Siwana: बाड़मेर जिले के सिवाना विधानसभा क्षेत्र के समदड़ी तहसील स्थित विख्यात लाखेटा गांव में गैर नृत्य मेला अपने चरम पर है. जिसमें क्षेत्र के सभी जनप्रतिनिधि एवं प्रशासनिक अधिकारी पहुच रहे हैं. मारवाड़ी संस्कृति को बढ़ावा देने वाले इस मेले के आयोजन को लेकर विशेषता कुछ अलग बताई जा रही है.


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राजस्थान अजब-गजब (rajasthan ajab gazab) सीरीज के तहत हम आपको बाड़मेर जिले के सिवाना विधानसभा के समदड़ी में लगने वाले एक खास मेले और उसके पीछे की मान्यताओं के बारे में बता रहे हैं. खास तौर से मेले वाले स्थल पर भूत के एक मंदिर के कहानी आपके लिए लेकर आए हैं. 


 


यहां मान्यता है कि प्राचीन काल में लाखा नाम के भूत का क्षेत्र में आतंक था. चारों तरफ भूत के आतंक से त्राहि-त्राहि मची हुई थी. तभी शिव के उपासक गांव के तलाब की पाल पर शिव मंदिर पर तपस्या कर रहे संतोष भारती महाराज ने ग्रामीणों की पीड़ा को देखते हुए और लाखा भूत के आतंक से ग्रामीणों को मुक्ति दिलाने की ठान ली. इसके लिए उनहोंने शिव की तपस्या करनी शुरू कर दी. तपस्या के फलस्वरूप शिव की कृपा से भूत से मुक्ति मिल गई. वहीं मत्यु के समय भूत ने संतोष भारती महाराज से मुक्ति का वरदान मांग लिया. इसी वरदान के तहत हर वर्ष मेला लगने लगा. तब से लेकर सदियों से चली आ रही मेले की परंपरा आज भी कायम है.


उसी भूत की वजह से गांव का नाम लाखेटा रखा गया है, जहां हर वर्ष मेले का आयोजन होता है. विभिन्न प्रकार के मारवाड़ी संस्कृति के गैर एवं अन्य प्रकार की प्रतियोगिताएं होती हैं. जिसमें विजेता टीम को मेला कमेटी द्वारा पुरस्कृत किया जाता है. वही गांव के विकास एवं मेले की परंपरा को और भव्य बनाने आकर्षण का केंद्र करने के लिए सरकारी एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. उसी के परिणाम स्वरूप इस मेले को देखने के लिए जिले भर से हजारों की तादात में लोग पहुंचते हैं. पिछले 2 वर्षों से कोविड-19 मेले का आयोजन रदद् था, लेकिन इस बार मेले का आयोजन होने की कारण ग्रामीणों एवं प्रशासनिक अधिकारियों मेला कमेटी सदस्यों में भारी उत्साह नजर आ रहा था.


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तालाब की पाल के ऊपरी भाग में शिव मंदिर के बगल में ही बना है. लाखा भूत का मन्दिर श्रद्धालु दर्शन के बाद शिव मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर लाखा भूत के हाथ जोड़ते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं. इसके बाद उनकी मन इच्छाएं पूर्ण होती हैं. वहीं मेले के आयोजन के समय बनने वाली प्रसादी का भी भोग लाखा भूत को लगाया जाता है.