खतरे का अलर्ट, PFI को बैन करने की तैयारी में MP सरकार! जानिए इस कट्टरपंथी संगठन की कैसे हुई शुरुआत?
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खतरे का अलर्ट, PFI को बैन करने की तैयारी में MP सरकार! जानिए इस कट्टरपंथी संगठन की कैसे हुई शुरुआत?

साल 2014 में केरल सरकार ने हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कर दावा किया था कि पीएफआई राज्य में 27 राजनीतिक हत्याओं और 86 हत्या की कोशिश के मामलों और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के 125 मामलों में शामिल रहा. 

Image courtesy- the print

नई दिल्लीः मध्य प्रदेश सरकार को खूफिया विभाग से सूचना मिली है कि राज्य में कट्टरपंथी संगठन PFI (Popular Front of India) अपने पैर पसार रहा है. ऐसे में बढ़ते हुए खतरे को देखते हुए सरकार पीएफआई पर बैन लगाने की तैयारी कर रही है. खबर के अनुसार, खूफिया विभाग की एक टीम राज्य में संगठन की गतिविधियों पर नजर रख रही है. अभी तक की जांच में पता चला है कि राज्य में पीएफआई के 650 से ज्यादा सदस्य हैं और यह संगठन राज्य में तेजी से बढ़ रहा है. जांच में आतंकी संगठन SIMI का भी पीएफआई से कनेक्शन मिला है. 

खासकर इंदौर में चूड़ी वाले युवक की पिटाई के बाद पीएफआई काफी सक्रिय हो गया है. सेंट्रल कोतवाली के घेराव में पीएफआई से जुड़े लोगों का नाम सामने आए थे. राज्य के इंदौर, उज्जैन, खंडवा, बुरहानपुर, रतलाम आदि जिलों में पीएफआई तेजी से बढ़ रहा है. इस संगठन की महिला और छात्र विंग क्रमशः NWF और CFI भी हैं, जिनकी मदद से तेजी से युवा इस संगठन से जुड़ रहे हैं. 

कैसे हुई PFI की शुरुआत

साल 2016 में एनआईए ने केरल में आईएस के मॉड्यूल का खुलासा किया था. जांच में पता चला है कि इस मॉड्यूल के कई सदस्य पीएफआई के सदस्य हैं. बीते दिनों सीएए के खिलाफ देश में कई जगह हिंसा और बवाल की घटनाएं सामने आईं. इनमें भी पीएफआई का नाम प्रमुखता से सामने आया. पीएफआई पर मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और कुछ देश विरोधी संगठनों से संबंध रखने के आरोप लगते रहते हैं. 

बता दें कि इस पीएफआई की शुरुआत साल 2006 में केरल में हुई थी. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद दक्षिण भारत के तीन संगठनों नेशनल डेवलेपमेंट फ्रंट ऑफ केरल, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु के मनिथा नीथी पासरी संगठनों के विलय से पॉप्यूलर फ्रंट ऑफ इंडिया की शुरुआत हुई. 

तेजी से फैल रहा PFI का प्रभाव

रिपोर्ट के अनुसार, आज देश के 22 राज्यों में पीएफआई की मौजूदगी है और यह संगठन तेजी से देश के विभिन्न राज्यों में अपने पैर पसार रहा है. पीएफआई को अरब देशों के साथ ही दुनिया के कई देशों से फंडिंग होती है. पीएफआई का मुख्यालय केरल के कोझिकोड में था लेकिन अब यह दिल्ली में शिफ्ट हो गया है. पीएफआई के अध्यक्ष इ. अबु बकर हैं, जिनका ताल्लुक केरल से है. 

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, केरल में पीएफआई के कई नेताओं का ताल्लुक सिमी से रहा है. हालांकि पीएफआई अपने आप को सामाजिक संगठन मानता है, जो देश के अल्पसंख्यकों, दलितों और कमजोर तबकों के विकास के लिए काम कर रहा है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2015 में पीएफआई के सदस्य केरल में कम से कम 30 राजनीतिक हत्याओं में शामिल रहे थे.

हिंसा की कई घटनाओं में शामिल

पीएफआई के 13 सदस्य ईशनिंद के आरोप में केरल के एक प्रोफेसर के दोनों हाथ काटने के दोषी पाए गए थे. केरल में एबीवीपी नेताओं की हत्या में भी पीएफआई के सदस्यों का नाम आ चुका है. पीएफआई संगठन किस कदर समाज में कट्टरपंथ घोल रहा है, उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2014 में केरल सरकार ने हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कर दावा किया था कि पीएफआई राज्य में 27 राजनीतिक हत्याओं और 86 हत्या की कोशिश के मामलों और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के 125 मामलों में शामिल रहा. 

कथित लव जिहाद के मामलों में भी पीएफआई के कार्यकर्ताओं के नाम सामने आए हैं. केरल के चर्चित अखिला मामले में भी उसका पति सफीन जहां पीएफआई का सदस्य था. बता दें कि अखिला धर्मांतरण कर अपना नाम हादिया रख लिया था. अखिला का धर्मांतरण जिस संस्था ने किया, उसका ताल्लुक भी पीएफआई से है. 

बैन लगाने की उठ रही मांग

इसी साल फरवरी में उडुपी चिकमंगलुरू से सांसद शोभा करांदलजे ने पीएम मोदी से पीएफआई पर बैन लगाने की मांग की थी. सांसद ने आरोप लगाया था कि पीएफआई विशेष समुदाय के युवाओं का ब्रेनवॉश कर उन्हें देश के खिलाफ भड़का रहा है. भाजपा सांसद ने बताया था कि बीते एक साल में पीएफआई के 120 से ज्यादा सदस्य विभिन्न टेरर लिंक के संबंध में गिरफ्तार किए गए हैं. झारखंड सरकार ने साल 2019 में ही पीएफआई पर राज्य में बैन लगा दिया था. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भी इस संगठन पर बैन लगाना चाहती है. अब एमपी सरकार भी इसकी तैयारी में है. 

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