'मेरे फर्ज की राह में अगर मौत भी आई तो मैं उसे भी मार दूंगा', जानिए किस परमवीर चक्र विजेता ने कही थी ये बात
Advertisement

'मेरे फर्ज की राह में अगर मौत भी आई तो मैं उसे भी मार दूंगा', जानिए किस परमवीर चक्र विजेता ने कही थी ये बात

इंटरव्यू के दौरान कैप्टन पांडेय ने कहा था कि वह परमवीर चक्र विजेता बनना चाहते हैं. 

'मेरे फर्ज की राह में अगर मौत भी आई तो मैं उसे भी मार दूंगा', जानिए किस परमवीर चक्र विजेता ने कही थी ये बात

नई दिल्लीः हालात कितने भी विकट हो लेकिन अगर जिंदगी में कुछ कर गुजरने का जज्बा और आत्मबल हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है. इस बात को साबित किया परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज कुमार पांडेय ने. उत्तर प्रदेश के एक सामान्य परिवार से आने वाले कैप्टन मनोज कुमार पांडेय में मातृभूमि की रक्षा का इतना जज्बा था कि हालात भी उन्हें उनके लक्ष्य को पाने से नहीं रोक सके. आज हम कैप्टन मनोज कुमार पांडेय के बारे में बात क्यों कर रहे हैं? बता दें कि आज ही के दिन यानी कि 3 जुलाई 1999 को कैप्टन मनोज कुमार पांडेय कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. लेकिन शहादत से पहले कैप्टन मनोज कुमार पांडेय कुछ ऐसा कर गए थे कि आने वाली कई पीढ़ियां उनके इस बलिदान से प्रेरित होती रहेंगी. 

'मैं मौत को भी मार दूंगा'
कैप्टन मनोज कुमार पांडेय को डायरी लिखने का शौक था और वह अपने विचार इस डायरी में लिखा करते थे. इसी डायरी में उन्होंने एक बार लिखा था कि 'यदि फर्ज की राह में मौत भी रोड़ा बनी तो मैं मौत को भी मार दूंगा'. कैप्टन मनोज पांडेय अपने लक्ष्य के प्रति इतने स्पष्ट थे कि उन्होंने बचपन में ही तय कर लिया था कि वह सेना में शामिल होंगे. कैप्टन मनोज पांडेय की इच्छा थी कि वह गोरखा राइफल्स में शामिल हो और उन्हें जॉइनिंग मिली भी. 

एसएसबी इंटरव्यू में कही थी ये बात
एनडीए में दाखिले से पहले एसएसबी का इंटरव्यू होता है. इस इंटरव्यू के दौरान अक्सर एक सवाल सभी उम्मीदवारों से पूछा जाता है कि वह आर्मी क्यों जॉइन करना चाहते हैं. कैप्टन मनोज कुमार पांडेय से भी इंटरव्यू के दौरान यह सवाल किया गया था. आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने इसके जवाब में कहा था कि वह परमवीर चक्र विजेता बनना चाहते हैं. 

इसे उनकी लग्न और जज्बे की जीत ही कहा जाएगा कि कारगिल युद्ध में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया. 

चुने गए थे एनसीसी के बेस्ट कैडेट
कैप्टन मनोज कुमार पांडेय का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के एक गांव रुधा में हुआ था. उनके पिता गोपी चंद एक पान की छोटी सी दुकान चलाते थे. कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की शुरुआती पढ़ाई सैनिक स्कूल लखनऊ और रानी लक्ष्मी बाई मेमोरियल सीनियर सेकेंडरी स्कूल से हुई. एनसीसी में इन्हें बेस्ट कैडेट का अवार्ड मिला था. नेशनल डिफेंस एकेडमी के 90वें कोर्स में वह ग्रेजुएट हुए और उन्हें 11 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में कमीशन मिला.   

हीरो ऑफ बटालिक
कैप्टन मनोज कुमार पांडेय को हीरो ऑफ बटालिक भी कहा जाता है. उनके जीवन पर एक किताब भी इसी शीर्षक से लिखी गई है. दरअसल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान बटालिक की चोटी पर कब्जे में कैप्टन मनोज कुमार पांडेय और उनकी टुकड़ी का अहम योगदान था. कैप्टन मनोज कुमार पांडेय ने ही बटालिक सेक्टर में रणनीतिक रूप से बेहद अहम जुबार टॉप पर कब्जा किया था. जिससे पाकिस्तानी सेना के उस इलाके से पांव उखड़ गए थे. 2-3 जुलाई की रात को कैप्टन मनोज पांडेय और उनकी टीम खुलबार में पहलवान चौकी पर चढ़ाई कर रही थी. इसी बीच ऊंचाई पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों ने भारी  गोलीबारी शुरू कर दी. 

इसके बावजूद कैप्टन मनोज और उनकी टीम डटी रहीं और दुश्मन से खाली करा लिए. तीसरे बंकर को खाली कराते वक्त कैप्टन मनोज पांडेय घायल हो गए और उनके कंधे और पैर में गोली लग गई थी. इसके बावजूद वह रुके नहीं और मिशन में डटे रहे. जब वह चौथा बंकर पर कब्जा कर रहे थे, उसी दौरान एक गोली उनके माथे पर आकर लगी और भारत मां का यह सपूत शहीद हो गया. जिस वक्त कैप्टन मनोज पांडेय को शहादत मिली, उस वक्त उनकी उम्र महज 24 साल थी लेकिन इतनी छोटी उम्र में भी कैप्टन पांडेय ऐसा कारनामा कर गए कि देशवासी हमेशा उनके ऋणी रहेंगे. 

कैप्टन मनोज पांडेय खुलबार की लड़ाई में शहीद हो गए लेकिन उनकी टीम ने बहादुरी का अद्भुत नमूना पेश करते हुए 6 बंकरों पर कब्जा कर लिया और बड़ी मात्रा में हथियार बरामद किए. कारगिल की लड़ाई में बटालिक सेक्टर की यह लड़ाई बेहद अहम साबित हुई और इससे भारत की जीत का रास्ता तय हुआ. यही वजह है कि कैप्टन मनोज पांडेय को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. कैप्टन मनोज कुमार पांडेय आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वह अभी भी देशवासियों के दिलों में जिंदा हैं क्योंकि शहीद कभी मरा नहीं करते.

Trending news