थित तरीके से दुकानों का आवंटन किया गया है तथा लाइट और पानी की व्यवस्था की गई है.

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800 वर्ष पुराने ऐतिहासिक मावली मेले में केवल रस्म अदायगी और संस्कृति ही बची रह गई है. मेले में जो भीड़ और माहौल आज से 3 दशक पूर्व दिखाई पड़ता था, वो आज नहीं है. जिसके पीछे का वजह नक्सली दहशत है.

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