महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा 148 सीटों पर जबकि कांग्रेस 103 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. 288 सीटों के लिए मंगलवार को नामांकन दाखिल करने का अंतिम दिन था लेकिन उसके बाद भी पूरी तरह से स्थिति साफ नहीं हुई. हां, कुछ सीटों को लेकर गजब का सस्पेंस बना हुआ है. दोनों बड़े गठबंधनों के लिए कई बागी सिरदर्द बने हुए हैं तो कुछ सीटों पर उम्मीदवारों को देख पब्लिक भी कन्फ्यूज दिख रही है.


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भाजपा खेमे का हाल


मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना ने 80 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि उपमुख्यमंत्री अजित पवार की NCP ने 53 उम्मीदवारों को टिकट दिया है. पांच सीट महायुति के दूसरे सहयोगियों को दी गई हैं, जबकि दो सीटों पर कोई निर्णय नहीं लिया गया.


कांग्रेस का गुट


विपक्षी महा विकास आघाडी (MVA) में कांग्रेस 103 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली शिवसेना (यूबीटी) 89 और एनसीपी (शरद पवार) 87 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. छह सीट एमवीए के दूसरे सहयोगियों को दी गई हैं, जबकि तीन विधानसभा सीट पर कोई स्पष्टता नहीं है.


सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों ही खेमों सहित लगभग 8,000 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किए हैं. राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि 7,995 उम्मीदवारों ने निर्वाचन आयोग के पास 10,905 नामांकन दाखिल किए हैं. नामांकन पत्रों का सत्यापन और जांच 30 अक्टूबर को होगी. मतदान 20 नवंबर को होगा और मतों की गिनती तीन दिन बाद की जाएगी.


सिरदर्द बने बागी


हां, टिकट न मिलने पर विधानसभा चुनाव में कूदने वाले बागी सत्तारूढ़ महायुति और विपक्षी महा विकास आघाडी के लिए सिरदर्द बन गए हैं. चुनावी जंग से नाम वापस लेने की अंतिम तिथि चार नवंबर है और इसके बाद मैदान में बचे बागियों की संख्या पर स्पष्ट तस्वीर सामने आएगी. अगर बागी चुनाव मैदान में डटे रहते हैं तो वे आधिकारिक उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण चुनौती पैदा करेंगे. ऐसे में महायुति और एमवीए का चुनावी गणित बिगड़ सकता है, जिनके बीच कड़ा मुकाबला है.


सबसे ज्यादा संख्या में उम्मीदवार उतारने वाली भाजपा को मुंबई के साथ-साथ राज्य के दूसरे हिस्सों में बागियों से संभावित नुकसान को रोकने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है. भाजपा के बागियों में एक बड़ा नाम गोपाल शेट्टी का है. वह दो बार विधायक और मुंबई से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं. उन्होंने मुंबई की बोरीवली विधानसभा सीट से पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार संजय उपाध्याय के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किया है. शेट्टी ने 2004 और 2009 में इस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और 2014 तथा 2019 में मुंबई उत्तर से लोकसभा चुनाव जीता.


भाजपा ने बोरीवली से 2014 में विनोद तावड़े (पार्टी महासचिव) और 2019 में सुनील राणे को मैदान में उतारा था. ये दोनों स्थानीय उम्मीदवार नहीं थे. भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा कि वे दोनों सीट जीतने में सफल रहे, लेकिन शेट्टी सहित पार्टी के स्थानीय सदस्य इस बात से असहज हो गए कि उनसे सलाह-मशविरा किए बिना बाहरी उम्मीदवार थोप दिए गए. शेट्टी को तब झटका लगा, जब उन्हें 2024 में लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया गया, जिससे केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के लिए रास्ता साफ हो गया. कुछ लोगों को उम्मीद थी कि शेट्टी को विधानसभा चुनाव में बोरीवली से उतारा जाएगा, लेकिन भाजपा ने उनके बजाय उपाध्याय को चुना.


वहीं, भाजपा नेता अतुल शाह ने मुंबई शहर की मुंबादेवी सीट से अपना नामांकन दाखिल किया है, जहां पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता शाइना एनसी सहयोगी शिवसेना की आधिकारिक उम्मीदवार हैं.


पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने मध्य महाराष्ट्र के औरंगाबाद सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र से किशनचंद तनवानी की उम्मीदवारी की घोषणा की थी. हालांकि, तनवानी ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और ठाकरे के प्रतिद्वंद्वी एवं मुख्यमंत्री शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के उम्मीदवार प्रदीप जायसवाल को समर्थन दे दिया.


चंद्रपुर जिले में भाजपा ने राजुरा निर्वाचन क्षेत्र से देवराव भोंगले को मैदान में उतारा है. इस फैसले से नाराज होकर भाजपा के दो पूर्व विधायकों- संजय धोटे और सुदर्शन निमकर ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया है.


भाजपा-शिवसेना को टेंशन क्यों?


राजनीतिक पर्यवेक्षक अभय देशपांडे के अनुसार, सत्तारूढ़ गठबंधन में राकांपा के प्रवेश ने भाजपा और शिवसेना के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. उन्होंने कहा, ‘विधानसभा चुनाव आम तौर पर उम्मीदवारों की छवि पर लड़ा जाता है. दोनों पक्षों (महायुति और एमवीए) में कम से कम तीन प्रमुख राजनीतिक दल हैं और यह स्पष्ट है कि प्रत्येक पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए सीमित संख्या में सीट मिली हैं. भाजपा और शिवसेना द्वारा पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी NCP के साथ हाथ मिलाए जाने से उनके समर्पित पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए जमीन पर एक बड़ी चुनौती पैदा हो गई है.’


ऐसे मामले भी हैं, जहां सहयोगी दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए हैं. उदाहरण के लिए, सोलापुर दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस ने दिलीप माने को नामांकित किया, लेकिन उन्हें आधिकारिक उम्मीदवार का दर्जा नहीं मिला क्योंकि उसकी सहयोगी शिवसेना (यूबीटी) ने अमर पाटिल को टिकट दिया है. (भाषा)