इन पांच वजहों से `लाचार` हैं डोनाल्ड ट्रंप! चाहकर भी किम जोंग के खिलाफ नहीं ले पा रहे एक्शन
उत्तर कोरिया लगातार अमेरिका और उसके सहयोगियों जापान और दक्षिण कोरिया को तबाह करने की धमकी देता रहा है.
अमेरिका की लगातार धमकियों और तमाम अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद उत्तर कोरिया ने फिर से बैलिस्टिक मिसाइल दागी है. यह जापान के ऊपर से होती हुई प्रशांत महासागर में जाकर गिरी. एक महीने के भीतर उत्तर कोरिया ने दूसरी बार ऐसा किया है. इससे पहले सोमवार को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में उत्तर कोरिया पर हालिया न्यूक्लियर टेस्ट के बाद और प्रतिबंध लगाए जाने के मुद्दे पर बैठक हुई. उत्तर कोरिया की ताजा कार्रवाई को उसी का जवाब माना जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि अमेरिका बार-बार उत्तर कोरिया को धमकी तो दे रहा है लेकिन उत्तर कोरिया पर इसका कोई असर नहीं दिखता. सवाल यह भी उठता है कि आखिर अमेरिका भी धमकी देकर चुप क्यों हो जाता है? इसके कारणों पर डालें एक नजर:
1. उत्तर कोरिया लगातार अमेरिका और उसके सहयोगियों जापान और दक्षिण कोरिया को तबाह करने की धमकी देता रहा है. वैसे तो अमेरिका को उत्तर कोरिया से सीधा खतरा नहीं है, लेकिन प्रशांत क्षेत्र में स्थित गुआम द्वीप पर अमेरिका का बड़ा सैन्य बेस है. अमेरिका इस बेस की सुरक्षा को लेकर चिंतित है.
यह भी पढ़ें: धमकी देने के एक दिन बाद ही उत्तर कोरिया ने दागी मिसाइल, जापान के ऊपर से गुजरी
2. परमाणु क्षमता से संपन्न उत्तर कोरिया अपने पड़ोसियों दक्षिण कोरिया और जापान में भयंकर तबाही मचा सकता है. अमेरिका यह बिल्कुल भी नहीं चाहेगा कि उसके सहयोगियों को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचे.
3. अंतरराष्ट्रीय जगत में इस मामले में दो खेमे देखने को मिलते हैं. इस मामले में एक तरफ अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया हैं तो रूस और चीन को उत्तर कोरिया के सहयोगी के रूप में देखा जाता है.
यह भी पढ़ें : उत्तर कोरिया ने कहा, जापान को सबक सिखाने की जरूरत; द. कोरिया को बताया 'अमेरिकी पालतू'
4. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले दिनों चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को फोन किया था. शी जिनपिंग ने बातचीत से मसले को सुलझाने की बात कही. इसी तरह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने उत्तर कोरिया के खिलाफ किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई की मुखालफत की है.
5. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में हाल में कड़े प्रतिबंध लगाए गए. लेकिन वहां भी अमेरिकी मांगों का चीन और उत्तर कोरिया ने अपेक्षित समर्थन नहीं किया.