Martyr Major Ashish Last Rites: जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकवादियों के साथ हुए एनकाउंटर में शहीद हुए मेजर आशीष धौंचक (Major Ashish Dhaunchak) को नम आंखों के साथ आज अंतिम विदाई दी गई. मेजर आशीष बीते बुधवार को अनंतनाग में शहीद हो गए थे. शहीद मेजर आशीष धौंचक का अंतिम संस्कार (Major Ashish Dhaunchak Last Rites) पानीपत में उनके पैतृक गांव बिंझौल में हुआ. शहीद मेजर की अंतिम यात्रा में उनके साथ लगभग 1 किलोमीटर लंबा काफिला चला. राजकीय सम्मान के साथ उनको अंतिम विदाई दी गई. जान लें कि 1 महीने पहले ही 15 अगस्त को शहीद मेजर आशीष को उनकी बहादुरी के लिए सेना का मेडल दिया गया था. आइए जानते है कि 2012 में सेना में शामिल होने के बाद मेजर आशीष धौंचक ने कैसे सेना में इतना रुतबा हासिल किया.


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बचपन से ही सेना में जाने का था सपना


बता दें कि हरियाणा के पानीपत के रहने वाले आशीष का बचपन से ही सपना था कि सेना में जाकर देश की रक्षा करनी है. आशीष ने केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई की और 12वीं के बाद उन्होंने बरवाला के कॉलेज से बीटेक किया, जिसके बाद वो एमटेक कर रहे थे. इसका एक साल पूरा हुआ था कि 25 साल की उम्र में 2012 में भारतीय सेना में बतौर लेफ्टिनेंट भर्ती हो गए.



5 साल पहले ही बने थे मेजर


इसके बाद आशीष धौंतक बठिंडा, बारामूला और मेरठ में तैनात रहे. साल 2018 में आशीष प्रमोट होकर मेजर बन गए. आशीष की दो साल पहले ही मेरठ से जम्मू-कश्मीर में पोस्टिंग हुई थी. मेजर आशीष भी 19 राष्ट्रीय राइफल्स के सिख लाइट इन्फैंट्री में तैनात थे. इसी साल 15 अगस्त को उनकी बहादुरी के लिए सेना मेडल दिया गया था. 


सेना में हासिल किया बड़ा रुतबा


शहीद मेजर आशीष धौंचक ने बड़े कम समय में भारतीय सेना में बड़ा रुतबा हासिल कर लिया था. देश की सिक्योरिटी को अपना पहला कर्तव्य मानने वाले मेजर आशीष धौंचक की शहादत पर पूरा भारत देश गर्व कर रहा है. पर गमों का जो पहाड़ शहीद के परिवार पर टूटा है उसका शायद ही कोई मरहम हो. शहीद मेजर आशीष धौंचक अपने पीछे बूढ़े माता-पिता, पत्नी, 2 साल की मासूम बेटी को छोड़ गए हैं.