इस सीट पर आज जो जीता उसी की बनेगी सरकार, 43 साल से चल रहा रिकॉर्ड
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इस सीट पर आज जो जीता उसी की बनेगी सरकार, 43 साल से चल रहा रिकॉर्ड

मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों का पहला रुझान अब बस आने वाला है. लेकिन एक मिथक राजनीतिक पार्टियों के लिए परेशानी बना हुआ है, यह मिथक बुरहानपुर जिले की नेपानगर विधानसभा सीट से जुड़ा है. जहां हुए उपचुनाव के नतीजों पर सबकी नजरें टिकी हैं. क्योंकि यहां जीतने वाली पार्टी पिछले 43 सालों से सत्ता में बनी रहती है.  

फाइल फोटो

बुरहानपुरः मध्य प्रदेश की 28 विधानभा सीटों के नतीजों का रुझान बस कुछ ही  देर में आने शुरु हो जाएंगे. आज इन 28 सीटों के नतीजे ही प्रदेश की राजनीतिक दशा और दिशा तय कर देंगे. लेकिन हम आपको प्रदेश की सियासत के ऐसे मिथक के बारे में बताने जा रहे हैं जो पिछले 43 सालों से चला आ रहा है. यह मिथक निमाड़ अंचल की नेपानगर विधानसभा सीट से जुड़ा है. जिसके नतीजा प्रदेश की सरकार तय करता है. आज नेपानगर विधानसभा सीट जो पार्टी जीतेगी प्रदेश में सरकार बनने के ज्यादा चांस उसी पार्टी के हैं.  

नेपानगर के नतीजों से बनती है सरकार 
दरअसल, पिछले 43 सालों से नेपानगर विधानसभा सीट पर होने वाले विधानसभा चुनाव में जो भी पार्टी जीत दर्ज करती है. प्रदेश में सरकार भी उसी की बनती है. 28 विधानसभा सीटों हुए उपचुनाव में नेपानगर सीट भी शामिल है. लिहाजा राजनीतिक गलियारों में चर्चा है 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस की सुमित्रा कास्डेकर ने जीत दर्ज की और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी. लेकिन बाद में वे विधायकी से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हुई और अब यहां उपचुनाव हुए हैं. इसलिए इस बार भी इस सीट के नतीजों पर सबकी निगाहें हैं. उपचुनाव में बीजेपी की सुमित्रा कास्डेगर का मुकाबला यहां कांग्रेस के रामकिशन पटेल से हुआ है.  

कुछ ऐसा रहा नेपानगर का चुनावी इतिहास 
बात अगर नेपानगर विधानसभा सीट के चुनावी इतिहास की जाए तो 1977 के बाद से ही यह सीट अपने इस अजब-गजब मिथक के चलते चर्चा में रहती है. 1977 में यहां से बीजेपी के बृजमोहन मिश्रा ने जीत दर्ज की और प्रदेश में वीरेंद्र कुमार सकलेचा के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी. 

1980 और 1985 कांग्रेस के तनवंत सिंह कीर ने विधानसभा चुनाव जीता और दोनों ही बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी. तब अर्जुन सिंह और मोतीलाल वोरा प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वहीं 1990 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के बृजमोहन मिश्रा फिर यहां से चुनाव जीते और प्रदेश में सुंदरलाल पटवा के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी. 

1993 में यहां से कांग्रेस ने तनवंत सिंह कीर ने फिर विधानसभा चुनाव जीता तो फिर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, इस बार मुख्यमंत्री बने दिग्विजय सिंह. 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तनवंत सिंह कीर की जगह रघुनाथ चौधरी को चुनाव मैदान में उतारा और वे चुनाव जीते और प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार बरकरार रही. दिग्विजय सिंह लगातार दूसरी प्रदेश के बार मुख्यमंत्री बने. 

2003 से बनी बीजेपी की सरकार 
2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के अर्चना चिटनिस ने नेपानगर विधानसभा सीट से चुनाव जीता और उमा भारती के मुख्यमंत्री बनी. 2008 और 2013 में यहां से बीजेपी के राजेंद्र दादू ने चुनाव जीता और शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. खास बात यह है कि 2016 में राजेंद्र दादू के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी बेटी मंजू दादू ने जीत दर्ज की तब भी प्रदेश में शिवराज सरकार ही रही.

2018 में पलटी बाजी 
2018 के विधानसभा चुनाव में बाजी फिर पलटी और कांग्रेस की सुमित्रा देवी कास्डेगर ने बीजेपी की मंजू दादू को हारते हुए नेपानगर में कांग्रेस को जीत दिलाई. तो प्रदेश में भी सत्ता परिवर्तन हो गया और शिवराज सिंह चौहान की जगह कांग्रेस के कमलनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. यानि 1977 के बाद से जो भी नेपानगर में विधानसभा चुनाव जीता प्रदेश में सरकार उसी की रही है. 

नेपानगर पर सबकी निगाहें 
अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित नेपानगर विधानसभा सीट पर 43 सालों से चले आ रहे इस मिथक के चलते यहां हुए उपचुनाव के नतीजों पर सब टकटकी लगाए बैठे हैं. 2018 में कांग्रेस की सुमित्रा कास्डेगर ने यहां से बीजेपी की मंजू दादू को 1 हजार 264 वोट से चुनाव हराया था. जबकि इस बार भी दल बदलने वाली बीजेपी की सुमित्रा कास्डेकर और कांग्रेस के रामकिशन के बीच बेहद कड़ा मुकाबला हुआ है. लिहाजा इस बार बाजी किसके हाथ लगेगी यह तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा. लेकिन इस अजब-गजब सियासी मिथक के चलते नेपानगर विधानसभा सीट सियासी नजरिए से बेहद अहम मानी जा रही है. 

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