Subhash Chandra Bose Jayanti 2022: 23 जनवरी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 126वीं जयंती मनाई जा रही है. इस मौके पर जबलपुर सेंट्रल जेल में नेताजी के नाम पर बने MP के पहले संग्रहालय (shubhas chandra bose museum) को आम जनता के लिए खोला जा रहा है. स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में वो 1933 और 1934 में जबलपुर के इसी सेंट्रल जेल में कैद रखे गए थे.
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Subhash Chandra Bose Jayanti 2022: आज यानि 23 जनवरी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 126वीं जयंती मनाई जा रही है. इस मौके पर जबलपुर सेंट्रल जेल में नेताजी के नाम पर बने MP के पहले संग्रहालय (shubhas chandra bose museum) को आम जनता के लिए खोला जा रहा है. अभी तक सेंट्रल जेल में बने सुभाष वार्ड में हर किसी को आने-जाने की अनुमति नहीं थी. प्रदेश सरकार के फैसले के बाद अब नेताजी के जेल वार्ड को संग्रहालय बनाया गया और आम जनता के लिए खोला जा रहा है.
कैदियों ने किया तैयार
नेताजी के जीवन की कहानी को दर्शाने के लिए बैरक को संग्रहालय की तरह और परिसर को नेताजी के चित्रों से सजाया गया है. बता दें ये सभी चित्र यहां के कैदियों ने बनाए हैं. अब से हर शनिवार और रविवार को सुबह 10 बजे से दोपहर दो बजे तक इस संग्रहालय में आम जनता जा सकेगी. संग्रहालय के माध्यम से लोगों को नेताजी के उन अनछुए पहलुओं की जानकारी मिलेगी, जो नई पीढ़ी को प्रेरित करेगी.
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अंग्रेजों ने यहीं किया था कैद
अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई के दौरान जिस बैरक में नेताजी सुभाष चंद्र बोस बंद थे, उसे अब जेल की जगह संग्रहालय का रूप दे दिया है. जबलपुर के सुभाष चंद्र बोस केंद्रीय जेल का सुभाष वॉर्ड अब म्यूजियम बन गया है. खास बात ये है कि इस म्यूजियम को खुद कैदियों ने ही बनाया है. चित्रकारी से लेकर गार्डन बनाने तक और सुभाष वॉर्ड के अंदर की साज सज्जा भी कैदियों ने ही की है. नेताजी यहां पहले 6 माह और दूसरी बार एक हफ्ते बंद रहे थे. 13 जून 2007 को इस जेल का नाम केंद्रीय जेल जबलपुर से बदलकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस किया गया था.
गांधी जी के विरोध के चलते छोड़ा था पद
जबलपुर से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का खास नाता था. यहीं पहली बार नेताजी को 1939 में अखिल भारतीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था. उस समय उन्होंने गांधी जी के प्रमुख सहयोगी और प्रत्याशी पट्टाभि सीतारमैया को हराया था. लेकिन उन्हें गांधी जी के विरोध के चलते पद से त्यागपत्र देना पड़ा था. स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में वो 1933 और 1934 में जबलपुर के इसी सेंट्रल जेल में कैद रखे गए थे.
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