बड़ी खबर: सरकार 2025 तक बंद कर देगी विदेशों से यूरिया खरीदना!
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बड़ी खबर: सरकार 2025 तक बंद कर देगी विदेशों से यूरिया खरीदना!

Urea Import Ban: भारत ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों से यूरिया का आयात करता है. देश की 3 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था में 15 फीसदी हिस्सेदारी एग्रीकल्चर सेक्टर की ही है. 

बड़ी खबर: सरकार 2025 तक बंद कर देगी विदेशों से यूरिया खरीदना!

नई दिल्लीः भारत सरकार 2025 तक विदेशों से यूरिया की खरीद पर रोक लगाने पर विचार कर रही है. दरअसल सरकार स्थानीय स्तर पर यूरिया के उत्पादन को बढ़ाने की योजना बना रही है, जिसके तहत नए यूरिया प्लांट लगाए जाएंगे. केंद्रीय फर्टिलाइजर मंत्री मनसुख मांडविया ने यह जानकारी दी है. बता दें कि अभी दुनिया में सबसे ज्यादा यूरिया का आयात करने वाले देशों में भारत का नाम शामिल है, जो अपनी जरूरत का 30 फीसदी यूरिया यानि कि करीब 35 मिलियन टन यूरिया विदेशों से आयात करता है. 

5 नए प्लांट बनेंगे
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि 2025 तक यूरिया के आयात से अपनी निर्भरता को खत्म किया जाए. इसके लिए 5 नए प्लांट लगाए जाएंगे. ये प्लांट उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, तेलंगाना के रामागुंडम और पूर्वी भारत के तलचेर, बरौनी और सिंदरी में लगाए जाएंगे. रामागुंडम का प्लांट 12 नवंबर से शुरू भी हो जाएगा. ये पांचों प्लांट हर साल करीब 6.5 मिलियन टन यूरिया का उत्पादन करेंगे. साथ ही नैनो यूरिया का उत्पादन भी 2025 तक बढ़ाकर 5 मिलियन टन किया जाएगा. नैनो यूरिया में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स होते हैं, जो फसलों की ग्रोथ के लिए अहम होते हैं.

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बता दें कि अभी भारत ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों से यूरिया का आयात करता है. भारत के लिए यूरिया कितना अहम है कि देश की 60 फीसदी जनसंख्या खेती के काम में लगी है और देश की 3 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था में 15 फीसदी हिस्सेदारी एग्रीकल्चर सेक्टर की ही है. 

भारी सब्सिडी से खजाने पर असर
बढ़ती महंगाई के चलते फर्टिलाइजर सब्सिडी के रूप में भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023 में रिकॉर्ड 2.25 ट्रिलियन रुपए यानि कि 27.21  बिलियन डॉलर यूरिया सब्सिडी पर खर्च किए हैं. वहीं पिछले वित्तीय वर्ष में यह आंकड़ा करीब 1.5 ट्रिलियन रुपए था.  भारत की कुल फर्टिलाइजर सब्सिडी में 70 फीसदी हिस्सेदारी अकेले यूरिया की है. यही वजह है कि सरकार स्थानीय स्तर पर यूरिया के प्रोडक्शन को बढ़ावा दे रही है. 

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