Barmer: राजस्थान के बाड़मेर में भारत-पाक सीमा पर स्थित द्राभा गांव की सरहद में एक ऐसा प्राकृतिक तालाब है, जो महज दस फीट गहरा है, लेकिन इस तालाब की विशेषता यह है कि इसमें कुओं और बेरियों की तरह पानी रिचार्ज होता है. ये जानकर आप भी चौंक जाएंगे, बता दें किकाळूना टोभा के नाम से विख्यात इस तालाब में पानी कभी खत्म नहीं होता.


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गोवंश और पशुपालकों के लिए वरदान है ये तालाब 
बाड़मेर में स्थिर ये तालाब कुदरत का करिश्मा काळूना टोभा, कुओं और बेरियों की तरह रिचार्ज होता है. आपको बता दें कि तालाब के आस-पास करीब चार से पांच किलोमीटर क्षेत्र में हजारों बीघा चरागाह है, जिसमें हजारों की संख्या गोवंश स्वत: ही पल रहा है. प्रकृति के इस अनमोल उपहार को स्थानीय लोग देवी माल्हण माता की मेहर मानते हैं. काळूना टोभा इस पूरे क्षेत्र के लिए वरदान है. टोभे का पानी कभी खत्म नहीं होता. भीषण अकालों में भी टोभे का पानी रिचार्ज होता रहता है. गायों और पशुपालकों के लिए यह जगह कुदरत की बड़ी देन है.


सात-आठ बीघा में भराव है ये तालाब  
भरपूर बरसात के दिनों में काळूना टोभा का भराव क्षेत्र सात से आठ बीघा तक हो जाता है. तालाब का कैचमेंट एरिया 200 बीघा से भी अधिक है. तालाब के पश्चिम में धोरे पर माल्हण माता का भव्य मंदिर बना हुआ है. इस तालाब और चरागाह क्षेत्र के चारों ओर द्राभा, खंगाराणी, माईयाणी, दूठोड़, विजावा, रोहिड़ी, शहदाद का पार आदि गांव आबाद है. यहां पशुपालकों के लिए यह क्षेत्र कुदरत का अनूठा उपहार है.


इस तालाब का ऐसे पड़ा नाम


आपको बता दें कि जो जलाशय (तालाब) प्राकृतिक रूप से बना हुआ हो और धोरों के बीच स्थित हो, उसे स्थानीय बोली में टोभा कहते हैं. द्राभा निवासी मालमसिंह बताते हैं कि यह तालाब 500 वर्ष से भी अधिक पुराना है. तालाब के आस-पास तत्समय जो लोग निवास करते थे, उनका रंग काला था. इस तरह स्थानीय बोली में इस तालाब का नाम काळूना टोभा हो गया.


साथ ही सूंदरा क्षेत्र में करीब 42 हजार बीघा गोचर भूमि है, जिसमें से अधिकतर गोचर भूमि काळूना टोभा के इर्द-गिर्द है. यह क्षेत्र गोवंश के लिए वरदान है. इस चरागाह क्षेत्र में करीब पांच हजार गायें विचरण करती हैं. यहां भरपूर मात्रा में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध घास है. चरागाह में चरने के बाद गायें अपने आप ही काळूना टोभा पहुंचती है और पानी पीकर पुन: चरागाह में चली जाती है.


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