Jaipur: सुप्रीम कोर्ट से स्टे हटने के साथ ही राज्य सरकार ने डॉ.सौम्या गुर्जर को मेयर पद से बर्खास्त कर दिया हैं और कार्यवाहक मेयर के तौर पर शील धाभाई ने जिम्मा संभाल लिया हैं लेकिन जयपुर नगर निगम ग्रेटर में मेयर के पद से बर्खास्त करने के बाद खुद सौम्या गुर्जर और भाजपा पार्टी दोनों मौन पड़ गए. एक साल पहले सस्पेंशन के समय जिस तरह पार्टी ने एग्रेसिव होकर लड़ाई लड़ी थी वह अब टर्मिनेशन के समय नहीं देखने को मिली.


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सियासी गलियारों में चर्चा है कि इस मुद्दे पर पार्टी को कोई खास राजनैतिक लाभ नहीं होता दिख रहा है. जिसके चलते पार्टी ने अब इस पर कोई सख्त रूख नहीं दिखाया.पिछले साल 6 जून को जब सौम्या गुर्जर को मेयर पद से सस्पेंड किया था, तब पार्टी ने विरोध किया था. हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ने में भी सौम्या गुर्जर के साथ पार्टी रही थी लेकिन ऐसा इस बार बिल्कुल देखने को नहीं मिला.


राजनीति के जानकारों का कहना है कि पार्टी का ये रूख इसलिए देखने को मिल रहा है क्योंकि पार्टी को इस मुद्दे से कोई खास राजनैतिक लाभ नहीं मिलता दिख रहा. पार्टी का एक धड़ा सौम्या गुर्जर के मेयर बने रहने के पक्ष में नहीं है. वहीं सरकार ने भी शील धाबाई को ही दोबारा कार्यवाहक मेयर बनाकर विरोध को दबाने का काम किया है.


इस मामले में मॉनिटरिंग कर रहे भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री अरूण चतुर्वेदी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद इस मुद्दे पर चर्चा की थी. मैंने सौम्या गुर्जर को कानून विशेषज्ञों से राय लेकर आगे की कार्यवाही करने के लिए कहा था.इसके बाद आगे का काम अब उनको ही करना था.पार्टी के कई कार्यक्रमों में व्यस्त रहने के कारण इस मामले में आगे क्या हुआ इसका अब तक मैंने फोलोअप नहीं लिया. इधर टर्मिनेशन के 16 दिन बाद भी सौम्या गुर्जर अपने टर्मिनेशन लेटर और न्यायिक जांच की रिपोर्ट की ऑफिशियल कॉपी मिलने का इंतजार कर रही है.


सौम्या गुर्जर ने बताया कि उन्होंने सरकार के यहां एप्लीकेशन लगाकर ऑफिशियल कॉपी मांगी है ताकि उस पर लीगर ओपिनियन लेने के बाद आगे की कार्रवाई की जाए लेकिन सरकार ने अब तक टर्मिनेशन और न्यायिक जांच की ऑफिशियल कॉपी उपलब्ध नहीं करवाई.


विधि विशेषज्ञों की माने तो सौम्या गुर्जर के पास अब केवल हाईकोर्ट जाने का विकल्प बचा है.विशेषज्ञों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश जारी किए है उसके तहत मेयर सौम्या गुर्जर न्यायिक जांच की रिपोर्ट को हाईकोर्ट में चैलेंज कर सकती है. उनके पास अब यही एक विकल्प है.


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