Gaurela Pendra Marwahi News: पेंड्रा गौरेला के बीच पड़ने वाले सेंटोरियम में गौरेला पेंड्रा मरवाही का जिला मुख्यालय बनना प्रस्तावित है. इसमें सबसे पहले पेड़ो क कटाई की जा रही है. जो अब स्थानीय लोगों के विरोध का कारण बन गया है. रविवार को प्रकृति प्रमी और स्थानीय लोग मौके पर पहुंचे और विरोध जताकर नारेबाजी की.
गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का जिला मुख्यालय कलेक्ट्रेट एवं कमपोजिट (संयुक्त भवन) बिल्डिंग बनाने के लिए 100 से 200 साल पुराने हरे भरे औषधि वृक्षों को प्रशासन ने काटने के आदेश दिए हैं. कई पेड़ काट दिए गए हैं इनमें आम, जामुन, हर्रा, बहेरा, महुआ, अशोक शामिल हैं. लगभग 1000 वर्ष पुराने विशाल वटवृक्ष को भी काटने की अनुमति दी गई है. जिससे आम लोगों में आक्रोश है.
पेड़ों की कटाई से स्थानीय नागरिकों में रोष है. रविवार को लोगों ने कटे वृक्षों की ठूठ पर कफन चढ़ाकर वृक्षों से मांगी माफी और प्रशासन द्वारा काटने की अनुमति दिए गए वटवृक्ष में बांधा रक्षा सूत्र बाधने के साथ ही प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की.
पेंड्रा गौरेला मुख्य मार्ग पर स्थित सैनिटोरियम अपने प्राकृतिक वातावरण एवं आबोहवा के लिए प्रसिद्ध है. तभी यहां के वातावरण को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश शासन में एशिया का प्रसिद्ध टीवी हॉस्पिटल बनाया था. इसका प्रमुख कारण यहां साल सरई के वृक्षों के बीच उत्तम जलवायु और ऑक्सीजोन होना था.
यह वही इलाका है जहां राष्ट्रकवि रविंद्र नाथ टैगोर अपनी पत्नी का इलाज कराने आए थे. मुख्य मार्ग पर दोनों ओर साल सरई के घने ऊंचे ऊंचे वृक्ष किसी का भी मन मोह लेते हैं. परंतु पर्यावरण प्रेमीयो के लिए दुखद बात यह है कि अब जिला मुख्यालय बनाने के लिए यहां के कई पेड़ों को काट दिया जाएगा.
जिला प्रशासन ने गौरेला पेंड्रा मरवाही का जिला मुख्यालय के लिए कलेक्ट्रेट एवं संयुक्त भवन निर्माण के लिए इस स्थल का चयन किया है. नतीजा कलेक्ट्रेट भवन के लिए 100 से 300 वर्ष पुराने विशाल औषधिय हरे-भरे वृक्षों की बलि देनी होगी. जिसके लिए अन्य विभागीय अधिकारी से अनुमति भी मिल गई है. इन वृक्षों की कटाई भी शुरू कर दी गई है.
प्रारंभिक तौर पर हर्रा बहेरा, अशोक, आम इमली एवं महुआ जैसे 11 पेड़ों को काटा जा रहा है. फिर धीरे-धीरे उन पेड़ों को काटा जाएगा जिनको तैयार होने में सालों साल लग जाते हैं. आश्चर्य तो यह है कि अन्य विभागीय अधिकारी द्वारा दिए गए अनुमति में एक वट वृक्ष का भी जिक्र है जिसके तने का व्यास लगभग 30 मीटर है. अनुमान लगाया जा रहा है कि यह वृक्ष लगभग 1000 वर्ष पुराना है.
पेड़ों के कटने की बात सुनकर पर्यावरण प्रेमी एवं स्थानीय लोग नाराज हो गए. प्रशासन द्वारा काटे गए स्थल पर पहुंचकर विरोध जताया एवं ठूठ पर कफन चढ़ा कर उन वृक्षों से माफी मांगी. स्थानीय लोगों का कहना है कि इन्होंने हमारी कई पीढ़ियों को ऑक्सीजन एवं फल दिया है हम कटने के पहले इन पेड़ों को बचा नहीं सके. इसलिए हम एहसान फरामोश है और हम इन वृक्षों से माफी मांगते हैं.
साथ ही स्थानीय लोगों ने काटने के लिए प्रस्तावित किए गए पुराने वटवृक्ष के तने पर रक्षा सूत्र बांधकर प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की. लोगों का कहना है कि लगभग 1000 वर्ष पुराने इस वटवृक्ष देव की तरह है. रविंद्र नाथ टैगोर जब अपनी पत्नी की टीवी का इलाज कराने आए थे तब इन्हीं क्षेत्रों इन्हीं पेड़ों के पास रहा करते थे. उनकी आत्मा आज जार जार हो रही होगी.
स्थानीय लोगों ने कहा कि प्रशासन असंवेदनशील होकर वृक्षों की कटाई कर रहा है. इस जगह से लोगो की भावनाएं जुड़ी है, जबकि गुरुकुल का यह परिसर आदिवासियों के विकास के साथ-साथ ऑक्सीजन एवं अपनी आबोहवा के लिए जाना जाता है. ऐसी जगह पर संवेदनशीलता दिखाते हुए विशाल हरे वृक्षों की कटाई करना पूर्णता गलत है. यदि शासन प्रशासन भवन बनाना भी चाहता है तो उनके पास ऐसी कई जमीने मौजूद हैं जहां वृक्षों को काटना नही पड़ेगा.
स्थानीय लोगों का आरोप है कि पेड़ो को काटने के लिए दिया गया आदेश भी विवादास्पद है. आदेश में 8 पेड़ों को काटने का जिक्र है. जबकि, मौके पर 11 पेड़ काट दिए गए हैं. 3 फरवरी 2023 को दिए गए आदेश में 27 दिसंबर 2023 का निरीक्षण एवं ज्ञापन दिनांक अंकित है. मतलब इस आदेश के अनुसार कार्रवाई दिसंबर माह में होनी है जो 5 महीने पहले हो रही है.
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