African Swine Fever : MP में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की एंट्री, रीवा से भोपाल भेजे गए 11 सैंपल में वायरस की पुष्टि
Advertisement
trendingNow1/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh1311867

African Swine Fever : MP में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की एंट्री, रीवा से भोपाल भेजे गए 11 सैंपल में वायरस की पुष्टि

African Swine Fever मध्य प्रदेश में सूअरों की महामारी अफ्रीकन स्वाइन फीवर की एंट्री हो गए हैं. रीवा जिले से जांच के लिए भोपाल भेजे गए 11 सैंपलों में पुष्टि हुई है. जानकारी के मुताबिक MP में अफ्रीकन स्वाइन फीवर का यह पहला आउटब्रेक है.

African Swine Fever : MP में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की एंट्री, रीवा से भोपाल भेजे गए 11 सैंपल में वायरस की पुष्टि

रीवा: मध्यप्रदेश में सूअरों की महामारी अफ्रीकन स्वाइन फीवर ( African Swine Fever ) ने दस्तक दे दी है. रीवा जिले में हो रही लगातार सुअरों की मौत से पशु चिकित्सा विभाग की चिंता को बढ़ा दिया है. रीवा में अब तक लगभग दो से तीन सौ सुअरों की मौत हो चुकी है. पशु चिकित्सा विभाग ने रीवा से 11 सैंपल भोपाल के राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान जांच हेतु भेजे थे. इसकी रिपोर्ट आई है, जिसमें से सभी के रिपोर्ट में अफ्रीकन स्वाइन फीवर संक्रमण की पुष्टि हुई है. इसके बाद से पशु चिकित्सा विभाग में हड़कंप मच गया है.

मौत के ग्राफ बढ़ने के बाद जताई गई थी आशंका
इस पूरे मामले को लेकर के उपसंचालक डॉ राजेश मिश्रा ने बताया कि तीन की मौत के ग्राफ बढ़ने के बाद हमें शंका जाहिर हुई थी. इसके बाद हमने 11 सैंपल भोपाल जांच के लिए भेजे थे जिसकी रिपोर्ट आने के बाद अफ्रीकन स्वाइन फीवर की पुष्टि हुई है. इसके लिए पशु चिकित्सा विभाग प्रशासन के साथ मिलकर इसके रोकथाम के लिए कार्य कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: रुई की जगह कंडोम का पैकेट लगाकर कर दी ड्रेसिंग, वायरल हुआ मुरैना का VIDEO

क्या है अफ्रीकन स्वाइन फीवर की गाइडलाइन
विशेषज्ञों की मानें तो सुअरों से दूसरों जानवरों में इस बीमारी से संक्रमित होने का खतरा बना रहता है. अफ्रीकन स्वाइन फीवर को नियंत्रित करने की राष्ट्रीय गाइडलाइन के मुताबिक जिस स्थान पर बीमारी का संक्रमण पाया जाता है, उसके एक किलोमीटर के दायरे में मौजूद सुअरों को मार दिया जाता है. इसके अलावा तीन किलोमीटर के दायरों में सभी जानवरों की सैंपलिंग कर निगरानी करनी होती है.

इंसानों में आने का खतरा कम, लेकिन सावधानी जरूरी
यह बीमारी वायरस से फैलती है. इससे प्रभावित सुअरों को बुखार, दस्त,उल्टी, कान और पेट में लाल चकत्ते दिखाई देते हैं. बहुत ज्यादा संक्रामक होने की वजह से संपर्क में आने वाले दूसरे सुअर बहुत जल्दी इस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं, इसलिए एक किमी के दायरे में आने वाले सुअरों को मार दिया जाता है. हालांकि, इस सुअरों से इस बीमारी के इंसानों में आने के मामले सामने नहीं आए हैं, लेकिन सावधानी के तौर पर सुअर का मांस नहीं खाने और सुअर पालकों को प्रभावित क्षेत्र के एक किमी से बाहर नहीं जाने की सलाह दी जाती है.

Trending news