कर्ण मिश्रा/जबलपुरः मध्य प्रदेश में बीते कुछ दिनों से पेट्रोल-डीजल के साथ ही घरेलू गैस सिलेंडर के दामों में भी बढ़ोत्तरी हुईं. बस कर्मचारियों की हड़ताल के बाद एक मार्च से बस किराया भी बढ़ा दिया जाएगा. दामों में इतनी वृद्धि के बाद आम आदमी की जेब पर वैसे ही भार बढ़ रहा है और अब यहां विद्युत कंपनियों ने भी प्रदेश में बिजली के रेट बढ़ाने के लिए विद्युत नियामक आयोग के पास सुझाव भेजे हैं. अगर बिजली कंपनियों के सुझावों पर अमल किया जाएगा तो प्रदेश में बिजली के दामों में भी वृद्धि हो सकती हैं.


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बिजली कंपनियों के सुझाव और आपत्ति
मध्य प्रदेश देश के उन राज्यों में से एक है, जहां बिजली के दाम सबसे ज्यादा है, बावजूद इसके इस साल भी बिजली कंपनियों ने रेट बढ़ाने के प्रस्ताव भेजे हैं. उनकी ओर से कहा गया है कि बढ़ते दामों पर कंट्रोल भी किया जा सकता है. इसके लिए सरकार को थर्मल बिजली उत्पादन गृहों की क्षमता को बढ़ाना होगा. ऐसा करने से बिजली कंपनियों की आमदनी बढ़ेगी और आमदनी-खर्च के बीच रेवेन्यू गैप कम होगा. लेकिन, अगर थर्मल बिजली उत्पादन गृहों की क्षमता नहीं बढ़ी तो विद्युत आयोग को दाम बढ़ाने होंगे.


इस परिस्थिति में कंट्रोल किए जा सकते हैं दाम
विद्युत कंपनियों के सुझाव सामने आते ही जबलपुर के RTI एक्टिविस्ट रजत भार्गव ने नियामक आयोग को एक नोटिस भेजा. उन्होंने आयोग से मांग की कि वो जांच कर पता लगाएं कि प्रदेश के थर्मल पावर प्लांट का लोड फेक्टर प्रतिशत कम क्यों है? साथ ही फ्यूल चार्जेस इतने अधिक क्यों है? यदि आयोग इनकी जांच के बाद निष्कर्ष पर पहुंचता है तो उन्हें बिजली दरों में इजाफा करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. उनका मानना है कि इन्हीं खामियों के चलते बिजली कंपनियों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है और वे दाम बढ़ाने की मांग कर रही हैं.


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प्रदेश में चार बड़ी कंपनियों के थर्मल पावर स्टेशन की क्षमता कितनी हैं
मध्य प्रदेश में बिजली का स्त्रोत चार बड़ी कंपनियों के पास हैं. इनमें श्री सिंघा जी, सतपुड़ा, संजय गांधी और अमरकंटक शामिल हैं. इन कंपनियों में थर्मल पावर स्टेशन की क्षमता इस प्रकार हैं.


श्री सिंघा जी - 24.42 प्रतिशत
सतपुड़ा - 30.48 प्रतिशत
संजय गांधी - 57.08 प्रतिशत
अमरकंटक - 78.00 प्रतिशत


*क्षमता औसत प्रति वर्ष में हैं


राष्ट्रीय औसत 70 प्रतिशत, प्रदेश में करीब 46
वर्तमान में प्रदेश के थर्मल बिजली उत्पादन गृहों मे प्लांट लोड फैक्टर (Plant Load Factor) का औसत करीब 46 प्रतिशत हैं. वहीं राष्ट्रीय PLF औसत 70 प्रतिशत से भी ऊपर हैं. प्रदेश में थर्मल पावर प्लांट की क्षमता कम होने के कारण इनमें प्रति यूनिट बिजली उत्पादन के लिए कोयला और तेल का उपयोग 20 प्रतिशत से भी ज्यादा हो रहा है. बिजली उत्पादन में हो रहे इस अतिरिक्त खर्च के कारण कंपनियों की आमदनी और खर्च के बीच अंतर बढ़ रहा है. इसी कारण वे दाम बढ़ाने की मांग कर रही हैं.


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प्रदेश के पावर स्टेशनों की क्षमता कई वर्षों से कम
थर्मल पावर स्टेशनों की क्षमता इसी साल कम नहीं हुईं, यह पिछले कई सालों से औसत से कम बनी हुई है. RTI एक्टिविस्ट रजत ने कहा कि इस संबंध में कई बार शिकायत के बाद भी हालातों में सुधार नहीं हो रहे हैं. वहीं प्रदेश में बिजली उत्पादन के लिए उपयोग किए जा रहे कोयले की क्वालिटी और उनकी कीमतों पर भी विद्युत नियामक आयोग को नियंत्रण करना चाहिए. उन्हें विद्युत अधिनियम 2003 के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए इन दामों पर नियंत्रण के लिए पहल करनी होगी.


दाम लगातार बढ़ते रहे तो खटखटाएंगे HC का दरवाजा
एक्टिविस्ट ने कहा कि इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार कर अमल होता है तो बिजली के दामों में कमी लाई जा सकती हैं. इससे प्रदेश की चारों विद्युत वितरण कंपनियों का भी लाभ होगा और प्रदेश वासियों का भी. इन सब के बावजूद अगर प्रदेश में दाम बढ़ते हैं तो वो इस मामले को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.


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