सागरः एक ओर जहां दुनिया चांद पर पहुंच घर बनाने का ख्वाब देख रही है, वहीं देश के कई गांव ऐसे भी हैं जहां लोग बुनियादी योजनाओं का लाभ तक नहीं ले पाए. उन्हीं में से एक मध्य प्रदेश के सागर जिले का गांव भी है. जहां लोगों तक सरकार की एक भी योजना का लाभ नहीं पहुंचा, आलम यह है कि लोगों को न तो पीने का शुद्ध पानी मिल पा रहा और न ही दो वक्त की रोटी. जिम्मेदारों से जब मामले में सवाल किए गए तो वे जांच कराने की बात करते नजर आए.


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बंधुआ मजदूर बन रहने को मजबूर
सरकारी दावों की पोल खोलती यह कोई फिल्म की कहानी नहीं बल्कि बीना तहसील के देहरी गांव की हकीकत है. जहां के आदिवासी लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहने को मजबूर है, इन्हें राशन तक नहीं मिल पा रहा. जिस कारण ये लोग दबंगों के घर बंधुआ मजदूर बन के रहने को मजबूर हो गए. गांव में मुश्किल से 50 से ज्यादा परिवार रहते हैं, लेकिन बावजूद इसके गांव में सरकारी योजनाएं दूर-दूर तक नजर नहीं डाल पा रहीं.



 


50 परिवारों के गांव में एक भी पीएम आवास नहीं
गांव में कहने को तो मात्र 50 परिवार रहते हैं, लेकिन एक भी परिवार को 'पीएम आवास योजना' का लाभ नहीं मिला. घास-फूस व लकड़ी के बने दरवाजे और झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के घरों के चूल्हे सप्ताह में मुश्किल से किसी दिन जलते हैं. गरीब लोग अपने बच्चों का पेट भरने तक के लिए गेहूं उधार मांगने को मजबूर हैं. इन्हें सरकार की ओर से राशन तक नहीं मिल पा रहा.


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बच्चों के विवाह का कर्ज आज तक नहीं उतार सकें
गांव में रहने वालीं द्रोपदी बाई बताती हैं कि उन्होंने बच्चों के विवाह के लिए कर्ज लिया था. लेकिन कई सालों तक काम करने के बाद भी वे लोग कर्ज नहीं उतार सकें. उन्हें इतनी मजदूरी ही नहीं मिलती कि कर्ज उतर जाए. न तो उनका खर्च चल पा रहा है और न ही कर्ज उतर पा रहा.



 


तहसीलदार बोले सरपंच और पटवारी ने नहीं सौंपी रिपोर्ट
पीड़ित लोगों के बीच जब बीना के नायब तहसलीदार एके चंदेल पहुंचे तो कहने लगे कि लोगों को स्थानीय सरपंच, सचिव और पटवारी ने योजना का लाभ दिलाने की कोशिश ही नहीं की. अब वह रिपोर्ट तैयार कर एसडीएम को सौंपेंगे. तहसीलदार साहब ने रिपोर्ट सौंपने का कह तो दिया लेकिन इन गांव वालों के जीवन में विकास का उजाला कब आएगा इस बात का जवाब किसी को पता नहीं.


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