मक्का में एक घनाकार आकृति की इमारत है जिसे काबा कहा जाता है. हज करने वाला शख्स इस इमारत के चारों तरफ सात फेरे लेता है.
Hajj 2022: हज 2022 के लिए हिंदुस्तान से यात्रियों की फ्लाइट्स शुरु हो चुकी हैं. पहली फ्लाइट कल जम्मू से रवाना हुई है. इसके बाद देश के अन्य एयरपोर्ट्स से भी हज के फ्लाइट्स जानी शुरू हो गई हैं. आज राजधानी दिल्ली के एयरपोर्ट्स पर जब हम गए तो देखा वहां बड़ी तादाद में लोग हज पर जा रहे हैं. दिल्ली से आज पहला जत्था रवाना हो गया है इसके अलावा लखनऊ से भी पहली फ्लाइट आज ही जा रही है.
क्या है हज? हज इस्लाम के 5 मौलिक सिद्धांतों में से एक है. हालांकि हज सभी मुसलमानों पर तब तक फर्ज़ नहीं होता जब तक वो उसके मुस्तहिक नहीं हो जाते. हज सिर्फ उन लोगों पर फर्ज़ होता जो आर्थिक रूप से संपन्न हों. यानी हज उन लोगों पर फर्ज़ हो जाता है जो अपने तमाम जरूरी खर्चे करने के बाद इतना पैसा बचा लेते हैं जिससे हज का खर्च उठाया जाए. हज की यात्रा 40 दिनों की होती है. इस दौरान हज पर जाने वाले लोग कई तरह की रिवायतों पर अमल करते हैं. इसके अलावा 10 दिन के लिए मदीना में रहना होता है और फिर मक्का जाना होता है. इसके अलावा भी कई अलग-अलग जगहों पर जाकर परंपराओं पर अमल किया जाता है.
किस वक्त होता है हज ईद उल अजहा यानी बकरीद अरबी कैलेंडर के आखिरी महीने जिल हिज्ज में मनाया जाता है. यह जिल हिज्ज की 10 से 13 तारीख तक मनाया जाता है. सऊदी अरब में जिल हिज्ज की 8 से 12 तारीख तक हज की रस्में अदा की जाती हैं.
क्या है हज का इतिहास इतिहासकारों के मुताबिक हज की रस्म 7वीं शताब्दी से पैगंबर मोहम्मद सा0 से जुड़ी हुई है. लेकिन इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक इसका इतिहास पुराना है. बताया जाता है कि यह रस्म पैगंबर इब्राहीम अ0 से वक्त से चली आ रही है.
हज में कौन सी रिवायतें होती हैं मक्का में एक घनाकार आकृति की इमारत है जिसे काबा कहा जाता है. हज करने वाला शख्स इस इमारत के चारों तरफ सात फेरे लेता है. इसके बाद हाजी अल सफा और अल मारवाह नाम की पहाड़ियों के बीच चलता है. यहां जमजम के पानी पीने की भी रिवायत है. इसके बाद हाजी अराफात पहाड़ के मौदानों में जाता है और शैतान को पत्थर मारने की रस्म पूरी करता है. यहां हाजी अपना सर भी मुंडवाते हैं. जानवर की कुर्बानी दी जाती है. इसके बाद ईद उल अजहा का त्योहार मनाया जाता है.
हज के अलावा ये हैं इस्लाम के मौलिक सिद्धांत इस्लाम में हज के अलावा तौहीद (खुदा को एक मानना), नमाज (दिन में पांच वक्त प्रार्थना), रोजा (रमजान के महीने में उपवास), जकात (अपनी कमाई की बचत का कुछ हिस्सा गरीबों को देना) है.
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