दो IPS ने मिलकर केंद्र और राज्य सरकार को लगाया 5 करोड़ का चूना, पुरषोत्तम शर्मा पर भी आरोप
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दो IPS ने मिलकर केंद्र और राज्य सरकार को लगाया 5 करोड़ का चूना, पुरषोत्तम शर्मा पर भी आरोप

हालांकि, तत्कालीन डीजीपी एसके राउत के रिटायर होने के बाद इस पूरे मामले की जांच तत्कालीन एडीजी रंजीत गर्ग को सौंपी गई थी. मामले में सख्ती दिखाते हुए उन्होंने गृह विभाग को तथ्यों के साथ जांच रिपोर्ट भी सौंपी थी. सूत्रों के मुताबिक उस समय गृह विभाग में अपर मुख्य सचिव के पद पर आरके स्वाई पदस्थ थे, जो कि तत्कालीन डीजीपी के नजदीकी रिश्तेदार थे. यही वजह थी कि पूरे मामले को दबा दिया गया था. 

दो IPS ने मिलकर केंद्र और राज्य सरकार को लगाया 5 करोड़ का चूना, पुरषोत्तम शर्मा पर भी आरोप

भोपाल: साल 2020 में पुलिस मुख्यालय के आईपीएस अफसरों ने 5 करोड़ रुपए का घोटाला किया था. इसके जरिए फर्जी कंपनी बनाकर केंद्र और राज्य सरकार को चपत लगाई थी. हालांकि मामले में सीनियर आईपीएस अफसरों को बचाने के लिए गृह विभाग की तरफ से 7 वर्षों तक जांच को दबा दिया गया था. वहीं, मामले में जब गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मामले में जांच की जा रही है. जल्द ही इसे उच्च स्तर पर निर्णय के लिए रखा जाएगा. 

जानें क्या है पूरा मामला?
दरअसल, साल 2010 में भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और उज्जैन के ट्रैफिक सर्वे के नाम पर 5 करोड़ का घोटाला किया गया था. जिसमें केंद्र सरकार से 4 करोड़, जबकि राज्य सरकार से 1 करोड़ रुपए लिए गए थे. सूत्रों के मुताबिक जिस समय यह घोटाला हुआ था. उस समय तत्कालीन डीजीपी एसके राउत और एससीआरबी में पदस्थ रहे पुरषोत्तम शर्मा की भूमिका संदिग्ध रही है. 

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हालांकि, तत्कालीन डीजीपी एसके राउत के रिटायर होने के बाद इस पूरे मामले की जांच तत्कालीन एडीजी रंजीत गर्ग को सौंपी गई थी. मामले में सख्ती दिखाते हुए उन्होंने गृह विभाग को तथ्यों के साथ जांच रिपोर्ट भी सौंपी थी. सूत्रों के मुताबिक उस समय गृह विभाग में अपर मुख्य सचिव के पद पर आरके स्वाई पदस्थ थे, जो कि तत्कालीन डीजीपी के नजदीकी रिश्तेदार थे. यही वजह थी कि पूरे मामले को दबा दिया गया था. 

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ऐसे पकड़ा गया फर्जीवाड़ा
खबर के मुताबिक पुलिस मुख्यालय के अफसरों ने कंपनी से सांठ-गांठ कर मेसर्स इन डिवेलप नई दिल्ली भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और उज्जैन शहर के यातायात का कागजी सर्वे करवाकर उसे पांच किश्तों में 4 करोड़ 95 लाख का भुगतना करवा दिया था. लेकिन जिस कंपनी को भुगतान किया गया उसके बिलों पर टीन नंबर तक नहीं था. जिसकी वजह से अफसरों ने 10 प्रतिशत टीडीएस भी नहीं काटा और इसी दौरान पुरषोत्तम शर्मा का एससीआरबी से तबादला हो गया उनकी जगह संजय झा एससीआरबी में आईजी के पद पर पदस्थ हुए. 

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जब उन्हें पता चला कि किसी कंपनी का 10 प्रतिशत टीडीएस काटे बिना भुगतान किया गया तो उन्होंने इस बारे में कंपनी से जानकारी मांगी. लेकिन कंपनी की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया. इसके बाद तत्कालीन आईजी संजय झा ने एससीआरबी के इंस्पेक्टर शंखधर द्विवेदी को कंपनी के पते पर दिल्ली भेजा. लेकिन तब तक कंपनी उस पते से भाग चुकी थी. इस पूरे मामले में एससीआरबी ने कंपनी के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराया. इसके बाद तत्कालीन एडीजी ने पूरे मामले की जांच ईओडब्ल्यू से कराने के लिए गृह विभाग को पत्र लिखा था जो दबा दिया गया. 

इस प्रोजेक्ट के तहत किया गया था खेल
शहरी विकास मंत्रालय ​सचिव डॉ. एम रामचन्द्रन ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर शहरों में यातायात व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए प्रोजेक्ट बनाने का आदेश दिया था.  इस प्रोजेक्ट के तहत 80 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार की तरफ से, जबकि 20 प्रतिशत राशि राज्य सरकार की तरफ से दिया जाना था. इसकी जानकारी मिलते ही स्टेट क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो ने राज्य सरकार को बताए बिना ही सीधे शहरी विकास मंत्रालय को 5 शहरों भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और उज्जैन में या​तायात सुधार के लिए 5 करोड़ रुपए का प्रस्ताव बनाकर भेज दिया था. 

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