Delhi/Jaipur: राजस्थान की कला और सांस्कृतिक धरोहर को पेटिग्स में सहेजती डॉ. मदन मीणा के चित्रों की 7 दिवसीय प्रदर्शनी आयोजन दिल्ली के इंडिया इंटर्नैशनल सेंटर किया जा रहा है.


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राजस्थान के कोटा जिले के प्रसिद्ध युवा चित्राकार डॉ. मदन मीणा द्वारा चित्रांकित पेटिंग्स की प्रदर्शनी का उद्घाटन मालविका सिंह ने किया. मालविका सिंह ने कहा कि डॉ. मदन द्वारा कला के क्षेत्र में किए गए इस बेजोड़ कामों से राजस्थानी कला और संस्कृति के अनभिज्ञ लेकिन महत्वपूर्ण पहलुओं को देश दुनिया तक पहुंचाया जा रहा है.


मालविका सिंह ने कहा कि डॉ. मदन द्वारा अपनी कला के माध्यम से किए सामाजिक सरोकार के कार्यों से राजस्थान के दूरस्थ इलाकों में बसे कला सिद्धहस्त समाजों की महिलाओं और कलाकारों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना काम दिखाने के अवसर मिले हैं.


हस्तकौशल पर किये गए शोध कार्यों पर आधारित 


डॉ. मीणा की प्रदर्शनी राजस्थान की स्थानीय कला और सांस्कृतिक धरोहरों के साथ-साथ हुनरबंद शिल्प समुदायों की कला और हस्तकौशल पर किये गए शोध कार्यों पर आधारित है. डॉ. मीणा द्वारा किये गये करीब दस वर्ष के शोध एवं कला परिश्रम से तैयार इन पेटिंग्स में विशेष रूप से गुलाबी नगरी जयपुर के पूर्व महाराजा और आधुनिक जयपुर के वास्तुकार जयसिंह द्वितीय द्वारा हस्तसिद्ध कलाकारों की कला को आश्रय देने के लिए बसाई गई बस्तियों व कारख़ानों को भौगोलिक परिपेक्ष्य में पेटिंग्स के माध्यम से बखूबी दर्शाया गया है. साथ ही झालावाड व कोटा से जुड़ी संस्कृति को भी दर्शाया गया है.


डॉ. मीणा ने बताया कि रंग-बिरंगी कला और सांस्कृतिक धरोहर के धनी राजस्थान में कला के विकास का राज वहां की भौगोलिक परिस्थितियों और कलाकारों को राज्यश्रय और सामाजिक सरक्षण उनकी रूचि का विषय रहा है. उन्होने बताया कि उनके द्वारा बनाई गई इन पेटिंग्स के माध्यम से जयपुर की ‘पुरानी बस्ती’ पन्निगर आदि ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ वर्तमान में इन जगहों पर काम करने वाले कलाकारों की कला और उनके जीवन को देश ओर दुनिया के समक्ष पेश किया गया है.


इस दिशा में वे लगातार शोध कार्य कर रहे है जिसे भविष्य में पेटिंग्स के माध्यम से दर्शाया जायेगा. मीणा ने कहा कि जयपुर की ‘पुरानी बस्ती’ के ब्लोक प्रिंटर्स और रंगाई के इतिहास, सोना और चांदी के वर्क बनाने वाले ‘पन्निगर’ जैसे समुदायों के हुनर को दर्शाया गया है. साथ ही इन ऐतिहासिक कला-बस्तियों में कुछ ही परिवार अपनी परम्परा को जीवित रखे हुए है. प्रदर्शनी की अन्य पेटिंग्स में राजस्थान की स्थानीय परम्पराओं एवं बाड़मेर की "अजरख" जैसी जटिल वस्त्र छपाई की कला की ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया है.


प्रदर्शनी में प्रदर्शित विश्व प्रसिद्ध कोटा डोरिया साड़ियों पर डॉ. मीणा के कला कार्य को बुनाई के माध्यम से दिखाया गया है जो दर्शकों को आश्चर्य चकित करने वाला हुनर है. प्रदर्शनी में पर्यावरण के खतरों की तरफ ध्यान आकर्षित करती पेटिंग्स के साथ-साथ राजस्थान की स्थानीय जनजातियों और अन्य समुदायों की प्राचीन लोक कलाओं को बखुबी तुलिका के रंगों से साकार किया गया है.उल्लेखनीय है कि डॉ. मीणा राजस्थान की लोक परम्पराओं एवं संस्कृति पर आधारित प्रसिद्ध कला-चित्रों का प्रदर्शन देश-विदेश की कई प्रदर्शनियों में कर चुके हैै.


इंगलैंड के ‘कैब्रिज यूनिवर्सिटी’ से सहायता प्राप्त और फायरबर्ड फाउंडेशन फॉर इन्थ्रोपोलॉजिकल अमेरिका से फैलोशिप प्राप्त डॉ. मीणा ने राजस्थान की जनजाति की प्राचीन संस्कृति एवं भाषा पर गहरा शोध कार्य किया है. राजस्थान की जनजातियों की महिलाओं पर आधारित कला-चित्रों का प्रदर्शन इससे पूर्व में डॉ. मीणा राजस्थान सहित देश-दुनिया के कई हिस्सों में कर चुके है.


कला से जुड़ी फिल्मों के निर्माण के साथ-साथ डॉ. मीणा जॉय ऑफ क्रियेटिवटी और नरचरिंग वॉल्स और तेजा गाथा आदि किताबें भी लिख चुके हैं. वे जोधपुर के रूपायन संस्थान द्वारा स्थापित अरना-झरना मरु संग्रहालय के क्युरेटर रहें हैं. वर्तमान में डॉ. मीणा राजस्थान ललित कला अकादमी के सदस्य और गुजरात स्थित आदिवासी अकैडमी के मानद निदेशक हैं.


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