Sawan Somwar: आज सावन माह का दूसरा सोमवार है. इसी के साथ-साथ आज हरियाली अमावस्या भी है. करीब 57 साल बाद ऐसा संयोग बना है जब सावन सोमवार और हरियाली अमावस्या एक साथ हैं.
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उज्जैन/राहुल राठौर: सावन माह के दूसरे सोमवार के मौके पर अलसुबह से शिवालयों में श्रद्धालुओं का तांता लग गया. उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्धि बाबा महाकाल के दर्शन के लिए भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे हैं. आज शिवालयों में भीड़ इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि सावन का दूसरा सोमवार होने के साथ-साथ आज हरियाली अमावस्या और सोमवती अमावस्या भी है. 57 साल बाद सावन सोमवार पर हरियाली अमावस्या का खास संयोग बना है. ऐसे में आज सुबह हुई भस्मारती से महाकाल का मंदिर परिसर जय श्री महाकाल के नारों से गूंज उठा.
शिप्रा तट पर पहुंचे श्रद्धालु
आज सोमवती अमावस्या व हरियाली अमावस्या होने के कारण शिप्रा घाट पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे और आस्था की डुबकी लगाई. इसके बाद सभी भक्त महाकाल के दर्शन करने मंदिर पहुंचे. महाकाल मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में भक्तों का तांता लगा और हर ओर जय श्री महाकाल के नारे गूंजते नजर आए.
शाम 4 बजे सवारी पर निकलेंगे महाकाल
मंदिर के पुजारी ने बताया कि बाबा महाकाल मंदिर में परंपरा रही है कि सावन मास में बाबा महाकाल 4 या 5 सवारियां होती हैं और दो सवारी भाद्र पद (भादौ मास) की होती है, जिसमें बाबा नगर भ्रमण पर हर सोमवार भक्तों का हाल जानने के लिए शाही ठाठ-बाट के साथ निकलते हैं. लेकिन इस बार अधिक मास होने के कारण 8 सवारी सावन और 2 सवारी भादौ मास में यानी कुल 10 सवारी निकाली जाएंगी.आज सावन मास के दूसरे सोमवार पर भगवान भक्तों को पालकी में चंदमोलेश्वर व हांथी पर मनमहेश रूप में दर्शन देंगे.
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महाकाल का पूजन क्रम
मंदिर में आम दिनों की तुलना में द्वार सावन सोमवार को डेढ़ घंटे पहले खुल जाते है. यहां फुट पांति व जनेऊ पाती के वंशा वली अनुसार पूजन का क्रम होता है. ये समय फुट पांति के पुजारियों के लिए हैं. उन्हीं ने आज द्वार खोले. इसके बाद सबसे पहले बाल भद्र की पूजा हुई. उसके बाद भगवान के डोली का पूजन हुआ और घंटाल बजा कर भगवान को संकेत दिया गया कि हे महादेव महाकाल हम आपके द्वार खोल रहे हैं और प्रवेश करना चाहते हैं. फिर मान भद्र के गर्भ गृह की डोली का पूजन होता है. इस तरह गर्भ गृह में हर रोज प्रवेश का क्रम पूरा होता है.
प्रवेश के बाद क्या हुआ?
प्रवेश के बाद भगवान गणेश, कार्तिकेय, नंदी को स्नान कराया जाता है. प्रथम कपूर आरती होती है. उसके बाद सामान्य दर्शनार्थियों को प्रवेश दिया जाता है. इसके बाद हरि ऊं जल के बाद भगवान का पंचाभिषेक होता है. अलग-अलग प्रकार की वस्तुएं मंत्रों द्वारा भगवान को अर्पित की जाती हैं. ध्यान होता है. आव्हान होता है. भगवान को आसन दिया जाता है. भगवान के पैर धोए जाते हैं. उन्हें स्नान करवाया जाता है. उसके बाद पंचाभिषेक होता है. अलग-अलग द्रव्य से स्नान होता है. फल, भांग व अन्य के बाद दौबारा शुद्ध स्नान करवाकर भगवान का श्रृंगार किया जाता है.
श्रृंगार के बाद होती है भस्म आरती
पुजारी महेश शर्मा ने बताया कि महाकाल का श्रृंगार होने के बाद उन्हें भस्म से स्नान करवाया जाता है, जिसे भस्म आरती (मंगला आरती) कहा जाता है. इसके बाद रजत मुकुट, आभूषण, वस्त्र भगवन को अर्पण किए जाते हैं. जिसके बाद भगवान दिव्य स्वरूप में निराकार से साकार रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं. दिव्यता के साथ धूप दी जाती है फिर दीप, दर्शन, नैवेद्य चढ़ाया जाता है. बस फिर आरती सब लेते हैं और इस प्रकार अल सुबह की ये प्रक्रिया समाप्त हो जाती है.
एक दिन में कुल 5 आरती होती है
सबसे पहले महाकाल की भस्म आरती होती है, जो वंश परंपरा के पुजारी करते हैं. इसके बाद 7 बजे आरती होती है जिसमें चावल, दही, शक्कर का भोग लगता है व सामान्य पूजन और श्रृंगार होता है. इसके बाद 10 बजे पंचमर्त पूजा होती है और पूर्ण भोग भगवान को लगता है. इसके बाद शाम 5 बजे भगवन का स्नान होकर जल चढ़ना बंद हो जाता है. श्रृंगार होकर भगवान दूल्हा स्वरूप में विराजमान रहते हैं. निराकार से साकार स्वरूप में आ जाते हैं. शाम 7 बजे संध्या आरती होती है, जिसमें दूध का भोग होता है. उसके बाद रात 10 बजे शयन आरती होती है, जिसमें मेवे का प्रसाद चढ़ता है और इसके बाद द्वार बंद कर दिए जाते हैं. भगवान को आराम के लिए कहा जाता है.
महाकाल दर्शन का महत्व
सावन माह में शिव दर्शन करने से अनेक पापों का नाश होता है. साथ ही इस माह में जो भी भक्त शिव को जलधारा, दुग्ध धारा व बेल पत्र चढ़ाता है तो उसके तीन जन्मों के पाप का विनाश होता है. उसको अक्षुण्य पुण्य की प्राप्ति होती है. 1 बिल्व पत्र से 1 लाख तक बिल्व पत्र भगवान को अर्पण करने से कई यज्ञों का फल प्राप्त होता है. सावन के माह में आने वाले सभी व्रत माता सती और माता पार्वती ने किए हैं. ये व्रत दोनों ने अपने-अपने समय में शिव को मनाने व शिव को पाने के लिए किए थे. इसलिए सनातन धर्म में मान्यता है कि जो महिलाएं चार पहर की पूजा, व्रत, उपवास आदि करती हैं, उससे उन्हें सौभग्य के फल की प्राप्ति होती है. कुंवारियों को मनवांछित वर प्राप्त होता है.