यह कोई पहला मौका नहीं है जब मध्य प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं में खींचतान हुई है. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि मध्य प्रदेश कांग्रेस में पहले भी इस तरह की खींचतान होती रही है.
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अर्पित पांडेय/ भोपालः मध्य प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं की अंतर्कलह एक बार फिर देखने को मिली है. ताजा विवाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की विंध्य अंचल की यात्रा से शुरू हुआ है. कमलनाथ ने कहा कि ''अगर विंध्य में कांग्रेस कार्यकर्ता और मेहनत करते, तो ज्यादा सीटें आतीं और हमारी सरकार नहीं गिरती.'' कमलनाथ के इस बयान पर अजय सिंह ने कहा कि ''कमलनाथ विंध्य का अपमान कर रहे हैं. सरकार गिरने का कारण विंध्य नहीं, बल्कि खुद कमलनाथ थे. वे चाहते तो सरकार बची रहती.'' दोनों नेताओं के बयान वार में अब मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा की भी एंट्री हो गई है. उन्होंने अजय सिंह को बड़ा दिल दिखाने की नसीहत दे डाली. जिससे पार्टी में अंदरूनी गुटबाजी सामने आ गई.
प्वाइंट नंबर-1
गुटों में वॉर से फिर कांग्रेस बेहाल
यह कोई पहला मौका नहीं है जब मध्य प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं में खींचतान हुई है. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि मध्य प्रदेश कांग्रेस में पुराने समय से ही खींचतान रही है. जिस तरह से कमलनाथ और अजय सिंह में विवाद शुरू हुआ उससे कांग्रेस कांग्रेस की गुटबाजी सबके सामने आ गई. गुटबाजी और आपसी कलह कांग्रेस का स्थायी भाव बनती जा रही है. प्रदेश कांग्रेस में अंतर्कलह का खामियाजा पहले भी पार्टी ने भुगता है. कमलनाथ के पास इन दिनों कांग्रेस की सारी ताकत है और कई कद्दावर नेता किनारे हैं, उनके पास कोई जिम्मेदारी नहीं है, ऐसे में असंतोष स्वाभाविक है. आने वाले दिनों में यह खींचतान और बढ़े तो अचरज नहीं होना चाहिए.
प्वाइंट नंबर-2
क्यों शुरू हुई कमलनाथ अजय सिंह में 'ईगो' की लड़ाई
दरअसल, हाल ही में कमलनाथ विंध्य के दौरे पर पहुंचे थे. जहां उन्होंने कहा था कि ''अगर विंध्य में कांग्रेस कार्यकर्ता और मेहनत करते, तो ज्यादा सीटें आतीं और हमारी सरकार नहीं गिरती.'' कमलनाथ के इस बयान पर अजय सिंह ने कहा कि ''कमलनाथ विंध्य का अपमान कर रहे हैं. सरकार गिरने का कारण विंध्य नहीं, बल्कि खुद कमलनाथ थे. वे चाहते तो सरकार बची रहती.'' अजय सिंह के इस बयान के बाद कांग्रेस की अंतकर्लह खुलकर सामने आ गई. इसके अलावा चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी भी दोनों नेताओं के विवाद की एक वजह माने जा रहे हैं, क्योंकि कमलनाथ ने विंध्य अंचल के रीवा जिले में चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को प्रभारी बनाया है. जिनके खिलाफ अजय सिंह हमेशा मुखर रहे हैं. ऐसे में दोनों नेताओं में विवाद बढ़ता जा रहा है. पार्टी के अंदर मची खींचतान अब तेज होती हुई नजर आ रही है. ऐसे में विंध्य को लेकर पार्टी आगे क्या फैसला लेती है इस पर अब सबकी नजरें टिकी हुई हैं.
प्वाइंट नंबर-3
2023 चुनाव पर नजर या खुद को मजबूत करने की जद्दोजहद
दरअसल, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कमलनाथ अभी से मध्य प्रदेश में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जुट गए हैं. क्योंकि जिस तरह से उन्होंने हाल ही में जिलों में प्रभारियों का नियुक्तियां की है. उससे कुछ ऐसा ही लगता है. कमलनाथ ने जिलों में अपनी पकड़ को मजबूत करने की शुरुआत जिलों में प्रभारी नियुक्त करने के साथ की है. पीसीसी चीफ कमलनाथ ने प्रदेश में संगठन स्तर पर 56 जिला प्रभारियों की नियुक्ति कर दी है. सबसे अहम विंध्य इलाका है, जहां अजय सिंह को दरकिनार करते हुए कमलनाथ ने अपने करीबियों को जिम्मेदारी दी है. जिसे 2023 में होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की नजर से देखा जा रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि इस तरह की नियुक्तियां दूसरे अंचलों में भी होगी ऐसे में कमलनाथ के खिलाफ कई नेताओं की मुखरता भी बढ़ती जा रही है.
