Baran News: बारां के छीपाबड़ौद क्षेत्र में इन दिनों अफीम काश्तकारों की नींद उड़ी हुई हुई. चीराई के लिए तैयार हो चुकी फसल के डोडों में कई काश्तकारों ने चीरा लगाने का काम भी शुरु कर दिया है. ऐसे में किसानों के परिवार सहित डेरे खेतों में जम गए और फसल की सुरक्षा को लेकर दिनरात की चौकसी में मुश्तैद नजर आने लगे हैं. जबकि कई काश्तकारों की फसल रोगग्रस्त होने से उसमें चीरा लगाने को लेकर अभी पेशोपेश में है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

क्षेत्र में इस बार एक सौ से अधिक काश्तकारों को अफीम काश्त के लाइसेंस मिले हैं. ज्यादातर काश्तकारों के समय पर बुवाई एवं अच्छे मौसम से उम्मीद जगी, लेकिन बीच-बीच में बदलते मौसम के कारण फसल में पीलिया रोग का प्रकोप होने से फसल को प्रभावित किया.


जिससे अफीम उत्पादन प्रभावित होने की आशंका बनी है. हांलाकि कई काश्तकारों ने विधिवत पूजा अर्चना के साथ डोडों की चीराई के साथ अफीम पोंछने का काम शुरु कर दिया.


 ऐसे में घर बाजार से लेकर रिश्तेदारी तक के काम छोड़ दिए हैं. काश्तकार दूलीचंद लोधा,हेमराज लोधा ने बताया कि अफीम की बुवाई से लेकर पैदावार लेने तक पांच महीने कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. जिसमें डोडों के चीरे लगने के समय तो मरण हो या परण,अधूरा काम छोडकर किसी कार्यक्रम में नही आ जा सकते.
इनसे बना हुआ है खतरा-अफीम की फसल नाजूक फसल मानी जाती है.


 प्राकृतिक प्रकोप एवं बीमारियों से प्रभावित फसल को बचाने के लिए काश्तकार कई तरह के प्रबंध तो करता ही है, लेकिन इसके अलावा पक्षियों,चूहों का आतंक भी बड़ी चुनौती बना हुआ है. चूहे पौधों को नीचे से कुतर देते हैं, जिससे नीचे गिरे डोडों को आसानी से खा सकें. तोते भी डोडे तोड़कर उड़ जाते हैं. इसके अलावा पिछले दो चार सालों से डोडे चोर भी सक्रिय हो गए जो खेतों में से हरे डोडे तोडकर चुरा ले जाते है.


फसल में डोडे कम होने का मतलब है कि डोडा पोस्त का नुकसान है जो तो है, लेकिन उससे मिलने वाली अफीम से भी हाथ धोना पड़ता है. ऐसे में एक पल भी खेत सूना नहीं छोड़ रहे हैं.


सुबह से लगते है काम पर-डोडों में दिनभर चीरा लगाने के बाद रात भर दूध का रिसाव होकर डोडों की बाहरी समह पर जमा होता है.  जिसे सुबह भोर होने के साथ ही विशेष औजारों के सहारे से एकत्रित करने का काम विशेष तकनीकी से किया जाता है.


 बूंद-बूंद के इस संचय में करीब बीस से तीस दिन का समय लगता है, तब जाकर एकत्रित मात्रा को नॉरकोटिक्स विभाग को निर्धारित मापदंडों के अनुसार तुला पाते हैं. क्योंकि मापदंड अधूरे रहते ही लाइसेंस खटाई में जाने का खतरा रहता है.


इसी कारण काश्तकार अफीम की फसल की सुरक्षा में पूरी मुश्तैदी से जुटा नजर आता है. काश्तकारों का कहना है कि बुवाई से लेकर आखिरी तक खतरों से घिरी इस फसल से कम क्षेत्र में अच्छा मुनाफा की उम्मीद होती है, लेकिन बाहरी तकलीफों ने आय का बड़ा हिस्सा जद में ले लिया. जिससे फसल करना अब घाटे का सौदा कहलाने लगा है.


ये भी पढ़ें- Transgender Facts : कौन है भगवान इरावन जिनसे करता है, हर किन्नर एक रात की शादी ?