MP Lok Sabha Chunav 2024: मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं, दोनों पार्टियां प्रदेश की एक-एक सीट पर इस बार गहन मंथन में जुटी है, ऐसे में प्रदेश की वीआईपी सीट माने जाने वाली राजगढ़ लोकसभा सीट पर भी सबकी नजरें है. क्योंकि चंबल और मध्य भारत अंचल में आने वाले राजगढ़ लोकसभा संसदीय क्षेत्र का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है, जहां बीजेपी और कांग्रेस से ज्यादा राजपरिवारों का दबदबा देखने को मिला है. कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह और उनके परिवार का इस क्षेत्र में सीधा दखल माना जाता है तो पिछले कुछ चुनावों से यहां बीजेपी का भी अच्छा दबदबा देखने को मिला है. 


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राजगढ़ में दो चुनावों से जीत रही BJP 


राजगढ़ लोकसभा सीट पर एक जमाने में जनसंघ की मजबूत पकड़ मानी जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे इस सीट पर कांग्रेस ने भी अपने पैर जमाने शुरू किए और दिग्विजय सिंह और उनके भाई लक्ष्मण सिंह इस सीट से लगातार लोकसभा पहुंचते रहे हैं. लेकिन 2014 और 2019 में राजगढ़ लोकसभा सीट पर बीजेपी ने जबरदस्त जीत हासिल की है. ऐसे में यहां बीजेपी भी अब उत्साहित नजर आती है. कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है, ऐसे में कांग्रेस इस बार इस सीट पर किसी दिग्गज नेता को उतार सकती है. 


राजगढ़ लोकसभा सीट का सियासी इतिहास 


राजगढ़ संसदीय सीट का इतिहास 1952 से शुरू होता है, कांग्रेस के लीलाधर जोशी 1952 और 1957 का चुनाव जीतकर लगातार दो चुनाव जीतकर राजगढ़ के पहले सांसद बने थे. 1952 और 1957 तक राजगढ़-शाजापुर संसदीय क्षेत्र था, जो उस समय अनारिक्षत व आरिक्षत वर्ग से एक-एक सांसद चुने जाते थे. ऐसे में लीलालधर जोशी आरिक्षत वर्ग से भागू नंदू मालवीय भी सांसद सांसद चुने गए थे, 1957 में आरिक्षत वर्ग से कन्हैयालाल सांसद चुने गए थे. 1962, 1967 और 1971 के चुनावों तक राजगढ़ जिला तीन लोकसभा क्षेत्रों शाजापुर, भोपाल व गुना में बंटा रहा. इस दौरान 1962 में निर्दलीय भानुप्रकाश सिंह, 1967 में बाबूराव पटेल और जगन्नाथ राव जोशी जनसंघ से सांसद चुने गए थे. 1977 के चुनावों से राजगढ़ संसदीय सीट अस्तित्व में आ गई. 1977 और 1980 के चुनावो में जनता पार्टी के बसंत कुमार पंडित यहां से सांसद चुने गए थे. 



राघौगढ़ राजपरिवार ने 7 बार जीती सीट 


1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह पहली बार इस सीट से सांसद चुने गए थे. हालांकि 1989 के चुनाव में उन्हें बीजेपी के प्यारेलाल खंडेलवाल से हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन 1991 में ही दिग्विजय सिंह ने फिर वापसी करते हुए प्यारेलाल खंडेलवाल को हराया था. 1994 में इस सीट पर उपचुनाव हुए और यहां से दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह पहली बार सांसद चुने गए, जिसके बाद लक्ष्मण सिंह ने 1996, 1998, 1999 और 2004 के चुनाव तक यहां से लगातार जीत हासिल की थी. हालांकि 2004 का चुनाव उन्होंने बीजेपी के टिकट पर जीता था. ऐसे में इस सीट पर राघौगढ़ परिवार का दबदबा देखा जाता रहा है. दिग्विजय सिंह और लक्ष्मण सिंह इस सीट से सात चुनाव जीत चुके हैं, 


2009 में कांग्रेस के आमलाबे नारायण सिंह चुनाव जीते थे, जबकि 2014 और 2019 से बीजेपी के रोडमल नागर चुनाव जीत रहे हैं. राजगढ़ लोकसभा सीट पर अब तक कुल 16 आम चुनाव हो चुके हैं, जिनमें से 7 बार कांग्रेस, चार बार बीजेपी, दो बार जनसंघ, दो बार जनता पार्टी और एक बार निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की है. 