प्वाइंट नंबर-4
दमोह उपचुनाव में जीत से उत्साह, क्या आगे भी रहेगा यही हाल
माना जा रहा है कि हाल ही में दमोह विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव में कांग्रेस को मिली जीत के बाद कमलनाथ उत्साह में है. पार्टी आगामी तीन विधानसभा और एक लोकसभा के उप-चुनाव के साथ नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव की तैयारी के लिए कदमताल कर रही है. लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पार्टी के दिग्गज नेताओं में आपसी समन्वय नहीं बन पा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि इन दिनों पूरी कांग्रेस कमलनाथ के आस पास ही है. कमलनाथ एक तरफ जहां पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं तो दूसरी तरफ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, कुल मिलाकर सारी ताकत कमलनाथ के पास है. पिछले दिनों कमलनाथ के आवास पर कुछ नेताओं की बैठक हुई, इस बैठक को लेकर जो बात सामने आई वह चर्चाओं का हिस्सा बनी हुई हैं.
प्वाइंट नंबर-5
दूसरी पीढ़ी को मिले मौका
कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा का कहना है कि अब समय आ गया है कि की दूसरी पीढ़ी के नेताओं को पार्टी में आगे लाना चाहिए. क्योंकि इन नेताओं के आगे आने से ही पार्टी को मजबूती मिलेगी. यह कोई पहला मौका नहीं है जब प्रदेश कांग्रेस में दूसरी पंक्ति के नेताओं को मौका देने की मांग उठी हो. इससे पहले भी कई बार युवा नेतृत्व की बात उठ चुकी है. दरअसल, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सियासत में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ पार्टी के वरिष्ठ और बुजुर्ग चेहरे माने जाने लगे हैं. वहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी से नाता तोड़ने के बाद अब कई नेता युवा चेहरा बनने के लिए अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. जिन्हें दूसरी पीढ़ी के नेताओं गिना जाता है, जिन्हें पार्टी में नई जिम्मेदारी दिए जाने के कयास लगते रहे है. इन नेताओं में जीतू पटवारी, जयवर्धन सिंह, नकुलनाथ, सचिन यादव, सहित अन्य कई नेता ऐसे हैं जिन्हें मौका दिया जा सकता है.
अपना नुकसान कर रही कांग्रेसः राजनीतिक जानकार
वहीं कांग्रेस में चल रही इस बयानबाजी और ताजा राजनीतिक घटनाक्रम पर जब मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक ''गिरीश उपाध्याय से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस में बड़े नेता एक-दूसरे को नाराज क्यों करना चाहते हैं, यह समझ से परे हैं. उन्होंने कहा कि अगर बात 2018 के विधानसभा चुनाव की जाए तो उस वक्त ऐसी स्थिति थी एक एंटी इस्टेब्लिशमेंट फीलिंग या सत्ता विरोधी लहर लोगों में थी, जिसके चलते कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला. उन्होंने बताया कि भले ही 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन बीजेपी और कांग्रेस में महज 7 सीटों का अंतर था. तो अपन यह मान सकते हैं कि मध्य प्रदेश की 50-50 प्रतिशत जनता ने दोनों दलों को पसंद किया था. उसके बाद जिस तरह से सरकार गिरी वह सबकों मालूम है कि सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़ा और सरकार चली गई.
''गिरीश उपाध्याय बताते हैं कि कांग्रेस की समस्या यही रही है कि उसके नेताओं की जो अंदरूनी फूट है, जो अंदरूनी मतभेद है. वह चाहे सत्ता में हो या विपक्ष में. आपसी खीचतान बनी रहती है. यानि कांग्रेस अपना कुनबा नहीं संभाल पाती. जिसके उनके अपने कारण है. इसी वजह से दूसरे लोगों को मौका मिलता है. जैसा मध्य प्रदेश में हुआ कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी का फायदा उठाया गया और आपके ही पार्टी के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी छोड़ने से सरकार गिरी. सिंधिया के जाने और सरकार गिरने का बाद भी कांग्रेस की स्थिति जस की तस है. प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष दोनों पद कमलनाथ ने अपने पास रखें. सबकुछ खोने के बाद भी नई पीढ़ी को आगे लाने की कोशिश नहीं की गई. ऐसा कुछ भी नहीं किया गया. आज भी मध्य प्रदेश कांग्रेस में वही नेतृत्व है जिसके चलते सरकार गिरी थी. तो चाहें कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व हो या फिर राज्य स्तर का नेतृत्व, समस्या कांग्रेस की यही है वह आपसी गुटबाजी का शिकार है.''
