कवि दुष्यंत कुमार के बेटे की जमीन पर अवैध कब्जा, प्रशासन से की हटवाने की मांग
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कवि दुष्यंत कुमार के बेटे की जमीन पर अवैध कब्जा, प्रशासन से की हटवाने की मांग

दुष्यंत का जन्म यूपी के बिजनौर में हुआ था, लेकिन आकाशवाणी में नौकरी के बाद वे भोपाल में ही बस गए. 1975 में जब वे परलोक सिधार गए तो परिवार ने भोपाल को ही अपनाया. 

फाइल फोटो

भोपाल (संदीप भम्मरकर): पक गई हैं आदतें, बातों से सर होंगी नहीं. कोई हंगामा करो ऐसे गु़ज़र होगी नहीं. करीब 50 साल पहले दुष्यंत कुमार ने जिन हालातों को देखकर ये पंक्तियां लिखी थीं. उन्हीं हालातों से आज दुष्यंत कुमार का परिवार गुजर रहा है. उनके बेटे ने करीब पैंतीस बरस पहले एक ज़मीन का टुकड़ा भोपाल के बरखेड़ी कलां गांव में खरीदा था. ये सोचकर की बुढ़ापे में उनका परिवार उसी भोपाल में बसेगा, जहां उनके पिता दुष्यंत कुमार ने अपना ठिकाना बनाया था. 0.137 हैक्टेयर यानी करीब 14 हजार वर्ग फीट ज़मीन अब शहरी रिहायश के दायरे में आ गई है. मकान बनाने से पहले जब दुष्यंत कुमार के बेटे आलोक कुमार त्यागी ने तहसील दफ्तर में ज़रूरी औपचारिकताएं शुरू की तो पता लगा कि ज़मीन पर किसी और ने कब्जा जमा रखा है.

दफ्तर में शिकायत की तो उनके प्लॉट पर दीवारें उठानी शुरू हो गईं. अपनी ज़मीन के सारे दस्तावेज लेकर आलोक कुमार त्यागी ने कभी तहसील दफ्तर तो कभी एस.डी.एम. कोर्ट में दस्तक शुरू कर दी. रेवेन्यू अफसर ने रेवेन्यू रिकॉर्ड और मौका मुआयना के ज़रिए रिपोर्ट दी है कि ज़मीन तो आलोक कुमार त्यागी के नाम पर है, लेकिन कंस्ट्रक्शन किसी और ने कर रखा है. ज़मीन के हालात देखिए. ये फेंसिंग अब आलोक कुमार त्यागी की ज़मीन पर मकान बनाने की इजाजत नहीं दे रही. इसके अलावा सारे हालात आलोक कुमार त्यागी के साथ हैं. 

वैसे तो दुष्यंत का जन्म यूपी के बिजनौर में हुआ था, लेकिन आकाशवाणी में नौकरी के बाद वे भोपाल में ही बस गए. 1975 में जब वे परलोक सिधार गए तो परिवार ने भोपाल को ही अपनाया. दुष्यंत कुमार के भोपाल को अपना बनाने के सपने में अब चंद मौका परस्त लोग आड़े आ रहे हैं. आलोक कुमार त्यागी चाहकर भी अपना आशियाना बनाने की कोशिश नहीं कर पा रहे हैं. 

दुष्यंत कुमार के बेटे आलोक कुमार त्यागी अपनी बैंक की नौकरी से रिटायर हो चुके हैं। उनकी पत्नी भी पद्म भूषण सम्मानित प्रख्यात साहित्यकार कमलेश्वर की बेटी हैं। दुष्यंत कुमार और कमलेश्वर ने पूरी उम्र कलम के इर्दगिर्द ही गुजरी. लेकिन ये दोनों कलमनवीस शायद अपनी नस्लों को आज के ज़माने की चतुराइयां नहीं सिखा पाए. यही वजह है कि सब कुछ होने के बावजूद भी अपने मकान की हसरत पूरी नहीं कर पा रहे हैं..दफ्तर तर दफ्तर भटकने वाली दुष्वारी के इस दौर में आलोक कुमार त्याही उनके पिता की लिखी हुई पंक्तियों को याद करते हैं.

चीख निकली तो है होठों से मगर मद्धम है...
बंद कमरों को सुनाई नहीं दी जाने वाली...
आलोक कुमार अपना ये शेर भी कहते हैं...
हर हक यहां पर आधा अधूरा है इस तरह, 
कि कागज़ पर घर मिला पर कब्जा नहीं मिला...

वहीं इस मामले पर जिले के कलेक्टर सुदाम खाड़े का कहना है कि यह सारी सरकारी प्रक्रिया की उलझन है. एसडीएम और तहसीलदार की लेटलतीफी के कारण यह सब कुछ हो रहा है. 

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