Dilip Khedkar and Manorma Khedkar: पूजा खेडकर ने आईएएस बनने के लिए ओबीसी आरक्षण का लाभ उठाने के लिए नॉन क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र जमा किया था. उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता का तलाक हो गया. हालांकि केंद्र सरकार ने पुणे पुलिस को यह जांच करने का आदेश दिया है कि क्या पूजा खेडकर के माता-पिता दिलीप खेडकर और मनोरमा खेडकर का वास्तव में तलाक हुआ था? पुणे पुलिस की क्राइम ब्रांच दिलीप की जांच कर रही है. हालांकि ये सबूत सामने आए हैं कि दिलीप खेडकर और मनोरमा खेडकर का 2010 में तलाक हो गया था. लेकिन इस बात के भी सबूत है कि ये तलाक सिर्फ नाम का है. ऐसा लगता है कि दिलीप खेडकर और मनोरमा खेडकर ने फर्जी तलाक कराया है ताकि उनकी बेटी पूजा खेडकर को ओबीसी आरक्षण का लाभ मिल सके.


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सहमति से तलाक
दिलीप और मनोरमा खेडकर ने 2009 में पुणे की फैमिली कोर्ट में सहमति से तलाक के लिए अर्जी दायर की. दोनों ने कोर्ट को बताया कि उन्हें एक-दूसरे से कोई शिकायत नहीं है. इतना ही नहीं मनोरमा खेडकर ने न तो गुजारा भत्ता मांगा और न ही संपत्ति में हिस्सा मांगा. तय हुआ कि दोनों बच्चों की कस्टडी मनोरमा खेडकर के पास रहेगी. पुणे फैमिली कोर्ट ने 25 जून 2010 को दोनों को तलाकशुदा घोषित कर दिया लेकिन ये तलाक सिर्फ कागजों पर था क्योंकि दोनों पति-पत्नी पुणे के बानेर इलाके में नेशनल कोऑपरेटिव सोसायटी में ओम दीप नाम के बंगले में पति-पत्नी की तरह रहने लगे.


यह बंगला मनोरमा खेडकर के नाम पर है और पति के रूप में दिलीप खेडकर भी सोसायटी के सदस्य हैं. (डेढ़ साल पहले दिलीप खेडकर ने सोसायटी के कॉमन जिम में ट्रेनर के साथ मारपीट की थी. इसकी शिकायत चतुश्रृंगी थाने में दर्ज है. साथ ही दिलीप खेडकर ने सोसायटी के चौकीदार के साथ भी मारपीट की थी और सोसायटी ने उनसे इस मामले में जवाब मांगा था). 


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चुनावी हलफनामा
दिलीप और मनोरमा खेडकर पति-पत्नी के रूप में रह रहे थे, इसका सबसे बड़ा प्रमाण हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में अहमदनगर दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ते समय दिलीप खेडकर द्वारा दिया गया हलफनामा है. इस हलफनामे में दिलीप खेडकर ने मनोरमा खेडकर को अपनी पत्नी बताया है और उनके नाम पर संपत्तियों का ब्यौरा भी दिया है. इस बात के भी प्रमाण हैं कि दिलीप खेडकर और मनोरमा खेडकर अक्सर पति-पत्नी के रूप में सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेते थे.


मनोरमा खेडकर की चौंकाने वाली कहानियां...
किसानों को पिस्तौल का भय दिखाकर गाली-गलौज और मारपीट करने के मामले में मनोरमा खेडकर चार दिनों तक पुलिस हिरासत में हैं. वहां से उनके बारे में कई कहानियां निकल कर आ रही हैं. सूत्रों के मुताबिक वो आम कैदियों को मिलने वाला खाना नहीं खाना चाहती. इसके बजाय फल और चॉकलेट मांगती हैं. गर्म पानी की भी मांग करती हैं. मनोरमा खेडकर को सभी कैदियों को दिया जाने वाला खाना यानी चावल, सब्जी और रोटी जैसा खाना दिया जाता है लेकिन उन्‍होंने पुलिस से फल और चॉकलेट की मांग की. पुलिस ने उनकी मांग ठुकरा दी और उन्हें आम कैदी की तरह खाना खिलाया.