हिंदू सभ्यता में ऐसी पौराणिक मान्यता है कि देवी- देवताओं में भगवान शिव ही ऐसे देव हैं जो भक्तों की भक्ति- पूजा से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं.
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नई दिल्ली. इस बार महाशिवरात्रि 11 मार्च को पड़ रही है. इस दिन भक्त भगवान शिव को खुश करने के लिए अलग-अलग चीजों को चढ़ाते हैं. इस मौके पर कई लोग साप्ताहिक व्रत रखते हैं. हिंदू सभ्यता में ऐसी पौराणिक मान्यता है कि देवी- देवताओं में भगवान शिव ही ऐसे देव हैं जो भक्तों की भक्ति- पूजा से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं. इसलिए भगवान शिव को आदि अनंत भी माना गया हैं.
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इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए लोग भांग, धतूरा, बेलपत्र और आक सहित कई अन्य वस्तुएं चढ़ाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान शिव को तुलसी के पत्ते और केतकी के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए. ऐसा क्यों किया जाता है, जानिए यहां?
केतकी का फूल
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी में बहस होने लगी कि कौन बड़ा है और कौन छोटा है? इस बात का फैसला करने के लिए दोनों देवता भगवान शिव के पास पहुंचे. इस दौरान भगवान शिव ने एक शिवलिंग प्रकट कर कहा कि जो उसके आदि और अंत का पता लगा लेगा वही बड़ा है.
जिसके बाद विष्णु बहुत ऊपर तक गए, लेकिन इसका पता नहीं लगा सके. जबकि ब्रह्मा जी काफी नीचे तक गए लेकिन उन्हें भी कोई छोर नहीं मिला. इसी दौरान नीच आते वक्त उनकी नजर केतकी के फूल पर पड़ी जो उनके साथ चल रहा था. ब्रह्मा जी ने केतकी के पुष्प को झूठ बोलने के लिए मना लिया. उन्होंने भगवान शिव से कहा कि मैंने इसका पता लगा लिया है. हालांकि भगवान शिव ने ब्रह्ना जी का झूठ पकड़ लिया. उन्होंने उसी समय झूठ बोलने के लिए ब्रह्मा जी का सिर काट दिया और केतकी के फूल को अपनी पूजा से वंचित कर दिया. इसलिए केतकी का फूल भगवान शिव को नहीं चढाया जाता है.
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तुलसी
पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी का नाम वृंदा था और वह जालंधर नाम के राक्षस की पत्नी थी. वह अपनी पत्नी पर जुल्म करता था. भगवान शिव ने विष्णु से जालंधर को सबक सिखाने के लिए कहा. तब भगवान विष्णु ने छल से वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग कर दिया था. जब वृंदा को यह बात पता चली तो उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि आप पत्थर के बन जाओगे. तब विष्णु जी ने तुलसी को बताया कि मैं तुम्हारा जांलधर से बचाव कर रहा था. इसलिए तुलसी भी भगवान शिव को नहीं चढ़ाई जाती.
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