दिन में नौकरी और रात को लोकगीत, ऐसे बनी देश 'राज' के सफलता की कहानी
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दिन में नौकरी और रात को लोकगीत, ऐसे बनी देश 'राज' के सफलता की कहानी

बुंदेलखंड की शान, बुंदेली लोकगीतों के सम्राट देशराज पटेरिया का शनिवार सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वे 67 वर्ष के थे. लोकगायकी के क्षेत्र में उनकी पहचान लोकगीत सम्राट के रूप थी. उनके आकस्मिक निधन से देश आज शोक में डूब गया है.

फाइल फोटो

बुंदेलखंड की शान, बुंदेली लोकगीतों के सम्राट देशराज पटेरिया का शनिवार सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वे 67 वर्ष के थे. लोकगायकी के क्षेत्र में उनकी पहचान लोकगीत सम्राट के रूप थी. उनके आकस्मिक निधन से देश आज शोक में डूब गया है. देशराज पटेरिया ने अनेक बुंदेली लोकगीतों के जरिये मध्य प्रदेश के घर-घर में पहचान बनाई थी. प्रसिद्ध लोकगायक मध्य प्रदेश में ही नहीं विदेशों में अपनी गायकी का लोहा मनवा चुके थे.

  1. 1972 से  पटेरिया ने स्थानीय मंचों पर जाना शुरू कर दिया था.
  2. 1976 से आकाशवाणी के लिए लोकगीत गायन की शुरुआत.
  3. 1980 में लोकगीतों की कैसेट्स भी बाजार में आ गईं जो कई बार फिल्मी गीतों पर भी भारी पड़ने लगीं.

कौन हैं देशराज पटेरिया
बुंदेलखंड के लोकगीत सम्राट कहे जाने वाले पंडित देशराज पटेरिया का जन्म 25 जुलाई 1953 को छतरपुर जिले के तिंदनी गांव में हुआ था. पिता किशोरीलाल किसान और मां विद्या देवी गृहिणी थीं. पटेरिया छह भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें गायन में भी रुचि थी . उन्होंने विज्ञान विषय से प्रथम श्रेणी में अपनी हायर सेकेंडरी परीक्षा पास कर प्रयाग संगीत समिति से संगीत में प्रभाकर की डिग्री हासिल की. पटेरिया के बड़े भाई मदन मोहन पटेरिया गांव में जगह जगह जाकर कीर्तन करते थे जिनको देखकर संगीत के प्रति की उनमें रुचि जागृत हुई और उनके साथ ही देशराज ने भी गांव में कीर्तन करना शुरू कर दिया यहीं से बुंदेली लोकगीतों की राह पकड़ ली और धीरे धीरे कामयाबी की नई परिभाषा लिखते चले गए.

''संगीत जगत ने एक सितारा खो दिया'' नहीं रहे बुंदेली लोकगीत सम्राट देशराज पटेरिया

संघर्ष से सफलता तक का सफर

देशराज ने जब कीर्तन करना शुरू किया तो शुरुआती दिनों में काफी आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ा, जिसके चलते उन्होंने स्वास्थ्य विभाग में नौकरी की. पटेरिया दिन में नौकरी और रात को लोकगीत गाते थे. जहां खाने का इंतजाम भी बहुत मुश्किल से हो पाता था वहां अब साल भर में करीब दो सौ बड़े कार्यक्रम कर लेते थे जिससे उन्हें पैसा सम्मानजनक मिल जाता था.

  • 1972 से  पटेरिया ने स्थानीय मंचों पर जाना शुरू कर दिया था.
  • 1976 से आकाशवाणी के लिए लोकगीत गायन की शुरुआत.
  • 1980 में लोकगीतों की कैसेट्स भी बाजार में आ गईं जो कई बार फिल्मी गीतों पर भी भारी पड़ने लगीं.

इसके बाद पटेरिया के लोकगीतों का जादू हर बुंदेलखंडी की जुबान पर दिखने लगा और छतरपुर के एक कीर्तन करने वाले  देशराज से लोकगीत सम्राट पंडित देशराज पटेरिया विश्व भर में प्रख्यात हो गए.

गायन शैली जिसमें झलकता है बुंदेलखंड के प्रति स्नेह
देशराज पटेरिया ने बुंदेली लोकगीतों को नए मुकाम पर पहुंचाया जहां बुंदेली लोकगीत अश्लील और मसालेदार गायन के लिए चर्चित रहते थे. वह अकेले कलाकार रहे हैं जिन्होंने अपने गीतों में अश्लील और मसालेदार गायन की झलक तक नहीं आने दी. उन्होंने आल्हा, हरदौल, ओरछा इतिहास, रामायण के साथ जीजा-साली संवाद से जुड़े हास्य और शृंगार पर खूब लोकगीत गाए . अपनी लोकल बोली को अपनाकर ही अपनी गायन शैली बनाई.
और लोकगीतों में मर्यादा कायम रखते हुए लोगों के दिलों में राज किया. उन्होंने बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विविधता व सभ्यता को लोक गायन के माध्यम से लोकगीत, फाग, दिवारी मौनिया, आल्हा गायन, राई नृत्य गायन सहित भजन गायन जैसे कई शैलियों को अपनी आवाज देकर जन-जन तक पहुंचाया .

देशराज पटेरिया  के प्रसिद्ध  लोकगीत जो आज भी बहुत लोकप्रिय हैं
उन्होंने 10 हजार से भी अधिक लोकगीत गाए. बुंदेलखंड में आज सबसे ज्यादा लोकगीत गाने का रिकॉर्ड उनके नाम ही है. पटेरिया के द्विअर्थी लोकगीत लोगों में बहुत लोकप्रिय होते गए. देशराज पटेरिया के वो लोकगीत जो आज भी खासे पसंद किए जाते हैं.-

  • उठौ धना (पत्नी) बोल रऔ मगरे पै कौआ ,मोए लगत ऐसौ तोरे आ गए लिबउआ...
  • चली गोरी मेला खौं साइकिल पै बैठके,जीजा जी चला रए मूंछें दोई ऐंठ के
  • ई नई दुलैन सज गई है,
  • एक दिन बोली नार पिया सैं कै गांव तुम्हारौ जरयारौ.. उतै पवारौ जे ढोर बछेरू हमसें न कटहै चारौ..
  • किसान की लली खेत खलिहान खौं चली
  • जौनों मोखों बहिन जानकी आंखन नईं दिखानी, तौनों मोखौं ई मैड़े कौ पीनें नइयां पानी  
  • कुल दिनन नई रै है, जौ तन माटी में मिल जै है'

जब बुंदेलखंड में नेताओं के लिए देशराज पटेरिया का कार्यक्रम करवाना भीड़ जुटाने की गारंटी जैसा होता है
देशराज पटेरिया ने अनेक बुंदेली लोकगीतों के जरिये मध्य प्रदेश के घर-घर में पहचान बनाई थी. उनके कार्यक्रम में लोगों की गजब की भीड़ होती थी. कार्यक्रम में भाग लेने के लिए कई दिनों पहले से लोग टिकट के लिए कतारों में लग जाते थे. यही कारण था कि बुंदेलखंड में बड़े-बड़े नेता देशराज पटेरिया को बुलाते और उनका किसी भी कार्यक्रम में जाना भीड़ जुटाने की गारंटी देना जैसा होता था .

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