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राजपरिवारों का रहा दबदबा 


राजगढ़ लोकसभा सीट की खास बात यह रही है कि यहां राजपरिवारों का दबदबा रहा है. सात चुनावों में राघौगढ़ राजपरिवार के सदस्य सांसद बनने में कामयाब रहे हैं, जबकि एक बार नरसिंहगढ़ रियासत के पूर्व महाराजा भानु प्रकाश सिंह भी निर्दलीय चुनाव जीते थे. हालांकि यहां राजपरिवारों को केवल जीत नहीं मिली है, बल्कि यहां की जनता ने उन्हें कई बार चुनाव भी हराया है. दिग्विजय सिंह और लक्ष्मण सिंह को इस सीट पर हार का सामना भी करना पड़ा है. राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा तेज हैं कि इस बार कांग्रेस यहां से दिग्विजय सिंह या उनके भाई लक्ष्मण सिंह को चुनाव लड़वा सकती है. 



'कृष्ण' को लक्ष्मण ने हराया था चुनाव 


राजगढ़ लोकसभा सीट पर एक चुनाव में महाभारत के 'कृष्ण' को लक्ष्मण से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. दरअसल, 1999 के लोकसभा चुनाव में प्रसिद्ध सीरियर महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण का किरदार निभाने वाले नितीश भरद्वाज को बीजेपी ने चुनाव लड़वाया था, जबकि कांग्रेस ने उनके सामने दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को ही उतारा था. तब यह चुनाव खूब सुर्खियों में रहा था, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का किरदार निभाने की वजह से नितीश भरद्वाज की उन दिनों लोकप्रियता चरम पर थी, ऐसे में वह प्रचार के दौरान आकर्षण का केंद्र बन गए थे. कई राजनीतिक जानकारों ने उनकी जीत की भविष्यवाणी भी की थी, लेकिन नतीजें चौकाने वाले आए थे. क्योंकि चुनाव में कांग्रेस के लक्ष्मण को जीत मिली थी. 


विधानसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी का पलड़ा भारी 


राजगढ़ लोकसभा सीट में तीन जिलों की 8 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें राजगढ़ जिले की राजगढ़, नरसिंहगढ़, ब्यावरा, खिलचीपुर और सारंगपुर शामिल हैं. इसके अलावा गुना जिले की राघौगढ़ और चाचौड़ा जबकि आगर मालवा जिले की सुसनेर विधानसभा सीट भी इसी संसदीय क्षेत्र में शामिल हैं. 2023 के विधानसभा चुनावों में 8 सीटों में से बीजेपी ने 6 सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि 2 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है, ऐसे में विधानसभा चुनाव के नतीजों के हिसाब से यहां बीजेपी यहां कांग्रेस पर बढ़त बनाती हुई नजर आ रही है. 



राजगढ़ लोकसभा सीट के जातिगत समीकरण 


बात अगर राजगढ़ लोकसभा सीट के जातिगत समीकरणों की जाए तो यहां ओबीसी वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावशाली नजर आता है. गुर्जर, यादव, सौंधिया, दांगी और धाकड़ वर्ग ओबीसी का नेतृत्व करता है, जबकि ब्राह्मण, राजपूत मतदाता भी यहां प्रभावी माने जाते हैं, इसके अलावा कुछ विधानसभा सीटों पर एससी वर्ग का दबदबा माना जाता है, वहीं 6 प्रतिशत के आसपास यहां अल्पसंख्यक मतदाता भी हैं. राजगढ़ लोकसभा सीट पर  सौंधिया और दांगी समाज ही निर्णायक माना जाता है. 


राजगढ़ लोकसभा सीट की समस्याएं 


राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र में रोजगार न होने के चलते पलायन आज भी सबसे बड़ी समस्या मानी जाती है, जबकि शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर भी यहां बहुत काम करने की आवश्यकता है, इसके अलावा राजगढ़ लोकसभा सीट पूरी तरह से कृषि प्रधान क्षेत्र है ऐसे में यहां सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की व्यवस्था और कृषि आधारित उद्योगों की मांग भी उठती रहती है. 



2019 में ऐसा रहा था राजगढ़ का चुनावी परिणाम 


2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के रोडमल नागर ने कांग्रेस की मोना सुस्तानी को हराया था. बीजेपी के रोडमल नागर को चुनाव में 8 लाख 23 हजार 824 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस की मोना सुस्तानी को 3 लाख 92 हजार 805 वोट मिले थे, ऐसे में बीजेपी प्रत्याशी को 4 लाख से भी ज्यादा वोटों से जीत मिली थी, वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के रोडमल नागर ने कांग्रेस के अंलाबे नारायण सिंह को 2 लाख 28 हजार 737 वोटों के अंतर से चुनाव हराया था. 


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