Independence day: MP के इस शहर में बनता है भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा, इस तरह किया जाता तैयार
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Independence day: MP के इस शहर में बनता है भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा, इस तरह किया जाता तैयार

देश भर में फहराया जाने वाला तिरंगा मध्य प्रदेश के एक शहर में बनाया जाता है. 

तिरंगा

शैलेंद्र सिंह भदौरिया/ग्वालियरः यूं तो भारत की आजादी में ग्वालियर का प्रमुख योगदान रहा है. लेकिन आज भी ग्वालियर शहर में कुछ ऐसा काम हो रहा है, जिसके चलते पूरे देश में ग्वालियर की एक अलग पहचान बन चुकी है. राष्ट्रीय ध्वज किसी भी देश की प्रमुख पहचान होती है और आपको यह जानकर गर्व होगा कि देशभर की शासकीय और अशासकीय कार्यालयों के साथ-साथ कई मंत्रालयों पर लहराने वाला तिरंगा झंडा ग्वालियर में तैयार होता है.  ग्वालियर आजाद हिंदुस्तान की आन-बान-शान कहे जाने वाले तिरंगे का निर्माण करके अभी भी पूरे देश में अपना नाम रोशन कर रहा है. 

ग्वालियर का खादी संघ बना रहा है तिरंगा 
दरअसल, ग्वालियर के खादी भंडार में तिरंगा तैयार किया जाता है. यहां कारीगर हर साल पंद्रह अगस्त और 26 जनवरी के मौके पर तिरंगे बनाते हैं. खास बात यह है कि मुंबई और कर्नाटक के हुबली के बाद मध्य प्रदेश का ग्वालियर शहर ही देश ऐसा शहर है जहां तिरंगे तैयार किए जाते हैं. ग्वालियर में बना तिरंगा अब पूरे उत्तर भारत में अब सप्लाई होने लगा हैं. इसके लिए खादी संघ ने नई मशीनें लगाई हैं और लेबोरेटरी में टेस्ट करके झंडे मानकों के आधार पर सप्लाई किए जाते हैं. खास बात यह है कि यहां जो तिरंगे तैयार किए जाते हैं उसका धागा भी हाथों से इसी केंद्र में तैयार किया जाता है. ॉ

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5 से 6 दिन के बीच में बनता है एक तिरंगा 
ग्वालियर खादी केंद्र के ध्वज निर्माता इकाई की मैनेजर नीलू का कहना है कि किसी भी आकार के तिरंगे को तैयार करने में उनकी टीम को 5 से 6 दिन का समय लगता है. यहां बनने वाले तिरंगे मध्य प्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात सहित एक दर्जन से अधिक राज्यों में पहुंचाए जाते हैं. उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए गौरव की बात तो यह है कि देश के अलग-अलग शहरों में स्थित आर्मी की सभी इमारतों पर ग्वालियर में बने तिरंगे की शान बढ़ाते हैं. 

चरखा संघ के तौर पर हुई थी स्थापना 
बता दें कि इस केंद्र की स्थापना साल 1925 में चरखा संघ के तौर पर हुई थी.  बाद में साल 1956 में इसे मध्य भारत खादी संघ को आयोग का दर्जा मिला. इस संस्था से मध्य भारत के कई प्रमुख राजनितिक हस्तियां भी जुड़ी रही हैं. किसी भी खादी संघ के लिए तिरंगे तैयार करना बड़ी मुश्किल का काम होता है क्योंकि सरकार की अपनी गाइडलाइन है उसी के अनुसार तिरंगे तैयार करने होते हैं.  यही कारण है कि जब यहां तिरंगे तैयार किए जाते हैं तो उनकी कई बार बारीकी से मॉनिटरिंग करनी पड़ती है. 

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तीन कैटेगिरी में तैयार हो रहा तिरंगा 
ग्वालियर के खादी उद्योग केंद्र में तीन कैटेगिरी के तिरंगे तैयार किए जाते हैं.  मैनेजर के अनुसार अभी 2 बाय 3 से 6 बाई 4 तक के झंडे बनाए जा रहे हैं. इस केंद्र में एक साल में लगभग आठ से 10 हजार खादी के झंडे तैयार किए जाते हैं. पहले धाना बनाया जाता है, इसके बाद बुनाई का काम किया जाता है, उसके बाद तीन तरह के  लैबोरेट्री टेस्ट किए जाते हैं. टेस्ट में पास होने के बाद झंडों की फिनिशिंग और कलर भरने का काम किया जाता है. तीन रंगों का अलग-अलग डाइंग भी किया जाता है. कलर होने के बाद फिर से टेस्टिंग की जाती और उसके बाद झंडे में अशोक चक्र पिरोया जाता है. तब जाकर भारत की आजादी का प्रतीक तिरंगा तैयार होता है. 

कोरोना में कम हुई मांग 
कोरोना के पहले तक झंडों की जमकर डिमांड होती थी. लेकिन कोरोना के चलते पिछले दो सालों से झंडों की मांग में कमी हुई है. कभी एक करोड़ रुपए तक कारोबार करने वाला ग्वालियर खादी संघ फिलहाल 25 से 30 लाख रुपए तक ही कारोबार कर रहा है. जिससे ग्वालियर खादी संघ में आर्थिक संकट भी बना हुआ है. हालांकि इस बार भी स्वतंत्रता दिवस पर देश के कई हिस्सों में ग्वालियर में बना तिरंगा लहराएंगा.

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