कैलाश नाथ काटजू अपनी तेज तर्रार छवि के लिए जाने जाते थे, 1957 में जवाहर लाल नेहरू ने कैलाशनाथ काटजू को मध्य प्रदेश की कमान सौंपी थी.
Trending Photos
अर्पित पांडेय/ रतलामः लाहौर से पढ़ाई, प्रसिद्ध वकील, तेज तर्रार नेता, आजाद हिंद फौज के वकील, पंडित जवाहर लाल नेहरू के करीबी, यूपी की पहली सरकार में जिन्हें मंत्री बनाने के लिए भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने मनाया था. बाद में यही नेता मध्य प्रदेश के तीसरे मुख्यमंत्री बने. हम बात कर रहे हैं एमपी के तीसरे मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू की. जिनकी वजह से ही राजधानी भोपाल में प्रसिद्ध बिड़ला मंदिर बनाया गया था. उनके जन्मदिन पर आज हम आपको उनके जीवन से जुड़े कुछ ऐसे किस्से बताएंगे जिनके चलते उनकी गिनती भारतीय राजनीति के प्रमुख राजनेताओं में होती है.
काटजू की एक शर्त से भोपाल में बना था बिड़ला मंदिर
कैलाश नाथ काटजू अपनी तेज तर्रार छवि के लिए जाने जाते थे, 1957 में जवाहर लाल नेहरू ने कैलाश नाथ काटजू को मध्य प्रदेश की कमान सौंपी. भोपाल के लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र प्रसिद्ध बिड़ला मंदिर कैलाश नाथ काटजू की वजह से ही बना था. दरअसल, काटजू ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही राजधानी भोपाल सहित प्रदेश में तेजी से काम शुरू किया. काटजू ने भोपाल को सजाने और संवारने का काम शुरू किया. काटजू चाहते थे कि भोपाल की अरेरा हिल्स की पहाड़ी का सौंदर्यीकरण बनाने के लिए एक विशाल मंदिर बनाया जाए. इसके लिए काटजू ने पहाड़ी पर जमीन अलॉट की और एक ट्रस्ट भी बना दिया.
बिड़ला परिवार के सामने रखी मंदिर बनाने की शर्त
कैलाश नाथ काटजू चाहते थे कि भोपाल में बनने वाला यह मंदिर इतना सुंदर और भव्य होना चाहिए जिसकी पहचान पूरे भारत में हो. उसी वक्त कुछ ऐसा हुआ जिसने सबकों हैरान कर दिया. दरअसल, भारत के प्रसिद्ध और औद्योगिक बिड़ला घराने ने मध्यप्रदेश में निवेश की इच्छा जताई. काटजू ने बिड़ला परिवार के निवेश की बात तो मान ली, लेकिन उन्होंने बिड़ला परिवार के सामने एक ऐसी शर्त रखी जिसे वह लोग नाकार नहीं सकेंगे. काटजू ने बिड़ला परिवार से कहा कि वह मध्य प्रदेश में निवेश एक शर्त पर कर सकते हैं जब वह भोपाल में एक भव्य मंदिर बनाएंगे. मुख्यमंत्री काटजू की इस शर्त को बिड़ला परिवार ने मान लिया और तीन साल में अरेरा हिल्स की पहाड़ियों पर भव्य मंदिर बनाया गया. जिसे आज भोपाल के बिड़ला मंदिर के नाम से जाना जाता है.
यूपी सरकार में बने थे मंत्री
कैलाश नाथ काटजू से जुड़ा एक किस्सा बहुत दिलचस्प है. 1937 ब्रिटिश सरकार ने पूरे देश में चुनाव कराए थे. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी गोविंदवल्लभ पंत यूपी के मुख्यमंत्री बने. उनकी कैबिनेट में सभी मंत्रियों की जगह तय हो गई. लेकिन मामला अटका कानून मंत्री. कानून मंत्री किसे बनाया जाए, इस पद के लिए उस वक्त प्रसिद्ध वकील और कानून के जानकार कैलाश नाथ काटजू को यह पद दिया जाना था. लेकिन काटजू यह पद लेने के लिए तैयार नहीं थे. ऐसे में नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद को काटजू को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी. जहां राजेंद्र बाबू के मनाने के बाद ही काटजू ने उत्तर प्रदेश सरकार में कानून मंत्री का पद ग्रहण किया.
