Rajasthan news: शीतला सप्तमी पर उमड़ा भक्तो का सैलाब, जानिए क्या है माता को ठंडा व बासी भोग लगाने का वैज्ञानिक कारण
Advertisement
trendingNow1/india/rajasthan/rajasthan1609945

Rajasthan news: शीतला सप्तमी पर उमड़ा भक्तो का सैलाब, जानिए क्या है माता को ठंडा व बासी भोग लगाने का वैज्ञानिक कारण

चित्तौरगढ़, राजस्थान - शीतला सप्तमी के अवसर पर महिलाओं द्वारा सवेरे उठकर प्रतिदिन के कार्यों से निवृत्त होकर माता शीतला की पूजा अर्चना करने पहुंची. जहां पर विभिन्न बनाए पकवानों से भोग लगाकर पूजा अर्चना की गई.

Rajasthan news: शीतला सप्तमी पर उमड़ा भक्तो का सैलाब, जानिए क्या है माता को ठंडा व बासी भोग लगाने का वैज्ञानिक कारण

चिकारड़ा - सतरंगी होली का त्यौहार होलिका दहन से लेकर शुरू हो जाती है जो तेरस तक खेली जाती है. इसको लेकर सप्तमी के अवसर पर चिकारड़ा सहित क्षेत्र में सप्तमी का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. महिलाओं द्वारा सवेरे उठकर प्रतिदिन के कार्यों से निवृत्त होकर माता शीतला की पूजा अर्चना करने पहुंचीॉ. जहां पर विभिन्न बनाए पकवानों से भोग लगाकर पूजा अर्चना की. गौरतलब है कि शीतला सप्तमी के अवसर पर महिलाओं द्वारा 1 दिन पूर्व ही भोजन बनाया जाकर दूसरे रोज ठंडा बासी खाने का भोग लगाकर फिर परिवार ईष्ट मित्रों सहित प्रसाद के रूप में खाया जाता है. शीतला सप्तमी के अवसर पर किसी भी परिवार में गर्म चीज नहीं बनती है. ठंडे खाने के रूप में ओलिया, दही बड़े, राबड़ी, चावल ,केरी छाछ विशेष तौर से बनाए जाते हैं. 

इस पौराणिक परंपरागत मान्यता को लेकर ग्रामीण आज भी उसी राह पर चलते हुए परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. इस सप्तमी के अवसर पर प्रात से ही बालक बालिकाए रंग खेलते हुए टोलिया बनाकर अलग-अलग गली मोहल्ले में घूम कर एक दूसरे को रंग लगाते दिखाई दिए. यह कार्यक्रम दिनभर चलता रहा. इस रंगो के त्यौहार के चलते बाजार बंद रहे.

शीतला सप्तमी मनाने की पौराणिक वजह 
चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी का पर्व मनाया जाता है. शीतला माता की पूजा शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी को होती है. शीतला माता को मां पार्वती और मां दुर्गा के अवतार के रूप में पूजा जाता है. शीतला सप्तमी को घरों में विभिन्न प्रकार के पकवान व्यंजन और भोजन बनाया जाता है. जो अष्टमी को माता को भोग लगाने के बाद खाया जाता है. पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि इससे शीतला माता की कृपा भी बनी रहती है और चेचक और अन्य चर्म रोग और संक्रामक रोग की पीड़ा भी नहीं होती. शीतला सप्तमी के दिन दही, राबड़ी, चावल ओलिया, केरी की छाछ और अन्य पकवान बनते हैं जो अगले दिन यानि अष्टमी के दिन शीतला माता को पूजा अर्चना के साथ भोग लगाए जाते हैं.

इस दिन ऐसा क्या है
सनातन धर्म में दिन वार विशेष और तिथि का अपना एक महत्व है और उस तिथि विशेष को पर्व के रूप में मनाया जाता है. चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को सनातन धर्म मे शीतला माता की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन प्रत्येक घरों मे अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार अलग अलग प्रकार के पकवान भोजन बनाया जाता है.

ऐसे होती है माता की विशेष कृपा 
मान्यता है कि शीतला माता की पूजा आराधना करने और ठंडा भोजन अर्पित करने से माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है. और किसी भी प्रकार का चर्म रोग, चेचक की तकलीफ और बीमारी से छुटकारा मिलता है. माना जाता है कि माता की पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. साथ ही जीवन मे सुख समृद्धि बनी रहती है.

शीतला सप्तमी पर्व की मान्यता
मान्यता है कि शीतला माता को चेचक की देवी भी कहा जाता है. शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के मध्य में मौसम परिवर्तन के बीच एक दिन यानी कि शीतला सप्तमी से एक दिन पूर्व बनने वाला भोजन दूसरे दिन सुबह शीतला माता की पूजा अर्चना करने के बाद खाना खाया जाता है. इससे प्रकृति द्वारा विभिन्न लाभ दिए गए हैं. हालांकि इसके कई वैज्ञानिक कारण भी है कि इससे शरीर में मौसम परिवर्तन से हुए बदलाव का नकारात्मक असर नहीं होता है. और स्वास्थ्य सुदृढ़ व्यवस्थित रहता है.

Trending news