MP News: आजादी मिलने के 77 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं को तरसते गांव, जानिए इन 2 गांवों की दुर्दशा
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MP News: आजादी मिलने के 77 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं को तरसते गांव, जानिए इन 2 गांवों की दुर्दशा

Madhya Pradesh News In Hindi: मध्यप्रदेश में आज भी ऐसे गांव हैं जो  मूलभूत सुविधाओं को तरसते हैं. गांव में न बिजली की सुविधा है और न ही पानी की. आइए जानते हैं उन गांवों के बारे में...

 

MP News: आजादी मिलने के 77 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं को तरसते गांव, जानिए इन 2 गांवों की दुर्दशा

Madhya Pradesh News In Hindi: पूरा देश आजादी की 77वां वर्षगांठ धूमधाम से मना रहा है. लेकिन देश के कई गांव अभी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं. मंदसौर जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर मल्हारगढ़ विधानसभा का डी गांव जो आज भी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहा है. यह गांव वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा की विधानसभा क्षेत्र का गांव है. विकास के नाम पर कुछ बिल्डिंग बनी सड़कें बनी नालियां भी बनी और नल भी लगे. लेकिन ना तो नल में पानी आता है और नाही नालियों में पानी बहता है. 

आज भी विकास से बरसों दूर गांव
नालियों का पानी सड़कों पर बहता है और यहां कहां जमा होकर गंदगी फैलाता है. नलों में पानी नहीं आता जिसकी वजह से लोग पेयजल के लिए इधर-उधर भटकते हुए नजर आते हैं. गांव में कई हैंडपंप हैं लेकिन अधिकतर खराब पड़े हैं.

ग्रामीणों का कहना है कि, गांव में अस्पताल तो है लेकिन अस्पताल में मरीजों के परिजनों के रहने के लिए कोई स्थान नहीं है. नल है लेकिन नलों में पानी नहीं आता इसलिए गांव की महिलाओं को पेयजल के पिए इधर-उधर भटकना पड़ता है. यही नहीं गांव में सफाई व्यवस्था भी सही नहीं है. नालियों का निर्माण ठीक तरीके से नहीं हुआ जिसकी वजह से पानी सड़कों पर बहता रहता है. यही नहीं कई सरकारी योजनाओं का लाभ भी आम ग्रामीणों को नहीं मिल पाता है.

सीहोर के जमुनिया गांव का भी यही हाल
विकास के इन्हीं दावों की पोल खोलती कुछ तस्वीर मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर जिले से सामने आ रही है. आजादी के 77 साल बाद भी सीहोर के एक आदिवासी गांव मे ना बिजली है और ना पक्के मकान और ना ही पक्की सड़क. इस गांव के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.

गांव में नहीं पहुंच पाई बिजली
दरअसल, सीहोर जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर जमुनिया फॉर्म गांव में आदिवासी सहरिया समाज के लोग रहते हैं. आजादी के 77 साल बाद भी इस गांव में बिजली नहीं पहुंच पाई और ना ही किसी भी आवास योजना से यहां पक्के मकान बने हैं लोग आज भी यहां टूटे-फूटे घरों कच्चे मकानों और झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं. इस गांव में ही अंधेरा नहीं है बल्कि इस गांव के बच्चों के जीवन में भी अंधेरा है. गांव के बच्चें घर में दीपक के उजाले में पढ़ने को मजबूर हैं. गांव में एक स्कूल की बिल्डिंग है, जहां बच्चे पढ़ने जाते हैं वह भी जर्जर अवस्था में है. बिल्डिंग को देखकर ऐसा लगता है कि यह बिल्डिंग कभी भी गिर सकती है.

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ग्रामीणों ने शासन और प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि, आज तक हमने इस गांव में बिजली नहीं देखी है और ना ही हमारे पास पक्के मकान है. हमें आवास योजना का लाभ भी नहीं दिया गया. इन सभी असुविधाओं के चलते हमारे बच्चों की शादियां नहीं हो पाती है. कई बच्चे ऐसे हैं जो काफी उम्र के हो चुके हैं परंतु वह अभी कुंवारे हैं. हमारे यहां कोई लड़की नहीं देता है.

रिपोर्टर- मनीष पुरोहित

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