नेहरू ने बनाया था एमपी का मुख्यमंत्री
मध्य प्रदेश के गठन के बाद प्रदेश के पहले दो मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल और भगवतराम मंडलोई को जल्द ही पद छोड़ना पड़ा. ऐसे में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने करीबी कैलाश नाथ काटजू को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया. 1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की, तो काटजू को दोबारा मुख्यमंत्री की कमान सौंपी और वह नेहरू की उम्मीद पर खरें उतरे काटजू पहले ऐसे सीएम बने जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
जावरा में हुआ था जन्म
कैलाश नाथ काटजू का जन्म 17 जून 1887 मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के जावरा में हुआ था. यहां जिस गली में उनका बडा सा घर हुआ करता था, आज फिलहाल वहां मार्किट बना चुका है. लेकिन आज भी यहां कैलाश नाथ काटजू की यादें देखने को मिल जाती हैं. कैलाश नाथ काटजू के लिए न सिर्फ राजनीति के क्षेत्र में काम किया बल्कि उन्होंने अपने शहर के लिए भी कई काम ऐसे काम किए जिनके चलते आज देश और प्रदेश में जावरा और रतलाम की अलग पहचान है.
जावरा में रहने वाले कैलाश नाथ काटजू के बचपन के मित्र केदारनाथ मोदी बताते हैं कि काटजू का जन्म जावरा में हुआ, उनका घर पीपीली बाजार में था उनके पिताजी , त्रिभुवननाथ काटजू जावरा रियासत के दीवान थे जिनकी उनके दादाजी से अच्छी दोस्ती थी. इसी दोस्ती के चलते काटजू और मोदी में दोस्ती हो गई जिसके बाद दोनों सगे भाई की तरह रहने लगे थे. केदारनाथ मोदी बताते हैं कि कैलाशनाथ काटजू 11 साल की उम्र से ही हमारे घर आने लगे थे, वो मेरे दादाजी को पिता तुल्य मानते थे और उनका यही व्यवहार उन्हें दूसरों से अलग बनाता था.
नेहरू को जावरा बुलाया
केदारानाथ मोदी कहते हैं कि कैलाशनाथ काटजू जवाहर लाल नेहरू के अच्छे मित्र थे. ऐसे में जब नेहरू रतलाम जिले के दौरे पर पहुंचे तो काटजू की मित्रता की वजह से उन्हें जावरा भी आना पड़ा. आज भी उस वक्त के जो लोग जिंदा है उन्हें नेहरू और काटजू की दोस्ती आज भी याद है. काटजू ने जावरा के लिए बहुत कुछ किया, डिग्री कॉलेज बनवाया अस्पताल बनवाई, पॉलिटेक्निक कॉलेज बनाया. जिसके चलते जावरा को लोगों को परेशान नहीं होना पड़ा. काटजू इतने मिलनसार थे कि उनसे हर छोटा बड़ा आदमी आराम से मिल लेता था और वह सबकी समस्याएं सुनते और उन्हें दूर करने की कोशिश करते थे.
17 फरवरी 1968 को ली आखिरी सांस
कैलाश नाथ काटजू मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के अलावा भारत सरकार में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री व अन्य पदों पर भी रहे. 17 फरवरी 1968 को कैलाश नाथ काटजू ने अंतिम सांस ली. केदार मोदी बताते है कि जब भी कैलाश नाथ काटजू जावरा आते वो सबसे मिलते थे. जिसके चलते जावरा के लोग भी उन्हें कभी नहीं भूलेगा. उनके पोते मार्कंडेय काटजू सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके हैं.
ये भी पढ़ेंः ANALYSIS_अजय सिंह-सज्जन सिंह में बयान वॉर; MP कांग्रेस में ताजे घमासान की INSIDE STORY
WATCH LIVE TV