भोपालः मानवता के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) को कई दशकों का समय बीत चुका है. 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात हुए इस हादसे में आधिकारिक तौर पर तीन हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. हालांकि दावा किया जाता है कि इस हादसे में 25 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. साथ ही हजारों लोग इस त्रासदी से उपजी गंभीर बीमारियों से मारे गए थे. भोपाल की यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) कंपनी से घातक गैस का रिसाव हुआ और उसने कुछ ही देर में पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया था. हादसे के वक्त यूनियन कार्बाइड कंपनी का सीईओ अमेरिकी कारोबारी वारेन एंडरसन (Warren Anderson) था. भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के बाद पूरे देश में वारेन एंडरसन को दोषी मानते हुए सजा देने की मांग हुई थी. हालांकि वारेन इतने बड़े हादसे के बाद भी कुछ ही घंटों में देश से निकलने में सफल रहा था और उसे कोई सजा नहीं मिली.


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एक फोन कॉल की मदद से भागा था वारेन एंडरसन (Warren Anderson)
भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के बाद 6 दिसंबर 1984 में वारेन एंडरसन भारत आया था. दिल्ली से वह भोपाल पहुंचा था, जहां उसे गिरफ्तार कर लिया गया था. हालांकि बाद में वह बच निकलने में कामयाब हो गया था. उस वक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह (Arjun Singh) थे. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा "दे ग्रेन ऑफ सैंड इन द हावरग्लास ऑफ टाइम" में लिखा था कि उन्होंने वारेन एंडरसन के भोपाल (Bhopal) पहुंचने पर उसे गिरफ्तार करने का फैसला किया था. 


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अर्जुन सिंह ने लिखा कि "मेरे पास ब्रह्म स्वरूप (मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव) का वायरलेस आया था कि गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ उच्चाधिकारी ने फोन किया है कि वारेन एंडरसन को छोड़ दिया जाए. इसके साथ ही गृह मंत्रालय से आदेश आया था कि वारेन एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली भेजा जाए". जहां से एंडरसन ने आराम से अमेरिका के लिए उड़ान भरी थी. 


रिपोर्ट के अनुसार, अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि "उन्हें बाद में पता चला कि गृह मंत्रालय के गृह सचिव आरडी प्रधान ने तत्कालीन गृह मंत्री पीवी नरसिम्हा राव के निर्देश पर ब्रह्म स्वरूप को फोन कर एंडरसन को छोड़ने को कहा था". हालांकि बाद में आरडी प्रधान ने इसका खंडन किया था और दावा किया था कि वह 1984 में महाराष्ट्र के मुख्य सचिव थे. 


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दरअसल वारेन एंडरसन की गिरफ्तारी के बाद अमेरिकी सरकार ने तत्कालीन राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) सरकार पर दबाव बनाया था और वारेन एंडरसन को छोड़ने का अनुरोध किया था. माना गया कि अमेरिका के दबाव में ही भारत सरकार ने वारेन एंडरसन को आराम से देश से निकल जाने दिया. वारेन एंडरसन कितना ताकतवर था, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के वक्त यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) के दुनियाभर के तीन दर्जन देशों में 700 प्लांट थे.


गुमनामी में हुई थी Warren Anderson की मौत
भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के बाद वारेन एंडरसन कभी भी भारत नहीं आया. भारत सरकार द्वारा वारेन एंडरसन के प्रत्यर्पण की कोशिश भी की गई लेकिन अमेरिका द्वारा सहयोग नहीं किए जाने के चलते वारेन एंडरसन को कभी भी भारत नहीं लाया जा सका. भोपाल गैस त्रासदी के कुछ माह बाद ही न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में वारेन एंडरसन (Warren Anderson) ने कहा था कि "उसे हादसे का बहुत दुख है और वह अक्सर सुबह उठते हुए यह सोचता है कि क्या ऐसा हो गया है? लेकिन ये ऐसी चीज है, जिससे उसे अब पूरी जिंदगी जूझना होगा."


वारेन एंडरसन को सजा देने की देशभर में खूब मांग उठी लेकिन उसे कभी भी भारत नहीं लाया जा सका. 29 सितंबर 2014 को वारेन एंडरसन (Warren Anderson) की गुमनामी में मौत हो गई. वारेन एंडरसन (Warren Anderson) की मौत फ्लोरिडा के वेरो बीच इलाके के एक नर्सिंग होम में हुई थी. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) ने भारत सरकार को हादसे के मुआवजे के तौर पर 470 मिलियन डॉलर का भुगतान किया था.