कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि मस्जिद के भीतर कथित तौर पर 'जय श्रीराम' का उद्घोष करने से धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होती हैं. कोर्ट ने मंगलवार को इससे जुड़े एक मामले में दो लोगों के खिलाफ पुलिस द्वारा दर्ज आपराधिक मामले को खारिज कर दिया. न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली एकल खंडपीठ ने आरोपियों की अपील याचिका पर आदेश देते हुए कहा कि यह समझ से परे है कि 'जय श्री राम' का नारा लगाने से किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस कैसे पहुंचेगी. आरोपियों पर मस्जिद में कथित तौर पर 'जय श्री राम' का नारा लगाने के लिए आईपीसी की धारा 295ए के तहत केस दर्ज किया गया था.


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आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 447, 505 (सार्वजनिक उपद्रव के लिए उकसाने वाले बयान), 506 (आपराधिक धमकी), 34 और 295 ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना) के तहत भी मामला दर्ज किया गया था. पीठ ने कहा कि मामले में शिकायतकर्ता ने खुद कहा था कि उस इलाके में हिंदू और मुसलमान सौहार्दपूर्ण तरीके से रह रहे हैं.


पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे की कार्यवाही की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि कोई भी और हर कृत्य आईपीसी की धारा 295 ए के तहत अपराध नहीं बनेगा.


इससे पहले पुलिस ने आरोप लगाया था कि आरोपी 24 सितंबर 2023 को रात करीब 10.50 बजे मस्जिद के अंदर घुसे और जय श्री राम के नारे लगाए. उन पर धमकी देने का भी आरोप लगाया गया था. जब शिकायत दर्ज की गई थी, तब आरोपियों को अज्ञात व्यक्ति के रूप में दिखाया गया था, बाद में आरोपियों को हिरासत में ले लिया गया था. इसे चुनौती देते हुए आरोपियों ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में अपील दायर की और अब उनके खिलाफ मामला रद्द कर दिया गया.


पीठ ने फैसले में यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने जिक्र किया है कि हिंदू और मुसलमान इस क्षेत्र में सद्भाव से रहते हैं और उन्होंने यह भी दावा किया है कि "जय श्री राम" के नारे लगाने से सांप्रदायिक तनाव भड़केगा.