अरविंद सुब्रमण्यम ने की `आत्मनिर्भर भारत` की आलोचना, मिला करारा जवाब
अरविंद सुब्रमण्यम (Arvind Subramanian) ने पेंसिलवेनिया स्टेट यूनवर्सिटी के प्रोफेसर सुमित्रो चटर्जी के साथ मिलकर लिखे एक शोध पत्र में सरकार की `आत्मनिर्भर भारत` पहल की आलोचना की है.
नई दिल्ली: आत्मनिर्भर भारत पहल (Atma Nirbhar Bharat) की आलोचना करने को लेकर नीति आयोग (NITI Aayog) के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम (Arvind Subramanian) पर पलटवार किया है. राजीव कुमार (Rajiv Kumar) ने कहा कि अरविंद सुब्रमण्यम के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) पद पर रहने के दौरान ही प्रभावी रूप से आत्मनिर्भर भारत की शुरुआत हुई थी, तब उन्होंने कुछ नहीं कहा था.
अरविंद सुब्रमण्यम ने शोध पत्र में की आलोचना
अरविंद सुब्रमण्यम (Arvind Subramanian) ने पेंसिलवेनिया स्टेट यूनवर्सिटी के प्रोफेसर सुमित्रो चटर्जी के साथ मिलकर लिखे एक शोध पत्र में सरकार की 'आत्मनिर्भर भारत' पहल की आलोचना की है. उन्होंने लिखा है कि भारत को घरेलू बाजार को लेकर गुमराह करने वाले प्रलोभन से बचना चाहिए और पूरी शक्ति के साथ निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए.
राजीव कुमार ने किया सुब्रमण्यम पर पलटवार
पूर्व सीईए द्वारा आलोचना के बाद राजीव कुमार ट्विटर पर लिखा है, "अरविंद सुब्रमण्यम के अन्य के साथ मिलकर लिखे गए शोध पत्र में आत्मनिर्भर अभियान की आलोचना को को देखकर हैरान हूं. यह प्रभावी रूप से उस समय शुरू हुआ था जब सुब्रमण्यम मुख्य आर्थिक सलाहकार (Chief Economic Adviser) थे. साल 2018 में आयात शुल्कों में सर्वाधिक वृद्धि हुई थी और यह करीब 18 प्रतिशत हो गई थी." उन्होंने दूसरे ट्वीट में कहा, "जब आप सरकार में होते हैं तो अलग रुख और बाहर होते हैं तब अलग विचार. यह ठीक नहीं है, ईमानदार रुख नहीं है."
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3 साल तक मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे सुब्रमण्यम
अरविंद सुब्रमण्यम चार साल तक नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे. वह मोदी सरकार से अक्टूबर 2014 में जुड़े थे और उनका कार्यकाल तीन साल के लिए था, जिसे बाद में एक साल के लिए बढ़ाया गया. हालांकि उन्होंने विस्तारित कार्यकाल पूरा नहीं किया और निजी कारणों से अमेरिका लौट गए. फिलहाल वह अशोक यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं.
अरविंद सुब्रमण्यम ने शोध पत्र में लिखी ये बात
अरविंद सुब्रमण्यम ने अपने शोध पत्र में लिखा कि भारत में घरेलू मांग, निर्यात से ज्यादा महत्वपूर्ण होती जा रही है और व्यापार में पाबंदियां बढ़ रही हैं. शोध पत्र में उन्होंने लिखा, "भारत को घरेलू बाजार को लेकर गुमराह करने वाले प्रलोभन से बचना चाहिए और पूरी शक्ति से निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए और इसे हासिल करने के लिए सभी उपाय करने चाहिए."
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