Black Truth Of Ajmer Discom : अजमेर डिस्कॉम (Ajmer Discom) के भ्रष्ट अधिकारियों ने अजमेर डिस्कॉम को भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया है. निजी ठेकेदार फर्मो के जरिए एक तरफ सरकार की आंखों में धूल झोंकी जा रही है तो दूसरी तरफ आदिवासियों के हक पर डाका डाल कर अरबों रूपए के व्यारे न्यारे किये जा रहे है. सबसे बड़ी बात तो ये है कि भ्रष्टाचार का ये सारा खेल उस अधिकारी की सरपरस्ती में खेला जा रहा है जिस पर इस भ्रष्टाचार को रोकने की जिम्मेदारी थी. यानी दूध की रखवाली बिल्ली को सौंप कर सरकार मस्त हो गयी लेकिन आदिवासी त्रस्त हो रहे है.


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अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड यानी अजमेर डिस्कॉम, प्रदेश के ग्यारह जिलों में विद्युत व्यवस्था का जिम्मा सम्भालने वाली सरकारी कम्पनी है जो अपने ही अधिकारियों की सरपरस्ती में भ्रष्टाचार का अड्डा बन गई. इस भ्रष्टाचार के खेल की बानगी आपको देखनी हो तो आदिवासी जिले बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और डूंगरपुर का रूख करें. इस आदिवासी अंचल में दूरदराज की ढाणियों में अजमेर डिस्कॉम के भ्रष्टाचार के सबूत बिखरे पड़े है.


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डिस्कॉम अधिकारियों का दावा है कि उनके प्रयासों से अजमेर डिस्कॉम पिछले वित्तीय वर्ष में लगभग 175 करोड़ रूपये लाभ में था. लेकिन हकीकत इससे परे है. सबसे पहले बात डूंगरपुर (Dungarpur) की जहां केंद्र और राज्य ने संयुक्त योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण विधुतीकरण योजना (Deendayal Upadhyay Rural Electrification Scheme) को लागू किया गया. योजना के अनुसार आदिवासियों को विद्युत कनेक्शन जारी किए गए. इस योजना के तहत लगभग तीन लाख ग्यारह हजार 587 आदिवासी सहरिया उपभोक्ताओं को निशुल्क विधुत कनेक्शन दिया गया. इन उपभोक्ताओं के बीपीएल श्रेणी में होने के चलते इनके विद्युत  उपभोग की राशि का भुगतान राजस्थान सरकार करती है. अजमेर डिस्कॉम के अधिकारियों की शातिर टीम ने इसी योजना को अपना हथियार बना कर सरकार को गुमराह करना शुरू कर दिया. बड़े शातिर अंदाज में सरकार के खजाने में सेंधमारी कर ली गयी और उसे अपना बनाना शुरू कर दिया गया.


कैसे लगाया गया सरकार को चूना
दीनदयाल उपाध्याय विधुतीकरण योजना के तहत लगे बिजली के मीटर में, बिजली उपभोग को डिस्कॉम ने बेतहाशा बढ़ाना शुरू कर दिया. जितना विद्युत उपभोग उपभोक्ता ने किया ही नहीं, उससे कहीं ज्यादा राशि का उपभोग बताकर अजमेर डिस्कॉम ने ये राशि राजस्थान सरकार के खजाने से वसूल ली.


  • पहला सबूत- पोहरी खातुरत गांव में गरीब आदिवासी गट्टू  पुत्र अमालिया ने 876 यूनिट बिजली का प्रयोग किया. लेकिन उसे मिले बिल में कुल उपयोग 1860 यूनिट दर्शाया गया और 4 रूपये 90 पैसे प्रति यूनिट की दर से 4 हजार 821 रूपए 60 पैसे गट्टू अमालिया के नाम पर अजमेर डिस्कॉम ने राजस्थान सरकार के खाते से ज्यादा वसूले.

  • दूसरा सबूत- नानजी अहारी पुत्र काला अहारी के झोपड़े में बिजली का कुल उपयोग 1236 यूनिट मिला लेकिन 1850 यूनिट बिजली का उपयोग बताया गया और सरकार के खजाने से 4206 रूपए 40 पैसे ज्यादा वसूले गए.

  • तीसरा सबूत- बिछीवाड़ा के गलंदर गांव में हुरमा पुत्र भादू ने 390 यूनिट बिजली का उपयोग किया लेकिन इसे डिस्कॉम ने 726 यूनिट दर्शाया और सरकार को 1646 रूपये की चपत लगाई.


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जी मीडिया ने इस खबर के लिए मात्र तीन कनेक्शन का सत्यापन किया लेकिन अगर बात डूंगरपुर जिले में दीनदयाल उपाध्याय विद्युतीकरण योजना के कुल 3 लाख 11 हजार 587 निशुल्क कनेक्शन की हो, तो समझा जा सकता है कि ये खेल कितना बड़ा है. एक आंकलन के मुताबिक इस तरह से बिलों में हेरफेर कर अजमेर डिस्कॉम के अधिकारियों ने राजस्थान सरकार के खजाने को लगभग 14 करोड़ रूपये प्रतिमाह की चपत लगाई है. सीधे तौर पर ये राशि सालाना 84 करोड़ रूपये एक मात्र डूंगरपुर जिले की होती है. बात अगर उदयपुर , प्रतापगढ़ ,राजसमन्द, चित्तौड़गढ़ और बांसवाड़ा जिले की हो तो आप अंदाजा लगा सकते है, कि 928359 उपभोक्ताओं का ये आंकडा कहां पहुंच जाता है.


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कुल मिलाकर ये खुलासा इस तरफ इशारा कर रहा है कि अजमेर डिस्कॉम जिस 175 करोड़ रूपये के लाभ को दिखाकर अपनी पीठ खुद थपथपा रहा है. उसका सच क्या है और कैसे शातिराना अंदाज में सरकार के खाते से चुराई राशि के जरिए अजमेर डिस्कॉम के अधिकारी राजस्थान सरकार की आँखों में धूल झोंक रहे है और आदिवासी हको पर डाका डाल रहे है. बड़ा सवाल ये भी है कि आखिर डिस्कॉम में बैठा हुआ वो कौन सा अधिकारी है जो इस सारे खेल को खेल रहा है और उससे भी बड़ी बात की सरकारी खजाने को चूना लगाकर फर्जी आंकड़े तैयार करने में इस अधिकारी का खुद का क्या लाभ है. इस पूरे मामले में जो तथ्य उजागर हुए हैं वो बेहद गंभीर हैं और बता रहे हैं कि अजमेर डिस्कॉम में बैठे अधिकारी अपने निजी हितों के लिए किस तरह आदिवासियों के हक पर डाका डालकर सरकार की आंखों से सूरमा चुरा रहे हैं.