रतलाम के पहाड़ी में है केदारेश्वर मंदिर, सावन में लगता है भक्तों का तांता, झरना देख आकर्षित होते हैं श्रद्धालु
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रतलाम के पहाड़ी में है केदारेश्वर मंदिर, सावन में लगता है भक्तों का तांता, झरना देख आकर्षित होते हैं श्रद्धालु

Ratlam Kedareshwar Temple: रतलाम शहर से 27 किलोमीटरर दुर सैलाना में पहाड़ों के बीच में केदारेश्वर महादेव का मंदिर है. सावन माह के वजह से यहां रोज श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इस मंदिर के आस-पास स्थित झरना, कुंड और पहाड़ी श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है.

 

रतलाम के पहाड़ी में है केदारेश्वर मंदिर, सावन में लगता है भक्तों का तांता, झरना देख आकर्षित होते हैं श्रद्धालु

चन्द्रशेखर सोलंकी/रतलामः सावन महीने की शुरुआत होते ही भगवान के हर पवित्र स्थल पर भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है. भगवान शिव के सभी प्रसिद्ध स्थान प्राकृतिक, सुंदर व आकर्षण भी होते हैं. ऐसा ही भगवान शिव का एक पवित्र और सुंदर स्थान है रतलाम जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर की दूर सैलाना शिवगढ़ मार्ग पर, जिसे केदारेश्वर के नाम से जानते हैं. भगवान शिव का यह मंदिर अद्भुत और चमत्कारी है. सावन माह में यहां भक्तों का भीड़ लगा रहता है. आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में.  

केदारेश्वर भगवान का मंदिर रतलाम पहाड़ो के बीच प्राचीन कुंड में गिरते झरने के पास विराजित है. इस मंदिर में भगवान शिव का प्राचीन शिवलिंग पहाड़ों के बीच कई फीट नीचे गहराई में एक प्राचीन कुंड के पास है. पहले यहां नीचे जाने का रास्ता कच्चा था. लेकिन अब श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने के बाद अब यहां पहाड़ो के बीच नीचे वाहनों के आने जाने के लिए पक्का रास्ता बनाया गया है. लेकिन नीचे जाने के बाद आगे सीढ़ियों के रास्ते पैदल नीचे कुंड और भगवान शिव के दर्शन के लिए जाना पड़ता है. नीचे जाते ही चारो और ऊंचे पहाड़ों पर हरियाली के बीच घिरा यह स्थान श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है और इस हरियाली के बीच ऊपर पहाड़ से पूरे सावन माह में प्राचीन कुंड में झरना गिरता रहता है, जो श्रद्धालुओ को आकर्षित भी करता है.

प्राचीन कुंड के पास पहाड़ों के अंदर बने मंदिर में विराजित है भगवान केदारेश्वर शिवलिंग. श्रद्धालु इस प्राचीन कुंड के जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करते है और भगवान शिव का आशीर्वाद लेते है. इस मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर में शिवलिंग के सामने मां पार्वती की प्रतिमा भी है. इसके अलावा दायें बायें गणेश व हनुमान जी की प्रतिमा भी पहाड़ों के बीच तराशी गयी है. शिवलिंग के सामने मां पार्वती की प्रतिमा के साथ गणेश व हनुमान के एक साथ दर्शन भी बड़े दुर्लभ है.

इस स्थान की कहानी भी रोचक है यह स्थान कितना पुराना है इसका इतिहास नही है, क्योंकि यहां के पीढ़ियों से पूजा करते आ रहे पुजारी परिवार बताते हैं कि 350 वर्ष पूर्व सैलाना के राजा दुले सिंह घूमते हुए यहां पहुंचे थे और यह शिवलिंग उन्हें दिखा, जिसके बाद इस पहाड़ के अंदर साफ-सफाई और खुदाई करवाकर अन्य प्राचीन प्रतिमाओं को देख यहां मंदिर भवन बनवाया, ताकि अन्य श्रद्धालु भी यहां आ सके और भगवान शिव पूजा की जाए.

इतना ही नहीं इस जलाधारी शिवलिंग के अंतिम छोर पर दुले सिंह महाराज ने अपनी प्रतिमा बनवाई, जिससे भगवान शिव पर चढ़ा हुआ जल जलाधारी से होता हुआ उनके ऊपर गिरे और हमेशा उनको भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है. आज भी इस जलाधारी के अंतिम छोर पर एक हाथ जोड़कर प्रतिमा है, जिसे यहां के पुश्तैनी पुजारी परिवार सैलाना के महाराज दुले सिंह की प्रतिमा बताते हैं.

यहां वैसे तो अब पूरे वर्ष श्रद्धालु आते हैं, लेकिन सावन माह में यहां श्रधालुओ का तांता लगता हैं. यहां न सिर्फ रतलाम जिले से बल्कि झाबुआ, मंदसौर, नीमच, उज्जैन सहित आस पास के कई जिलों के शिवभक्तों को जैसे-जैसे जानकारी लगती है, वह यहां एक बार आकर दर्शन जरूर करते हैं और भगवान शिव के इस पहाड़ों के बीच पवित्र स्थान को देख भाव विभोर होते हैं.

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