''वहीं कमलनाथ के बयान पर गिरीश उपाध्याय कहते हैं कि ''चुनाव में कभी कोई पार्टी किसी रीजन में जीतती है तो कभी हारती है. लेकिन कमलनाथ ने जिस तरह से विंध्य रीजन में कांग्रेस की हार पर सवाल खड़े किए यह सार्वजनिक कहने की जरूरत क्या है? उन्होंने कहा कि जिस तरह से सज्जन सिंह वर्मा कह रहे हैं कि अजय सिंह को कमलनाथ से फोन पर बात करनी चाहिए थी. उसी तरह प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते इस तरह की बात करना कमलनाथ को भी एक रीजन को बदनाम नहीं करना चाहिए. क्या जरूरत थी कमलनाथ को विंध्य के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बदनाम करने का बयान है. हार-जीत तो चुनाव में होती रहती है. कार्यकर्ताओं की भूमिका को कमतर नहीं आंकना चाहिए. इससे कांग्रेस का नुकसान ही होगा. कुल मिलाकर मध्य प्रदेश कांग्रेस इस वक्त भयंकर गुटबाजी की शिकार है. उन्होंने कहा कि बीजेपी और कांग्रेस में यही अंतर है. बीजेपी ने पार्टी में चाहे राष्ट्रीय स्तर हो या प्रदेश स्तर हर जगह पार्टी में परिवर्तन किया. लेकिन कांग्रेस में आज भी वहीं पुराना नेतृत्व है. उन्होंने कहा वह यह नहीं कहते हैं कि पुराने नेताओं को घर बैठा दो. लेकिन परिवर्तन भी होना जरूरी है. लेकिन न तो यहां परिवर्तन हो रहा है और न ही नए पीढ़ी के नेताओं मौका मिल रहा है. जिसके चलते कांग्रेस बिखरी हुई है. कांग्रेस के सभी नेताओं ने अपने-अपने चक्रव्यूह बना रखे है जिसमें कांग्रेस पार्टी फंसी हुई है.''
सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद पार्टी में पकड़ मजबूत करना चाहते हैं बड़े नेता
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद कई नेताओं को अपना भविष्य उजला नजर आने लगा है, यही कारण है कि कई नेता तरह-तरह से सक्रिय होते रहे हैं. कोई बयान देकर सक्रिय है तो कोई जमीनी स्तर पर सक्रिय है. कमलनाथ के पास इन दिनों कांग्रेस की सारी ताकत है और कई कद्दावर नेता किनारे हैं, उनके पास कोई जिम्मेदारी नहीं है, ऐसे में असंतोष स्वाभाविक है. आने वाले दिनों में यह खींचतान और बढ़े तो अचरज नहीं होना चाहिए.
पुराना है एमपी कांग्रेस में खींचतान का इतिहास
एमपी कांग्रेस में खींचतान का इतिहास पुराना रहा है. 1965 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मूलचंद देशधारा ने पार्टी के भीतर घमासान कर अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू को चुनाव हरवा दिया. इसकी वजह यह थी कि देशधारा नेहरू विरोधी थे और काटजू को नेहरू ने चुना था. इसी तरह 1980 में अर्जुन सिंह को संजय गांधी की पसंद पर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया तो उन्हें पूरा कार्यकाल शुक्ल बंधुओं, प्रकाश चंद सेठी, मोतीलाल वोरा और माधवराव सिंधिया से जूझना पड़ा. श्यामा चरण शुक्ल हालांकि तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए लेकिन दबावों के चलते वो एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.1993 से प्रदेश की सत्ता दिग्विजय सिंह ने संभाली लेकिन वह भी कही न कही सिंधिया गुट से जूझते रहे. यानि मध्य प्रदेश कांग्रेस में बड़े नेताओं में आपसी खीचतान पुरानी रही है. ऐसे में अब देखना होगा कि कमलनाथ, अजय सिंह और सज्जन सिंह वर्मा के इस प्रकरण का अंत क्या होता है.
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