बांधवगढ़ किले के संरक्षण का काम शुरू, बेहद रोचक है इसका इतिहास!
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बांधवगढ़ किले के संरक्षण का काम शुरू, बेहद रोचक है इसका इतिहास!

बांधवगढ़ के बारे में माना जाता है कि यह एक अभेद्य किला था और इस पर आक्रमण कर कभी कोई नहीं जीत सका.

बांधवगढ़ किले के संरक्षण का काम शुरू, बेहद रोचक है इसका इतिहास!

अरुण त्रिपाठी/उमरियाः बाघों के लिए मशहूर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के संरक्षण का काम शुरू हो गया है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को सर्वे की मंजूरी मिल गई है.बता दें कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के संरक्षण के साथ ही इसके किले से संबंधित दस्तावेज भी तैयार किए जाएंगे. संभागीय कमिश्नर राजीव शर्मा ने इसकी शुरुआत की थी. वन अधिनियम के नियमों का पालन करते हुए जल्द ही एएसआई सर्वे का काम शुरू करेगा. 

बाघों और धार्मिक आस्था के केंद्र के रूप में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व काफी प्रसिद्ध है. बता दें कि अब इस टाइगर रिजर्व को नई पहचान मिलने जा रही है. दरअसल बांधवगढ़ की ऐतिहासिक धरों को संरक्षित करने और इसके इतिहास को लिपिबद्ध करने के लिए वन्य जीव प्रबंधन विभाग ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को मंजूरी दे दी है.  

टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के बीच करीब 800 मीटर ऊंचे पहाड़ पर बने बांधवगढ़ किले पर प्रागैतिहासिक काल से लेकर अलग-अलग समय पर विभिन्न राजवंशों ने राज किया. बांधवगढ़ में मद, कलचुरी, बघेल राजवंशों का राज रहा. साथ ही भगवान विष्णु के 12 अवतारों की विशाल प्रतिमाएं भी यहां मौजूद हैं. प्रसिद्ध रामजानकी मंदिर, कबीर गुफा, संत शिरोमणि की तपोस्थली और कई और ऐतिहासिक धरोहरें बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में मौजूद हैं. इन सभी के संरक्षण की मांग समय-समय पर लोगों द्वारा की जा रही है. 

बांधवगढ़ के बारे में माना जाता है कि यह एक अभेद्य किला था और इस पर आक्रमण कर कभी कोई नहीं जीत सका. मान्यता है कि इस किले को भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उपहार स्वरूप दिया था. भाई के प्यार को देखते हुए इस किले का नाम बंधु पड़ा और फिर बंधु से बांधव और फिर बांधवगढ़ हो गया. शहडोल के संभागीय कमिश्नर राजीव शर्मा ने इस किले को संरक्षित करने की कोशिश शुरू की थी. जिसके बाद अब वन संरक्षक वन्य जीव विभाग द्वारा एएसआई को इसके संरक्षण की मंजूरी दे दी है. 

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